दूसरों की समस्याओं को समझना और आगे बढ़कर उनके लिए साधनों को जुटाना, हर किसी के वश की बात नहीं है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है सिया तायल ने (Journey of Siya Tayal)। गुरुग्राम के श्री राम स्कूल अरावली (Shri Ram School Aravali) की 12वी कक्षा की छात्रा सिया तायल 8 साल की उम्र से समाज सेवा के कार्यों में जुटी हुई हैं। उन्होंने अपनी स्कूलिंग के साथ ही जरूरतमंदों की मदद करना ज़रूरी समझा और इसी को अपनी ज़िदगी का मकसद बना लिया। सिया को सिंगिंग, पियानो बजाना और बास्केट बॉल बहुत पसंद है।
आठ साल की उम्र से समाज सेवा कर रही सिया बॉडी शेमिंग, लैंगिक समाजनता जैसे मुद्दों पर काम कर रही हैं। इसमें उनके साथ रहती है उनकी पूरी टीम, जिसका गठन भी उन्होंने स्वयं अपने प्रयासों से किया है। आइए जानते हैं उनसे उनके सफर के बारे में।
इन दिनों हम तीन प्रोजेक्टस पर काम कर रहे है। हमारा पहला प्रोजेक्ट माई ओन बैग है। इसमें हम टैक्सटाइल कंपनियों को कान्टेक्ट करके उनसे फैब्रिक मंगवाते है। फिर उस रीसाइकिल फैब्रिक के बैग स्टिच करवाकर बेचते हैं। दूसरा प्रोजेक्ट है सेंटा कॉज, जिसे हमने आज से करीबन सात साल पहले शुरू किया था। इस प्रोजेक्ट का मकसद बस्ती में रहने वाले बच्चों के लिए रिसोर्सिज इकट्ठा करना है।
इस प्रोजेक्ट के तहत हम बच्चों के लिए स्टेशनरी, कपड़े, खिलौने इकट्ठा करने का काम करते हैं। क्रिसमस के टाइम पर हम बच्चों के लिए खाना, खिलौने और बाकी चीजें इकट्ठा करते हैं। वहीं, हमारा तीसरा प्रोजेक्ट है, आई एम इनफ ( i am enough) । इसे जुलाई 2020 में शुरू किया था। इसमें हमारे 10,000 से ज्यादा वॉलेंटियर्स बन गए है। जो 102 देशों में मौजूद है। मेरा पूरा समय इन्ही प्रोजेक्ट को संभालने में निकल जाता है।
मैं मानती हूं कि आपको इंस्पिरेशन कहीं से भी मिल सकती है। दरअसल, जब आपकी उम्र कम होती है और आप कुछ नया करने की ओर बढ़ते हैं, तो लोग आपको हल्के में लेने लगते हैं। वे आपके काम को उस कदर गंभीरता से नहीं लेते हैं। लोग इस बात को नहीं समझ पाते कि आप क्या और क्यों कर रहे हो। इसके चलते आपको अपने काम को अंजाम देने के लिए रिसोर्सिज मिलने में दिक्कत आने लगती है। स्पोन्सरशिप्स से लेकर इवेंटस को मैनेज करने तक आप चुनौतियों का सामना करते है। इस सफर में अच्छी बात ये रहती है कि आपको बहुत कुछ सीखने का मिलता है।
आज के युवाओं की बात करें, तो हर कोई बुद्धिजीवी है और समाज के उत्थान के बारे में वे सोच रहे हैं। आज का यूथ ये सोचता है कि मैं समाज के लिए क्या कर सकता हूं या कैसे मदद कर सकता हूं। उदाहरण के तौर पर अगर कोई युवा है, जिसे दीवाली के समय अस्थ्मा अटैक होते हैं, तो उसके मन में ये विचार उठने लगते है कि क्यों न दीवाली पर पोस्टर बनाकर लोगों को जागृत करूं या कैम्पेन रन कर लूं। किसी को फुटवेयर पसंद है, तो वो सोचते हैं कि मैं फुटवेयर को कैसे स्पांसर कर सकता हूं। सब लोग अगर अपने पैशन को लेकर सोचेंगे, तो आसानी से सोशल वर्क में अपना योगदान दे पाएंगे।
मेरा मानना है कि सोशल मीडिया एक्टिविज़्म कोई आर्म चेयर एक्टिविज़्म नहीं है। दरअसल, सोशल मीडिया एक ऐसा मंच है जिसने एज बैरियर और लैग्वेंज बैरियर को तोड़ने का महत्वपूर्ण काम किया है। इस प्लेटफार्म पर बड़ी तादाद में लोग किसी एक मुद्दे पर एकजुट हो सकते हैं। हांलाकि पॉज़िटिव के साथ साथ इसका नेगेटिव आस्पेक्ट भी है। इसके अलावा समाज में बदलाव लाने के लिए इसके असाथ साथ गर्वमेंट का सपेर्ट भी बेहद ज़रूरी है।
इस जर्नी ने मुझे यही सिखाया है कि किसी भी काम के लिए कोई खास उम्र या जेंडर की आवश्यकता नहीं होती है। आपने जब किसी काम को करना शुरू किया। बस वहीं समय उस काम को करने का सही समय कहलाता है। हमें दूसरों से इस्पायर होना चाहिए।
उनकी जिंदगी से सीख लेनी चाहिए कि वे किस तरह मुश्किलों के बावजूद आगे बढ़े। इसके अलावा दूसरों की मदद करनी चाहिए, ताकि वो आगे बढ़ सकें। दूसरों को उम्पॉवर करने की दिशा में अवश्य कदम उठाना चाहिए। जो काम आपको सही लगे। उसी के लिए हामी भरनी चाहिए। वास्तव में यही जिंदगी है।
(सिया तायल को शी स्लेज अवॉर्ड की ‘सोशल कॉज चैंपियन’ श्रेणी में नामित किया गया है, उन्हें वोट करने और उनके जैसी और भी प्रेरक स्त्रियों के बारे में जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें – शी स्लेज अवॉर्ड्स )
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