जिस दिन राजश्री देशपांडे कैमरे के सामने नहीं रहती हैं, आप उन्हें गांवों और ग्रामीणों के बीच दे सकते हैं। वे उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में जुटी रहती हैं। औरंगाबाद के किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाली राजश्री एक एक्ट्रेस ही नहीं सोशल वर्कर भी हैं। राजश्री के पास खेतों में घूमने, खेतों में खेलने और फसलों के साथ बड़े होने की कई स्मृतियां हैं। वे गांवों में बसने वाले भारत की जरूरतों के प्रति काफी संवेदनशील हैं। वे गांवों में पानी, स्वच्छता, शिक्षा के लिए स्थायी समाधान ढूंढने का प्रयास कर रहीं हैं।
राजश्री देशपांडे ने अपने परिवार के सदस्यों को सूखे और शहरी विकास के कारण प्रभावित होते हुए देखा था। उनके संघर्षों ने ही उन्हें बदलाव लाने की प्रेरणा दी। स्क्रीन पर उन्हें एंग्री इंडियन गॉडेस, सेक्रेड गेम्स, एस दुर्गा, मंटो और हाल ही में ट्रायल बाय फायर जैसी परियोजनाओं में मजबूत भूमिकाओं में देखा गया है। ऑफ स्क्रीन उन्होंने जहां चाह वहां राह को फॉलो किया है।
2018 में राजश्री ने गांवों को सशक्त बनाने के लिए ग्रामीण उत्थान और सामुदायिक भवन बनाने के बारे में सोचा और एनजीओ ‘नभांगन फाउंडेशन’ (Nabhangan Foundation) लॉन्च किया। तब से उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
हेल्थ शॉट्स के साथ एक विशेष साक्षात्कार में राजश्री देशपांडे बता रहीं हैं उनके अब तक के सफर, इस कोशिश और जमीनी स्तर पर काम किए जाने की आवश्यकता के बारे में। प्रस्ततु हैं उनसे हुई बातचीत के अंश।
राजश्री का बचपन महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के औरंगाबाद में बीता। उनकी गर्मी की छुट्टियां गांवों में बीतती थीं। बचपन की सबसे सुखद यादों में से एक है उनका खेतों में घूमना और फसलों के साथ बड़ा होना। वे कहती हैं, ‘मैंने एक किसान के संघर्ष को बहुत करीब से और व्यक्तिगत रूप से देखा है। मेरे पिता सूखे और कई अन्य समस्याओं से जूझ रहे थे। उस समय मैं बहुत छोटी थी। मैं नहीं समझ पाती थी कि वास्तव में क्या हो रहा है।
सूखे के दिनों में हम बिना चप्पल के 45-48 डिग्री सेल्सियस में खेलते रहते थे। मेरा बचपन ऐसा था कि पैर में कांटा भी लग जाए, तो भी आंखों में आंसू नहीं आते थे। उस पर मिट्टी और पट्टी लगा देते और फिर खेलने के लिए निकल पड़ते।’
राजश्री आम खातीं, तो आम की गर्मी से चेहरे पर दाने निकल आते। बड़े होने के बाद ही सूखा सहित अन्य समस्याओं के बारे में उन्हें पता चला। वे स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए पुणे चली गयीं। वहां कई वर्षों तक विज्ञापन में काम किया, थिएटर, मिमिक्री और डांस भी किया। लेकिन उन्हें हमेशा कुछ कमी होने का एहसास होता।
थिएटर करने के दौरान राजश्री ने मुंशी प्रेमचंद, उदय प्रकाश, विजय तेंदुलकर, जीडी मडगुलकर के साहित्य से जुडीं। इनके साहित्य ने उन्हें अपने गांव से जोड़ दिया। वे कहती हैं, ‘जब आप पढ़ते हैं, तो यह आपको प्रभावित करता है। जब आप कुछ करते हैं, तो वह आपको गहराई से प्रभावित करता है। फिर आप सवाल करना शुरू कर देते हैं। बचपन में मुझे अपने गांव की समस्याओं के बारे में कुछ समझ नहीं आता था। मुंबई जाने के बाद मैं अपनी जड़ों से जुड़ पाई। माता-पिता के साथ बैठकर जमीनी हकीकत को मैंने समझा। मुझे पता चला कि सरकार की नीतियों को लोगों तक पहुंचाने का कोई जरिया नहीं है।’
जब 2015 में नेपाल में भूकंप आया था, तब राजश्री ने स्वेच्छा से वहां काम करने की इच्छा जताई। उनकी मां उनके निर्णय से बहुत खुश हुईं। उन्होंने उनसे कहा कि लगातार काम करने से ही स्थायी बदलाव आते हैं। उन्होंने मां की इस बात को गांठ बांध लिया और काम करने लगीं। उन्हें लगा कि इसके लिए प्रतिबद्धता, योजना और शोध की जरूरत है। तब उन्होंने फिल्मी काम के साथ-साथ सामाजिक कार्यों पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया।
वे कहती हैं, ‘जब मैंने शुरुआत की, तो मेरी मां ने कहा कि छोटी शुरुआत करो और समर्पित भाव से काम करो। एक गांव में मैंने कुछ दोस्तों की मदद से सबसे पहले पानी पर काम किया। शुरू में ग्रामीणों ने मुझ पर भरोसा नहीं किया। लेकिन 4-5 महीने बाद उन्हें लगा कि मैं उनके लिए कुछ तो कर रही हूं। धीरे-धीरे पूरा गांव एक साथ आ गया। हमें धीरे-धीरे स्थाई परिवर्तन दिखाई देने लगा।’
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कस्टमाइज़ करेंफिर आगे उनकी मां ने ही पानी के साथ-साथ समग्र विकास, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, सामुदायिक खेती और कई दूसरे सामजिक काम करने की प्रेरणा दी। उन्होंने काम को आगे बढ़ाने के लिए नेताओं को जोड़ने का प्रयास किया। आज लोग सरकारी कार्यालयों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। राजश्री खुश होकर बताती हैं कि आज वे जो कुछ हैं मां की बदौलत हैं।
वे कहती हैं, महिला पुरुष से अधिक खेती के बारे में जानती है। महिला वास्तव में खेत में पुरुषों की तुलना में अधिक काम करती है। मेरी मां भी किसान परिवार से हैं। वह अपने गांव की पहली मैट्रिक थी। उन्होंने देखा कि लोग कैसे पीड़ित हैं और इसीलिए उन्होंने शिक्षा को आगे बढ़ने के तरीके के रूप में चुना। राजश्री अवसाद में चली गयीं, जब किसानों का खेत प्रभावित हुआ था। उन्होंने किसानों को खेती के अलावा, अन्य कौशल सिखाये जाने की आवश्यकता को भी समझा।
राजश्री उन लोगों पर कोई टिप्पणी नहीं करतीं, जो सामजिक कार्यों की बदौलत धन जुटा रहे हैं। उन्हें लगता है कि जमीन से जुड़ कर काम करने वाले लोग नहीं हैं। वे सवाल करती हैं, ढेरों रिसर्च पेपर पड़े हैं और इंस्टाग्राम स्टोरी से लोगों को कितनी मदद मिल पाएगी? क्या उनका जीवन बदल पायेगा? कोई ग्रामीण इलाकों के लिए काम नहीं कर रहा है। मुंबई के एक हिस्से में सफाई अभियान चल रहे हैं, लेकिन पर्यावरण को फायदा नहीं पहुंच रहा है, तो कुछ तो गड़बड़ है ना! वास्तव में अपराधी को नहीं ढूंढ पाया जा रहा है।
वे बताती हैं कि बहुत कम लोग जानते हैं कि मैं एक सेलिब्रिटी हूं। गांवों में लोग वास्तव में नहीं जानते कि मैं फिल्मों में काम करती हूं। सब मुझे ‘ताई’ बुलाते हैं। मैं वहां एक सामाजिक कार्यकर्ता हूं। इसके अलावा, ऑनग्राउंड, मैं उस तरह से नहीं दिखती जैसी मैं स्क्रीन पर दिखती हूं। इसके उलट उन्हें जानने वालों को लगता है कि जब ‘राजश्री ये कर सकती हैं, तो हम भी कर सकते हैं’।
तब वे उन्हें छोटी शुरुआत करने का सुझाव देती हैं। हालांकि एक अभिनेत्री के तौर पर वे संघर्ष ही कर रही हैं।
राजश्री के लिए सामाजिक कार्य मानवता के लिए काम करना है। लोगों की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि आसपास के लोगों की भलाई के लिए काम करें। कुछ लोग उन्हें एक्टिविस्ट, पर्यावरणविद्, समाज सुधारक और परोपकारी कहते हैं, पर उनके लिए सिर्फ काम है। नैतिक जिम्मेदारी है।
सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं, एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए भी राजश्री का एक संदेश है। लोगों को अपने और दूसरों के प्रति दयालु होना चाहिए। दूसरों की बातें सुननी और उनके लिए काम करना चाहिए। खुद को समझें और नकारात्मकता और टॉक्सिसिटी से दूर रहें। अपने प्रति सच्चे रहें। आपको जो अच्छा लगता है उसका पालन करें।
(राजश्री देशपांडे को शी स्लेज अवॉर्ड की ‘सोशल कॉज चैंपियन’ श्रेणी में नामित किया गया है, उन्हें वोट करने और उनके जैसी और भी प्रेरक स्त्रियों के बारे में जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें – शी स्लेज अवॉर्ड्स )