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बच्चों में आत्मघाती विचार बढ़ा रहे हैं बॉडी शेमिंग और तनाव, जानें इस स्थिति से कैसे निपटना है

बढ़ रहे मानसिक तनाव के कारणा बच्चों में सेल्फ हार्म के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। जानते हैं बच्चों में सुसाइडल थॉटस के क्या कारण है और उन्हें इससे कैसे बचाएं
हर वक्त बच्चों को डांटना और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेशराइज़ करना माता पिता और बच्चे के मध्य बॉन्ड को कमज़ोर बनाता है। चित्र: शटरस्टॉक
ज्योति सोही Updated: 18 Oct 2023, 10:12 am IST
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वो देखो गोलगप्पा चला आ रहा है! अरे चश्मिश कहां जा रही है? इस तरह की तीखी बयानबाज़ी और टिप्पणियां कई बार बच्चों के नाजुक मन को गहरा सदमा पहुंचाती हैं। नतीजन बच्चे अलग-थलग रहने लगते हैं और दूसरे बच्चों के साथ कंफर्टेबल महसूस नहीं कर पाते हैं। ऐसे में कई बार बच्चों के मन में खुद को नुकसान पहुंचाने का ख्याल भी बढ़ने लगता है। इसके चलते अब बच्चों में भी सेल्फ हार्म (self harm) के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं।

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के मुताबिक 13,089 छात्रों ने 2021 में सुसाइड किया। वहीं 2011 में 7,696 स्टूडेंटस ने आत्महत्या (suicide) की थी। इन आंकड़ों में 70 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है। जो वाकई चिंता का विषय है। इस बारे में यूसीएलए के हेल्थ रिसर्चर का कहना है कि कई ऐसे मशीन लर्निंग मॉडल्स (machine learning models) हैं, जो उन बच्चों की आसानी से पहचान कर सकते हैं, जिनमें सेल्फ हार्म का रिस्क ज्यादा नज़र आ रहा है। जानते हैं बच्चों में सेल्फ इंज्यूरियस थॉट्स (self-injurious thoughts in children) बढ़ने के कारणों से लेकर उसके बचाव तक सब कुछ।

पहचानिए सेल्फ हार्म के वार्निंग साइन

बच्चों की बाजूओं और कलाई पर बैंडेज का निंरतर नज़र आना

हाथों और कलाई पर कट के निशान दिखना

विदआउट स्लीव और शॉटर्स पहनने से कतराना और फुल स्लीव्स के कपड़े हर वक्त पहनकर रखना

फैमिली और फ्रैंडस से दूरी बनाकर रखना और दूसरों के सामने आने से कतराना।

अपने आस पास निराशाजनक वातावरण बनाए रखना

बच्चों के चिड़चिड़ेपन पर ध्यान दें। चित्र : शटरस्टॉक

जानें बच्चों में आने वाले आत्मघाती विचारों के कारण

1. अकेलापन महसूस करना

वे बच्चे जो खासतौर से माता पिता की इकलौती संतान होते हैं। वे अक्सर खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं। माता पिता के कामकाजी होने के कारण वे अपना अधिकतर समय मेड्स या दोस्तों के साथ ही व्यतीत करते हैं। मन की बात कहने और स्कूल में होने वाले एक्सपीरिएंसिस को शेयर करने के लिए उन्हें पेरेंटस का वक्त नहीं मिल पाता है।

2. किसी डिसऑर्डर का शिकार होना

क्लासरूम में कुछ बच्चे अन्यों के मुकाबले स्पेशल होते है, जिन्हें टीचर भी दूसरे बच्चों की अपेक्षा अधिक समय और अटेंशन देती है। उनकी उस कमी का जब अन्य बच्चे मज़ाक उड़ाते हैं और उन्हें बुलिंग का सामना करना पड़ता है, तो ये भी आत्महत्या के बारे में सोचने का एक बड़ा कारण बन जाता है।

3. डिप्रेशन की समस्या

स्टडीज का ओवर प्रेशर होने से बच्चे कई बार बहुत ज्यादा डिप्रेस रहने लगते हैं। दरअसल, माता पिता की बढ़ने वाली उम्मीदें बच्चों को कमज़ोर और आत्महत्या की ओर बढत्ने के लिए जिम्मेदार साबित होती है। सभी बच्चे हाथ की उंगलियों के समान अलग अलग प्रकार से प्रतिभावान होते हैं। उन्हें एक ही तराजू में अन्यों के साथ तोलना बच्चे के लिए डिप्रेशन का कारण साबित होने लगता है।

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4. पारिवारिक झगड़े

कई बार माता पिता के रिश्तों में संतुलन न होना भी बच्चे के मन को प्रभावित करता है। हर वक्त घर में कलह देखकर बच्चा नर्वस और सहमा हुआ रहने लगता है। इसका असर बच्चे की फिजिकल और मेंटल ग्रोथ पर दिखने लगता है। ऐसे में बच्चे के मन में खुद को हर्ट करने के ख्याल आने लगते हैं।

पेरेंटस की डांट का नकारात्मक प्रभाव बच्चे के अंदर कई प्रकार के डिसऑर्डर का कारण साबित हो सकता है। चित्र: शटर स्टॉक

5. निगलेक्टिड फील करना

कई बार दो बच्चों में माता पिता का झुकाव एक की ओर ज्यादा होने लगता है, जो दूसरे बच्चे को मन ही मन परेशान करने लगता है। इससे बच्चा खुद को अकेला और निर्थक मानने लगता है। माता पिता एक को ज्यादा प्यार देते हैं और दूसरे बच्चे को जब अन्य लोगों के समक्ष गलत ठहराते हैं, तो इससे बच्चे का आत्मविश्वास (self-confidence) डगमगाने लगता है।

जिंदगी में ऐसे कई मोड़ आते हैं, जब व्यक्ति स्वयं को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं चूकता है। परिवार में किसी की अकस्मात मौत, तनाव, तलाक या स्कूल में गलत व्यवहार बच्चों में आत्मघात का कारण बनने लगते हैं। हर किसी के पास अलग.अलग ट्रिगर होते हैं जो आत्म.नुकसान करने की इच्छा पैदा करते हैं।

सामान्य सी लगने वाली ये 3 हरकतें भी हो सकती हैं ट्रिगर प्वाइंट्स

1 पेरेंट्स का चिल्लाकर बोलना

बच्चों पर जब माता पिता चिल्लाने लगते हैं, तो ये भी आत्महत्या के लिए एक ट्रिगर का काम करने लगता है। खासतौर से जब पेरेंटस अन्य लोगों के सामने माता पिता से इस प्रकार की बातें करते हैं, तो उनकी मनोदशा और भी बिगड़ने लगती है।

2 बच्चों की इच्छाओं को न सुनना

कई बार बच्चे माता पिता से मन की बात कहना चाहते हैं। मगर उनके पास बच्चों की बात सुनने का न तो वक्त होता है और न ही इंटरस्ट। ये सभी बातें पेरेंटस और बच्चों में दूरिया पैदा करती है और सुसाइडल थॉटस (suicidal thoughts)को बढ़ावा देती है।

3 तुलनात्मक व्यवहार

जब माता पिता पढ़ाई और अन्य एक्टिविटीज़ को लेकर अन्य बच्चों से आपकी तुलना करते हैं, तो ये बच्चों के मन को क्षुब्ध कर सकता है। वे अपने बच्चे की प्रतिभा को पहचानने की जगह अन्य बच्चों को अपने बच्चों से उंचा दर्जा देते हैं।

मददगार साबित हो सकती है सुसाइड प्रिडिक्शन विनडो

एनसीबीआई के मुताबिक एक रिसर्च के तहत 10 से 18 साल के 41,721 पेशेंट्स पर सुसाइड रिस्क प्रिडिक्शन (suicide risk prediction) किया गया। 360 दिनों तक चलने वाले इस प्रोसेस में डेमोग्राफिक्स, डाइग्नोज, लेबोरेटरी टेस्ट और मेडिकेशंस की मदद ली गइ। इसके बाद 53 से लेकर 62 फीसदी लोगों में ससुसाइड पॉजिटिव सब्जेक्ट पाए गए। सुसाइडल प्रिडिक्शन विंडो (Suicidal prediction window) की मदद से बच्चों से लेकर टीनएजर्स में सुसाइड रिस्क का पता लगाया जा सका है। ऐसे में बच्चों में सेल्फ हार्म को जानने के लिए मशीन लर्निंग विडोज़ की मदद ली जा सकती है।

सेल्फ सुसाइडल थॉटस से छुटकारा दिलाएंगे ये आसान उपाय

1. बच्चों के साथ समय बिताएं

अपने बिजी शेडयूल में से कुछ वक्त बच्चों के लिए निकालें। इस बात को समझने का प्रयास करें कि अगर बच्चों के साथ समय बिताएंगे। तभी वो आपको समझ सकेंगे और उनका पूर्ण विकास भी हो पाएगा। उनके साथ आउटिंग प्लान करें।

यह समझना गलत है कि बच्चों को तनाव नहीं होता। चित्र : अडोबी स्टॉक

2. अपने फैसलों में उन्हें शामिल करें

जब भी आप किसी विषय पर बात करें या कोई फैसला लें तो बच्चों की मर्जी भी अवश्य जानें। इससे बच्चों में काफिडेंस की भावना बिल्ड होने लगती है। वे अब आपसे भी अपनी हर बात शेयर करने लगते हैं। इससे रिश्तों में फासला कम हो जाता है।

3. उनकी समस्या समझें

अगर बच्चा आपको निराश और तनावग्रस्त लग रहा है, तो उसकी मानसिकता को समझने की कोशिश करें और उसकी समस्या को जानें। समस्या के कारण से लेकर निवारण हर जगह उसका साथ दें और बच्चों को आगे बढत्रने के लिए भी प्रेरित करें।

4. थेरेपी का लें सहारा

बच्चे की मेंटल हेल्थ को बनाए रखने के लिए थेरेपी एक बेहतरीन उपाय है। इससे थेरेपिस्ट बच्चे की समस्या को न केवल जान पाएगा बल्कि उससे बाहर निकालने में भी मदद करेगा।

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ज्योति सोही

लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं। ...और पढ़ें

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