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नई समस्याओं में पुराने लगने लगे हैं कानून, मिलिए सोशल मीडिया की लीगल एडुकेटर अमृता वर्मा से

कोर्ट की लंबी-चौड़ी भाषा में आपके हिस्से के काम की बात को निकालकर कुछ मिनटों में आपको समझाने वाली अमृता वर्मा से हेल्थशॉट्स ने बात की।
मिलिए लीगल एडुकेटर अमृता वर्मा से
टीम हेल्‍थ शॉट्स Updated: 5 Sep 2023, 10:32 am IST
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“ये दुनिया बहुत बड़ी है लेकिन अपनी आंखों से हम पूरी दुनिया देख सकते है… इसलिए हमें अपनी सोच सीमित नहीं बल्कि अपना विजन, अपना गोल बड़ा रखना चाहिए।” ये कहना है सोशल मीडिया पर मौजूद लीगल एडुकेटऱ अमृता वर्मा का। एक समय पर सिर्फ मनोरंजन का अड्डा कहे जाने वाले इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसी सोशल मीडिया साइट्स भी आजकल ज्ञान बढ़ाने की एक किताब बन गईं है। सिर्फ एक से डेढ़ मिनट के दायरे में कुछ क्रिएटर्स ऐसा कमाल कर जाते है, जिसमें कई घंटे का ज्ञान समावेशित होता है।

ऐसे ही कोर्ट की लंबी-चौड़ी भाषा में आपके हिस्से के काम की बात को निकालकर कुछ मिनटों में आपको समझाने वाली अमृता वर्मा से हेल्थशॉट्स ने बात की। तमाम चुनौतियों से लड़कर और समाज की पुरुषवादी मानसिकता को अपने हौसलों से धराशायी करने वाली अमृता अपने जीवन में हमेशा से कुछ ‘थ्रिलिंग’ करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने लॉ फील्ड में कदम रखने के बारे में सोचा और अपने आप को सफल बनाया।

‘कोर्ट के बाहर छतरी लेकर तुम भी बैठ जाओगे…’

अपने लॉ करियर की बात को याद करके अमृता कहतीं हैं कि,’ लॉ के लिए लोगों की मानसिकता कुछ ऐसी ही होती है कि वे कहते हैं कोर्ट के बाहर छतरी लेकर तुम भी बैठ जाओगे… , लोगों की इसी मानसिकता को बदलने और कुछ थ्रिलिंग करने के लिए मैंने लॉ की पढ़ाई की और इस कोर्स को करते हुए मुझे पता चला कि जब भी आप कोई केस जीतते हो तों एक वकील के नज़र से ये महज़ कोई केस जीतना ही नहीं बल्कि आपकी हृदयगति को बढ़ाने वाले क्षण होता है।

‘लड़की है, इससे नहीं होगा’

वकालत एक तरह का पुरुष-प्रधान पेशा है और इसमें लोग सोचते हैं कि ‘लड़की है, इससे नहीं होगा’ । वकालत के अपने शुरूआती दिनों को याद करते हुए अमृता बताती हैं कि, ‘एक बार उनके सीनियर ने उन्हें बताया कि क्लाइंट्स लड़कियों के पास नहीं आते क्योंकि क्लाइंट का मानना होता है कि महिला वकील तनाव नहीं झेल सकती और महिला वकील उतने सुचारु तरह से काम नहीं कर सकती, जितना एक पुरुष वकील कर सकता है। तो उन्होंने कहा कि लड़कियां किसी से कम नहीं हैं, इसलिए उन्हें किसी से कम नहीं आंकना चाहिए।’

लीगल एडुकेटर अमृता वर्मा

‘महिलाओं की उड़ान को रोक देता है समाज’

अपने वकालत के दिनों में जब अमृता जूनियर हुआ करती थी, तब कि बात को याद करते हुए वे कहतीं है कि,’ हर वकील चाहता है कि उसकी जूनियर एक महिला हो क्योंकि महिला वकील हर केस से जुड़ें कामों को बहुत ही अरेंज तरह से करतीं हैं और साथ ही बहुत ही तेज़ी से करतीं हैं।

लेकिन अगर वहीं महिला उनके बराबरी में आकर काम करना चाहे और उनसे अच्छा काम करने लगें, तो वही वकील और उनके साथ सारा समाज महिलाओं की उड़ान को रोक देता है।’

‘लीगल अवेयरनेस’ बढ़ाना भी थ्रिलिंग काम है

सोशल मीडिया पर कोर्टरूम की भाषा को आसान तरह से उकेरना और उसे लोगों के समझने के लिए 1 मिनट के अंदर बनाने को अमृता एक बहुत बड़ी चुनौती मानती है। अमृता का कहना है कि इस काम को करने के लिए उन्हें बहुत पढ़ना पड़ता है और ऐसी भाषा तैयार करनी पड़ती है, जिससे आम जनता आसानी से समझ जाए।

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साथ ही सोशल मीडिया की ताकत बताते हुए अमृता कहती है कि, ‘सुप्रीम कोर्ट में किसी वकील के क्लाइंट उनकों मेरी वीडियो भेज कर बता रहे थे कि आप गलत तरह से केस लड़ रहें हैं, आपको ऐसे लड़ना चाहिए’, इसको अपनी उपलब्धि बताते हुए अमृता का मानना हैं कि आम जनता अब वकालत के मामले में भी अवेयर होने लगी है और क्या गलत है क्या सही ये भी समझने लगी है।

‘कानून अब पुराने लगने लगें हैं’

भारतीय कानूनों में समानता की बात करते हुए अमृता कहतीं हैं कि ,’ एक वकील के नाते ये उनके कर्तव्य है कि उन्हें पुरुष और महिला, दोनों ही पक्ष के प्रति समान रहना चाहिए। लेकिन कानून में अभी भी ऐसी कई खामियां है, जिनके कारण पुरुष पक्ष अधिक प्रताड़ित होता है।’

ऐसे ही कुछ केस का उदाहरण देते हुए अमृता कहतीं हैं कि, ‘शादी का वादा करने के बाद इंटिमेट होने और उसके बाद शादी के लिए मना करने के कई केस आजकल देखने को मिलते हैं। ऐसे में अगर पुरुष दोषी होता है तो उसके लिए सज़ा हैं, लेकिन अगर महिला दोषी होती है तो उसके लिए कोई सज़ा नहीं है। जो कि पुरुषों के साथ एक असामनता है, जिसमें कुछ सुधार होना चाहिए।’

मानसिक प्रताड़ना पर खुल कर करें बात

कई ऐसी महिलाएं हैं जो अपने वर्कप्लेस, अपने घर या कहीं भी मानसिक प्रताड़ित होती है और वे कभी-कभी किसी डर से तो कभी ये सोच के की कहीं वे ज्यादा ओवरथिंक तो नहीं कर रहीं, उस चीज़ को जाने देती हैं, जो बिलकुल गलत है।

ऐसी परिस्थितियों के लिए ही महिलाओं के समर्थन में कानून बनें हैं और वे अपनी आवाज़ उठा कर, मानसिक प्रताड़ना जैसी स्थितियों से बच सकतीं हैं।

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टीम हेल्‍थ शॉट्स

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