आपके मस्तिष्क को तेजी से बूढ़ा बना रहा है आपका खराब लाइफस्टाइल, एक्सपर्ट से जानिए कैसे
नवंबर 1906 में एक जर्मन मनोचिकित्सक एलोइस अल्जाइमर ने ट्यूबिंगन में हुए एक मनोरोग बैठक में भाग लिया। उन्होंने बैठक में एक असामान्य महिला के क्लिनिकल फीचर प्रस्तुत किया। महिला के मस्तिष्क में पैरानॉयड आइडिएशन, मेमोरी इमपेयरमेंट और प्रोग्रेसिव डिमेंशिया विकसित हुआ था। एलोइस ने लोगों के समक्ष यह बताया कि शव परीक्षण में उनके मस्तिष्क में अघोषित असामान्यताओं को देखा गया है।
अल्जाइमर डिजीज का नाम कैसे पड़ा (Alzheimer’s disease)
उन्होंने इसे एक्स्ट्रासेलुलर स्पेस में न्यूरिटिक प्लाक और न्यूरॉन्स के भीतर न्यूरोफिब्रिलरी टेंगल्स के रूप में नामित किया। उन्होंने बताया कि इसके कारण न्यूरोडीजेनेरेशन और सेल डेथ हुई। इससे डिमेंशिया हो गया। उनके निष्कर्ष को सुनकर सहयोगी एमिल क्रेपेलिन ने तुरंत इस समस्या को “अल्जाइमर डिजीज” कह दिया। एक सदी बीत जाने के बावजूद अब तक इस अक्षम करने वाली बीमारी का इलाज सामने नहीं आ पाया है। विशेषज्ञ बताते हैं कि अच्छे लाइफस्टाइल से अल्जाइमर डिजीज से बचाव किया जा सकता है।
व्यक्तित्व और व्यवहार में परिवर्तन (social behaviour)
अब तक प्लेक के मुख्य घटक के रूप में अमाइलॉइड बीटा और न्यूरॉन्स के भीतर फॉस्फोराइलेटेड ताऊ को टैंगल के रूप में पहचान की जा चुकी है। इससे इसके बायोलॉजी की खोज में तेजी आई। अल्जाइमर के रोगी यूरोलॉजिस्ट के सामने मेमोरी लॉस, व्यक्तित्व और व्यवहार में परिवर्तन और कभी-कभी भाषा क्षमताओं में दिक्कत और विजुओ-स्पेशियल स्किन में हानि के साथ पहुंचते हैं।
न्यूरोलॉजिस्ट रीजनल श्रिंकेज को स्पष्ट करने के लिए ब्रेन की इमेजिंग पर भरोसा करते हैं। वे क्लिनिकल फीचर को कोरिलेट करने के लिए ग्लूकोज के उपयोग को कम करते हैं।
अल्जाइमर रोग के लिए थेरेपी (Therapy for Alzheimer’s disease)
कई चिकित्सीय परीक्षण का उपयोग करके अमाइलॉइड के संचय को बाह्य रूप से अवरुद्ध करने और ताऊ के फॉस्फोराइलेशन को आंतरिक रूप से क्लिनिकल ट्रायल में विफल कर दिया जाता है। यदि एक बार अल्जाइमर के लक्षण दिख जाते हैं, तो चिकित्सा अनिवार्य हो जाती है।
निर्धारित दवाएं ब्रेन में एसिटाइलकोलाइन नाम के न्यूरोट्रांसमीटर के फेल हुए प्रोडक्शन को बढ़ाती है और न्यूरल डीजेनरेशन को धीमा करने का प्रयास करती है। कुछ दवाएं रोग को नियंत्रित करने के लिए निर्धारित हैं।
वर्तमान में दृष्टिकोण यही है कि कई रास्ते ब्रन फेल्योर के भयावह रूप की ओर ले जाते हैं। यह स्वीकार कर लिया गया है कि न्यूरल डीजेनरेशन और डीजेनरेशन दोनों रोज होते हैं। भले ही वे एक संतुलन के साथ हों।
जीवनशैली में बदलाव है जरूरी ( Change in Lifestyle for prevention of Alzheimer’s disease)
जिस व्यक्ति के लाइफस्टाइल में एक्टिविटीज शामिल न हो, जिसने डायबिटीज का इलाज न कराया हो। इनके अलावा, हाई ब्लड प्रेशर वाले लोग और जो लोग मिडल लाइफ में अच्छी तरह नींद न ले पाते हों। ऐसे लोग जो नींद संबंधी बिमारी स्लीप एपनिया से ग्रस्त हों, वैसे आनुवंशिक रूप से कमजोर व्यक्ति में अल्जाइमर रोग का विकास तेजी से होता है।
नियमित कार्डियोवैस्कुलर एक्सरसाइज, साउंड स्लीप, सब्जियों और फलों से भरपूर संतुलित आहार, एनर्जेटिक और पॉजिटिव विचारों से लैस, ये सभी हेल्थ इनवेस्टमेंट हैं, जो ब्रेन में रीजेनरेशन को बढ़ावा देते हैं। सामाजिक स्तर पर एक्टिव रहने, अपनी रुचि और पैशन वाले काम को प्रश्रय देने और बढ़िया ओरल हाइजीन वाले लोग भी न्यूरो प्रोटेक्टिव होते हैं। स्वच्छता बनाए रखना भी न्यूरो-सुरक्षात्मक हैं।
ग्लाइम्फैटिक सिस्टम
ब्रेन में विशेष नींद से संचालित एक्सक्रीटरी सिस्टम की खोज की गई। इसे ‘ग्लाइम्फैटिक सिस्टम’ नाम दिया गया। इसके परिणामस्वरूप बायोमार्कर के रूप में अमाइलॉइड बायोलॉजी बनी। सामान्य व्यक्तियों में नियमित रूप से ग्लाइम्फैटिक सिस्टम अमाइलॉइड और ताऊ दोनों का उत्सर्जन करती है। यहां तक कि मस्तिष्क के लिए इस संतुलन को कुछ रातों तक हुई नींद की कमी भी प्रतिकूल रूप से टिल्ट सकती है।
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कस्टमाइज़ करेंइसलिए स्लीप एपनिया जैसे नींद संबंधी विकार (Sleeping Disorder) मस्तिष्क अमाइलॉइड और ताऊ संचय को तेज करने वाले जैविक उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकते हैं। डिसिप्लीन स्लीप की स्वच्छता बनाए रखने और नींद संबंधी विकारों के प्रारंभिक उपचार अल्जाइमर रोग के आसन्न खतरे को दूर कर सकते हैं।
चर्चित लोग भी हुए डीजेनरेटिव डिसऑर्डर के शिकार (Degenerative Disorder)
सार्वजनिक डोमेन में स्टर्लिंग करियर वाले कई दिग्गज व्यावसायिक मजबूरी के कारण नींद की कमी के शिकार हो गए हैं। उनमें अल्जाइमर रोग विकसित हो गया। रोनाल्ड रीगन, मार्गरेट थैचर, अगाथा क्रिस्टी, चार्ल्स ब्रोंसन, उमर शरीफ, रीटा हेवर्थ और सीन कॉनरी जैसे नाम उन लोगों की श्रेणी में हैं, जो काफी बुजुर्ग होने पर इस विनाशकारी डीजेनरेटिव डिसऑर्डर के शिकार हुए।
स्पष्ट रूप से सभ्यता के कुछ बायप्रोडक्ट जैसे कि खराब खानपान, बहुत कम नींद लेना, परिवारों के सामाजिक ताने-बाने के टूटने, बुढ़ापे में अकेलापन जैसे कम पहचाने गए कारक हैं, जो मॉडर्न मेडिसिन के बावजूद लाइलाज हैं। इसके लिए व्यक्ति को रुककर आत्मनिरीक्षण जरूर करना चाहिए।
अल्जाइमर से बचाव के लिए हमें अपने लाइफस्टाइल पर विचार करना चाहिए और उसे रिफॉर्म करने की कोशिश भी करें।
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