दुनिया में हर तीन सेकंड में एक व्यक्ति डिमेंशिया (Dementia) का शिकार हो रहा है। डब्ल्यूएचओ (WHO) के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021 में दुनिया में डिमेंशिया से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 55 मिलियन हो गई। हर 20 साल में इसकी संख्या दोगुनी होने की संभावना हो जाती है। वैश्विक स्तर पर डिमेंशिया मौत का सातवां सबसे बड़ा कारण है। भारत में इस बीमारी से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 10 मिलियन है। वर्ष 2050 तक इस संख्या के 14 मिलियन तक बढ़ने का अनुमान है। इतनी बड़ी संख्या में बुजुर्गों का इस बीमारी की चपेट में आना डराने वाला है। इसलिए जरूरी है कि आप अल्जाइमर और डिमेंशिया के बारे में सब कुछ ठीक से जानें।
इन दिनों बुजुर्ग लोगों में सबसे अधिक जिस बीमारी के होने का डर सताता है, वह है डिमेंशिया या अल्जाइमर। विश्व भर में इसकी संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ रही है। डिमेंशिया और अल्जाइमर को हमेशा के लिए खत्म नहीं किया जा सकता है। सही समय पर इसकी पहचान कर इसके नुकसान को कम किया जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि आप इसके बारे में सब कुछ जानें।
चूंकि डिमेंशिया बुजुर्गाें में आम बीमारी है। इसलिए 60 वर्ष से ऊपर की उम्र के साथ यह बीमारी होने की संभावना भी बढ़ जाती है। यह जरूरी है कि बुजुर्गों को इस बीमारी के बारे में बुनियादी जागरूकता हो। इसके शुरुआती लक्षणों के बारे में वे जान पायें। इससे वे बचाव के उपायों को समय रहते अपना सकेंगे।
सितंबर को अल्जाइमर मंथ के रूप में जाना जाता है। दुनिया भर के लोगों में डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसी खतरनाक बीमारी के बारे में जागरूकता पैदा होना जरूरी है। डिमेंशिया और अल्जाइमर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए ही 21 सितंबर को ‘विश्व अल्जाइमर दिवस’ मनाया जाता है।
डिमेंशिया या मनोभ्रंश कोई विशेष बीमारी नहीं है। यह एक सामान्य शब्द है, जो कॉग्निटिव इमपेयरमेंट को दर्शाता है। इसका अर्थ यह है कि डिमेंशिया से प्रभावित व्यक्ति मानसिक रूप से सामान्य नहीं है। वह किसी भी बात या एक्टिविटी को सोचने, याद रखने या निर्णय लेने की क्षमता खो देता है। बीमारी बढ़ने पर रोगी के व्यवहार में बेचैनी और गुस्सा भी देखा जा सकता है।
यह मुख्य रूप से न्यूरॉन्स के डीजेनरेशन या लॉस के कारण होता है। हालांकि सभी मेमोरी लॉस डिमेंशिया नहीं है। यह स्वाभाविक है कि बुजुर्ग लोग अक्सर किसी का नाम भूल जाते हैं या कोई सामान कहीं रखकर भूल जाते हैं। इसके बारे में बहुत ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। पर जब बुजुर्ग बार-बार ऐसा व्यवहार करने लगें, तो स्थिति चिंताजनक हो सकती है।
यदि प्रारंभिक अवस्था में ठीक से निदान नहीं किया जाता है, तो डिजेनरेशन अक्सर तेज होता है। पेशेंट गंभीर डिमेंशिया से पीड़ित हो सकता है। इसके बाद पहले की स्थिति में लौटना लगभग असंभव होता है। ऐसे रोगी जीवन की वास्तविकताओं और अपने परिवार के लोगों को भी भूल जाते हैं।
डिमेंशिया’ और ‘अल्जाइमर’ एक ही बीमारी के नाम नहीं हैं। ये वास्तव में भिन्न हैं। डिमेंशिया अम्ब्रेला टर्म है।
अल्जाइमर डिजीज का एक छोटा-सा सेट मात्र है। अल्जाइमर में डिमेंशिया का एक बड़ा अनुपात होता है। यह 60 से 70 प्रतिशत तक हो सकता है। इसलिए लोग कभी-कभी इन दोनों शब्दों का एक-साथ उपयोग करने लग जाते हैं। डिमेंशिया के अलग रूप हैं- “लेवी बॉडीज”, “मिक्स्ड डिमेंशिया”, “वैस्कुलर डिमेंशिया”, “फ्रंटो टेम्पोरल”, आदि।
डिमेंशिया का सटीक कारण अभी भी स्पष्ट नहीं है। आनुवंशिक रूप से कुछ प्रोटीन इसके लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। इसलिए इससे बचने के लिए ठोस कदम उठाना मुश्किल है। दूसरे अन्य रोगों की तरह इसमें भी शरीर और मन को स्वस्थ रखना जरूरी होता है। इसके लिये उपयुक्त लाइफ स्टाइल भी जरूरी होता है। संभव है इससे डिमेंशिया होने की संभावना घटे। इसके लिये कुछ चीजों का पालन करना बहुत जरूरी है।
चूंकि डिमेंशिया जैसी बीमारी को रोकना मुश्किल है, इसलिए हमें इसके साथ रहना सीखना होगा। यह हममें से किसी के साथ भी हो सकता है। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें कुछ सामाजिक/चिकित्सीय कदम उठाना होगा।
डिमेंशिया को रोकना मुश्किल है। समय पर पहचान और दवा से इसकी प्रगति की प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता है। पर हमें ऐसे मरीजों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील होने और उनके साथ मानवीय व्यवहार करने की भी जरूरत है।
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