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Valentine’s Day Special : 56 में प्यार हुआ 57 में की शादी, मिलिए शैलबाला मार्टिन और डॉ राकेश पाठक से

IAS Shailbala Martin Love Story : सीनियर आईएएस ऑफिसर शैलबाला मार्टिन और डॉ राकेश पाठक की कहानी न केवल सबसे यूनीक लव स्टोरीज में शुमार होती है, बल्कि प्यार को एक नए तरीके से समझने में भी मदद करती है।
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डॉ राकेश पाठक और शैलबाला मार्टिन दोनों अलग-अलग समुदायों से संबंध रखते हैं। चित्र : डॉ राकेश पाठक
योगिता यादव Updated: 12 Feb 2024, 17:37 pm IST
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प्यार को ठीक तरह से समझ पाना अब भी बड़े-बड़ों के वश के बाहर है। 16 की उम्र में जो पहली नजर का असर लगता है, वही उम्र बढ़ने के साथ-साथ अलग तरह की अपेक्षाओं को साथ ले लेता है। वैलेंटाइन्स डे (Valentine’s Day) के अवसर पर मिलते हैं एक ऐसे जोड़े से, जिनकी लव स्टोरी (Love story of Shailbala Martin and Rakesh Pathak) की शुरुआत फिफ्टी प्लस की एज (Love story at fifty plus) में हुई। हम बात कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार डॉ राकेश पाठक (Journalist Dr. Rakesh Pathak) और मध्य प्रदेश सरकार (MP Govt.) में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी शैलबाला मार्टिन (IAS officer Shailbala Martin) की । हेल्थ शॉट्स के इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में, इन दोनों ने कही अपने दिल की बात।

पहला परिचय और आगे बढ़ी बात

अपनी लव स्टोरी की शुरुआत के बारे में बात करते हुए शैलबाला मार्टिन (Shailbala Martin love story) बताती हैं, “मेरी तरफ से ही इस आकर्षण की शुरुआत हुई थी। इसलिए नहीं कि हमें आगे जाकर शादी करनी है, बल्कि मैं उन्हें कई टीवी डिबेट्स में बोलते हुए सुनती थी। उनके तर्क और बाेलने का अंदाज मुझे बहुत अच्छा लगता था। पॉलीटिक्स में मेरी भी रुचि है और डिबेट सुनना अच्छा लगता है।

आज के माहौल में जिस निर्भीकता से वे अपनी बात कहते हैं, उसने मुझे बहुत प्रभावित किया। फेसबुक स्क्रॉल करते हुए, यू मेय नो (You may know) में जब इनकी तस्वीर देखी, तो सोचा क्या ये वही शख्स हैं, जिन्हें हम अकसर टीवी डिबेट में सुनते रहते हैं! कोई परिचय तो था नहीं, मैंने वैसे ही फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी।”

जीवनसाथी के बिछड़ने के बाद कैसे संभव हुई एक नए रिश्ते की शुरुआत?

डॉ राकेश पाठक की 25 वर्षीय शादीशुदा जिंदगी के बाद उनकी पहली पत्नी का देहांत हो चुका था। उनकी बड़ी बेटी की शादी भी हो चुकी थी और घर में छोटी बेटी और पत्नी की मां, यानी राकेश पाठक जी की सास उनके साथ रहती थीं। इस नए रिश्ते को लेकर उनकी स्थिति शैलबाला जी से अलग थी। वे कहते हैं, “शुरुआत में तो हमने ऐसा कुछ सोचा ही नहीं था। बल्कि हम दोनों एक-दूसरे को ठीक से जानते थी नहीं थे। फेसुबक पर जुड़ने के बाद मुझे इनके विचार मालूम हुए। ये आमी एक जाजाबोर नाम से एक ट्रेवलॉग भी लिखती हैं। उससे मुझे लगा कि लिखने-पढ़ने वाली एक प्रशासनिक अधिकारी हैं।”

पहली पत्नी के देहांत के बाद डॉ राकेश पाठक अपनी दो बेटियों के साथ रह रहे थे। चित्र: डॉ राकेश पाठक

“शैलबाला जी हमारी ही तरह बहुत सैक्युलर विचारधारा की हैं। वैचारिक साम्य के बाद फोन नंबर एक्सचेंज हुए, फिर एक पत्रकार और प्रशासनिक अधिकारी की तरह औपचारिक मुलाकातें भी हुईं। इन्हीं मुलाकातों में यह पता चला कि इन्होंने अब तक शादी नहीं की है। तब इनकी उम्र 56 साल की थी, मैं एक विधुर हूं, यह भी इन्हें तभी पता चला। समाज, राजनीति और प्रशासनिक माहौल पर बातें करते हुए हमने एक-दूसरे को जाना।”

कोरोना काल में बढ़ने लगी आत्मीयता 

डॉ पाठक आगे बताते हैं, “तब तक काेरोना महामारी की दूसरी लहर शुरू हाे चुकी थी। हम कुछ लोगों ने मिलकर एक मोर्चा बनाया था, जिसमें हम गुजरात और महाराष्ट्र से पलायन कर रहे मजदूरों को खाना खिलाया करते थे। मैंने यह महसूस किया कि उस दौरान ये मेरी बहुत चिंता किया करती थीं। तब मुझे लगा कि इनके मन में मेरे लिए कुछ कंसर्न हैं।

इस तरह बात आगे बढ़ी, हालांकि शादी का फैसला करना हम दोनों के लिए ही बहुत मुश्किल था। पर मेरी बेटियों और उनकी नानी ने इस रिश्ते पर बहुत प्रसन्नता जाहिर की। अन्य मित्रों और रिश्तेदारों ने भी खुलकर इस रिश्ते का स्वागत किया। आज हम दोनों साथ-साथ हैं और खुश हैं।”

आभासी दुनिया ने भी किया योगदान

राकेश जी तो वास्तव में बहुत अलग हैं। इनकी खूबियां इतनी सारी हैं, कि मैं प्रभावित हो गई। सबसे अच्छी बात ये बहुत प्यार भरे इंसान हैं। बहुत सहयोग करने वाले। मैं जब डॉक्टर पाठक की सोशल मीडिया पोस्ट पढ़ती थी, तो उस पर आने वाले कमेंट्स भी मैं पढ़ती थी। उन्हें पढ़कर मैंने जाना कि डॉक्टर पाठक का समाज में बहुत सम्मान है और लोग इन पर भराेसा करते हैं। इनसे मिलकर मैंने जाना कि ये जैसे बाहर दिखते हैं, वैसे ही वास्तव में ये हैं।

सहजता ने किया आकर्षित 

डॉ पाठक कहते हैं, “जहां तक आईएएस होने का प्रश्न है, तो ये बहुत ही सहज हैं। इनकी सहजता ने ही मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित किया। मैं बहुत सारे लोगों से मिलता हूं, पर ये बहुत सहज हैं। इनसे मिलकर मैंने जाना कि हम जिस अलग क्लास की बात करते हैं, यह उनमें से नहीं हैं। बड़े पदों पर रहने के बावजूद, ये उस तरह की आईएएस अधिकारी नहीं हैं, जो अपने आपको अलग रखती हों। ये बहुत आत्मीय और प्रेम पूर्ण स्त्री हैं।”

“समाज और परिवार के लिए इन्होंने जितना सहयोग किया है, उसे जानने के बाद मेरे मन में इनके प्रति सम्मान और बढ़ गया था। कोरोना काल में भी मेरा काम तो लोगों को सोशल मीडिया पर दिख रहा था। पर ये अकेले ही पर्दे के पीछे बहुत काम कर रहीं थीं। तब मुझे लगा कि ये उसी तरह की शख्सियत हैं, जैसा किसी व्यक्ति को होना चाहिए।”

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मुश्किल था विवाह का फैसला 

दूसरा सवाल जो आपने पूछा, यह बिल्कुल सही है कि जब हम छोटे होते हैं, तो अपने पेरेंट्स से डरते हैं और बड़े होकर हमें बच्चों का ख्याल होता है। मैं खुद भी समाज भीरू आदमी हूं। ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता, जिससे समाज में मेरी छवि खराब हो या लोग मेरे बारे में बातें करें। बेटियों की भी चिंता थी।

बेटियां चाहती थीं कि मैं अपना जीवन फिर से शुरू करूं। वे चिंतित थीं कि मां के जाने के बाद पापा अकेले हैं। बड़ी बेटी की शादी हो चुकी थी और छोटी बेटी की सगाई होने वाली थी। उन्हें चिंता थी कि हम अपनी दुनिया में मगन हो जाएंगे, और पापा अकेले कैसे रहेंगे। आपको आश्चर्य होगा कि वे मुझे बार-बार इसके लिए टोका करती थीं।

बेटियां चाहतीं थीं कि हम इस रिश्ते की शुरुआत करें। चित्र : डॉ राकेश पाठक

असल में एक बार मेरे जन्मदिन पर शैलबाला जी ने केक भेज दिया था, ग्वालियर के मेरे पते पर। मैं घर पर था नहीं और वह पैकेट बड़ी बेटी ने खोला। उन्होंने शैलबाला जी के बारे में पूछा, इन्हें फेसबुक पर ढूंढा, इनके फोटो देखे, विचार जानें और जब यह जाना कि ये अविवाहित हैं और हमारी थोड़ी-बहुत दोस्ती है।

तभी से उनका आग्रह यह था कि मैं शैलबाला जी की इच्छा जानूं, कि क्या वे जीवन भर मेरे साथ रहना चाहेंगी? हालांकि बेटियों को हमारी दोस्ती या लिवइन में रहने पर भी कोई आपत्ति नहीं थी।

हां मगर थोड़ा सोचना पड़ा। एक तो उम्र, उम्र के साथ कुछ चीजें रिजर्व हो जाती हैं। पर हमें कोई दिक्कत ही नहीं आई। कब दोस्त से हम जीवनसाथी बन गए, हमें कोई असुविधा ही नहीं हुई।

बहुत कुछ बदलता है उम्र के साथ 

राकेश पाठक : असल में हम दोनों एक-दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान चुके थे। हमारी बहुत सारी रुचियां एक सी रहीं हैं। इसलिए कभी कोई दिक्कत आई ही नहीं। हालांकि हर व्यक्ति अलग-अलग तरह का होता है। यह जरूरी नहीं कि सब एक जैसे हों, थोड़ी बहुत जो असहमतियां हो भी, हमने तय किया कि उनके साथ भी आगे बढ़ा जा सकता है। बकायदा हमने विवाह किया, सनातन पद्धति और ईसाई पद्धति से भी। यह बात सही है कि ज्यादा उम्र में एडजस्ट करना कठिन होता है, पर हमें एक-दूसरे के साथ समायोन में कोई दिक्कत नहीं आई।

यहां देखें पूरा इंटरव्यू : 

कुछ बातें ये मेरी मान लेती हैं, कुछ बातें मैं इनकी मान लेता हूं और कुछ बातों पर हम दाेनों अपने-अपने मोर्चे पर डटे रहते हैं।

शैलबाला मार्टिन : काफी सारी बातें तो डॉक्टर साहब ने बता ही दी हैं, लेकिन मेरे साथ एक दिक्कत यह थी कि मैं जब से नौकरी में आई हूं, तब से अकेली रह रही हूं। मुझे अपने लिए यही चिंता थी कि तीस-इकत्तीस साल अकेले रहने के बाद क्या मैं किसी के साथ परिवार में एडजस्ट कर पाऊंगी? दोस्त होना या प्रेम करना और बात होती है, जबकि पूरा वक्त साथ रहना और बात है।

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मुझे यह भी डर था कि मैं डॉक्टर पाठक की जरूरतों को पूरा कर पाऊंगी या नहीं, उन्हें स्पेस दे पाऊंगी या नहीं, उनका ध्यान रख पाऊंगी कि नहीं? क्योंकि मुझे इन चीजों की आदत नहीं थी। लेकिन जब हमने साथ रहना शुरू किया, तो हमने एक-दूसरे को कॉम्प्लीमेंट किया। जहां मेरी कमियां थीं, वहां डॉक्टर पाठक ने ध्यान रखा और जहां डॉक्टर पाठक की कमियां होती हैं, वहां मैंने ध्यान रखा।

पिछले तीस वर्ष की सर्विस में शैलबाला मार्टिन कई जगहों पर रहीं। चित्र: शैलबाला मार्टिन

बस थोड़ा बहुत नमक-मिर्च बराबर जो हस्बैंड वाइफ में होता ही है, वह हमारे बीच भी है। यह होना भी चाहिए, इससे रिश्ता अच्छा बना रहता है। हम उम्र के उस पड़ाव पर हैं, जहां हम दोनों ही मेच्योर हैं। कोई समस्या होती भी है, तो बातचीत से हल निकाल लेते हैं। ईगो हम दोनों में ही नहीं है, तो यह एक और अच्छी बात है।

मी टाइम कैसे निकाल पाती हैं?

शैलबाला : दिन भर तो हम दोनों अपने-अपने काम में बिजी रहते हैं। पर शाम को हम हर रोज घूमने निकलते हैं। कभी डिनर के पहले या डिनर के बाद। भोपाल में जितने भी कला-संस्कृति के कार्यक्रम होते हैं, उनमें हिस्सा लेते हैं। अभी मेरी फील्ड ड्यूटी नहीं है, तो हर शनिवार-रविवार हम दोनों कहीं घूमने निकल जाते हैं। यह मैंने तय कर रखा है कि वीकेंड साथ में बिताना है।

आप दोनों बताएं कि असल में आपके लिए प्रेम क्या है?

शैलबाला : प्रेम मेरे लिए शुरू से ही इस तरह का रहा है, जहां हम एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं। एक-दूसरे की इच्छाओं का सम्मान करते हैं। मेरी मां, भाई और अन्य परिजनों के लिए भी मेरी प्रेम की परिभाषा यही है। हां शादीशुदा जीवन में या रोमांटिक रिश्ते में प्रेम की अपेक्षाएं थोड़ी और बढ़ जाती हैं। पर वहां भी मूल यही रहता है।

डॉ पाठक : प्रेम वो है जो कबीर दास जी कह गए हैं, “प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाई । राजा परजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाई ॥”

शीष उतारने का आशय यह है कि अपने अहंकार को उतार कर धर देना है। आप जिसके प्रेम में हैं, उसके प्रति कोई ईगो नहीं होनी चाहिए। एक-दूसरे के प्रति समर्पण, कुछ भी न्यौछावर कर देने का जज़्बा ही प्रेम है। मैं सौभाग्यशाली हूं कि जीवन के इस मोड़ पर मुझे ऐसा जीवनसाथी मिला।

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योगिता यादव

कंटेंट हेड, हेल्थ शॉट्स हिंदी। वर्ष 2003 से पत्रकारिता में सक्रिय। ...और पढ़ें

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