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बचपन के अच्छे अनुभव कम करते हैं भविष्य में एंग्जाइटी और अवसाद का जोखिम, जानिए कैसे

कहते हैं कि बचपन जितना सुंदर होता है, भविष्य भी उतना ही मजबूत बनता है। शोध ने भी अब इस बात को सत्यापित कर दिया है। साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी के शोध बताते हैं कि बचपन के बुरे अनुभव बड़े होने पर भी डिप्रेशन और एंग्जायटी के कारण बनते हैं।
बचपन की अच्छी यादें भविष्य में आपके एंग्जाइटी और अवसाद के लक्षणों को कम करती हैं। चित्र : अडोबी स्टॉक
स्मिता सिंह Updated: 2 May 2024, 13:23 pm IST
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कोविड महामारी के बाद बच्चों-किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर लगातार शोध हो रहे हैं। महामारी को ध्यान में रखते हुए उनके अनुभवों और प्रभावों पर भी शोध और अध्ययन किये जा रहे हैं। कनाडा के एक हालिया शोध में सामने आया है कि बचपन की अच्छी यादें भविष्य में आपके एंग्जाइटी और अवसाद के लक्षणों को कम करती हैं। आइए जानते हैं क्या है खुशहाल बचपन और मेंटल हेल्थ (childhood experience effect on mental health) का कनैक्शन।

क्या कहता है कनाडा का शोध (Research on positive childhood) 

बच्चों का यदि बचपन सुखद यादों से परिपूर्ण होता है, तो उनकी मेंटल हेल्थ बेहतर होती है। पॉजिटिव चाइल्डहुड के अनुभव अवसाद और एंग्जायटी के लक्षणों को काफी कम करते हैं। इसके लिए बड़ी कक्षा के स्टूडेंट्स का अध्ययन किया गया।
कनाडा के साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी में हेल्थ साइंस की प्रोफेसर और शोधकर्ता डॉ, हसीना समजी ने 8,800 से अधिक ग्रेड 11 के छात्रों के डेटा का उपयोग करते हुए अध्ययन किया। अध्ययन में 8,800 से अधिक ग्रेड 11 के छात्रों को शामिल किया गया। महामारी की पांचवीं लहर के दौरान जनवरी से मार्च 2022 में भी डेटा एकत्र किया गया था। यह वह समय था जब दैनिक COVID-19 मामलों की संख्या सबसे अधिक थी। इसमें सामने आया कि खुशहाल बचपन अवसाद और एंग्जायटी के लक्षणों को काफी कम कर सकता है। इससे उनकी जीवन के प्रति संतुष्टि की भावना बढ़ती है।

बच्चों का यदि बचपन सुखद यादों से परिपूर्ण होता है, तो उनकी मेंटल हेल्थ बेहतर होती है। चित्र : अडोबी स्टॉक

क्यों जरूरी है बच्चों के लिए सकारात्मक माहौल

इसके विपरीत प्रतिकूल अनुभवों की ज्यादा संख्या भविष्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए जोखिम बढ़ा देती है। इसके लिए पेंडेमिक के समय और उसके लहर के दौरान अध्ययन किया गया। शोधकर्ता ऐसे वातावरण को बढ़ावा देने पर जोर देती हैं, जो बचपन के सकारात्मक अनुभवों को पोषित करते हैं।
इसमें पाया गया कि कोरोना से बचाव के लिए बच्चों के साथ कम्युनिटी स्तर पर जहां प्रयास किया गया, वहां अवसाद और एंग्जायटी कम देखी गई। वहीं कोविड के कारण जो बच्चे लोगों से घुल-मिल नहीं पाए, उनमें अवसाद अधिक देखा गया।

बचपन के अनुभवों का मेंटल हेल्थ पर प्रभाव (childhood experience effect on mental health) 

स्टडी में शामिल छात्रों की उम्र सीमा 18 वर्ष तक थी। सामजी के अनुसार, बचपन के अधिक सकारात्मक अनुभव डिप्रेशन और एंग्जाइटी के लो लेवल और बेहतर जीवन संतुष्टि से जुड़े थे। उनका मानसिक स्वास्थ्य बढ़िया था। इसके विपरीत जिन लोगों के बचपन में प्रतिकूल अनुभव अधिक थे, उनमें अवसाद और चिंता के लक्षण अधिक थे। उनमें जीवन के प्रति संतुष्टि का लेवल भी बहुत कम था।
चार या अधिक प्रतिकूल बचपन के अनुभव वाले एडल्ट में अवसाद और जीवन के प्रति संतोष की भावना में कमी चार गुना अधिक देखी गयी। एंग्जाइटी का अनुभव करने की संभावना तीन गुना अधिक देखी गई।

बच्चों के लिए आसपास का पॉजिटिव माहौल सबसे अधिक जरूरी है। चित्र : शटर स्टॉक

कैसे करें बच्चे के लिए पॉजीटिव माहौल तैयार

सीनियर सायकोलॉजिस्ट डॉ. ईशा सिंह बताती हैं, ‘ बच्चों के लिए आसपास का पॉजिटिव माहौल (childhood experience effect on mental health) सबसे अधिक जरूरी है। पेरेंट्स डांटने या मारने-पीटने की बजाय उनकी समस्याओं को रचनात्मक तरीके से सुलझाने की कोशिश करें। इससे बॉन्डिंग मजबूत होगी और रिश्ता भरोसेमंद हो पायेगा। पेरेंट्स के साथ-साथ स्कूल और समाज भी बच्चे के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखे। ज़रूरत पड़ने पर उन्हें हर तरह की मदद दी जाए। माता-पिता को बच्चों के साथ समय बिताने के साथ, उनके व्यवहार के पैटर्न पर नज़र रखने की ज़रूरत पड़ती है। बच्चा कब झूठ बोलता है, कब वह निर्दोष है, जैसी बातों का सूक्ष्म अवलोकन करना होगा।’

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स्मिता सिंह

स्वास्थ्य, सौंदर्य, रिलेशनशिप, साहित्य और अध्यात्म संबंधी मुद्दों पर शोध परक पत्रकारिता का अनुभव। महिलाओं और बच्चों से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करना और नए नजरिए से उन पर काम करना, यही लक्ष्य है। ...और पढ़ें

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