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पेरीमेनोपॉज में दिखाई देते हैं ये 3 कॉमन साइन्स, जानिए इस स्थिति में खुद को कैसे संभालना है

पेरीमेनोपॉज की अवधि महिलाओं में अलग अलग पाई जाती है। इस स्थिति में शरीर में हृदय रोगों, ओस्टियोपिरोसिस, मोटापा और डायबिटीज़ समेत कई समस्याओं का खतरा बढ़ने लगता है (Symptoms of perimenopause and tips to deal with it)।
पेरीमेनोपॉज की अवधि महिलाओं में अलग अलग पाई जाती है। चित्र- अडोबी स्टॉक
ज्योति सोही Published: 11 Mar 2024, 21:00 pm IST
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महिलाओं के शरीर में समय समय पर हार्मोनल बदलाव आते रहते हैं। ऐसा ही एक फेज़ है पेरीमेनोपॉज, जिसमें शरीर में हार्मोनल असंतुलन बढ़ने से न केवल पीरियड साइकल अनियमित हो जाती है बल्कि इससे शरीर में कई परिवर्तन देखने को मिलते हैं। पेरीमेनोपॉज की अवधि महिलाओं में अलग अलग पाई जाती है। इस स्थिति में शरीर में हृदय रोगों, ओस्टियोपिरोसिस, मोटापा और डायबिटीज़ समेत कई समस्याओं का खतरा बढ़ने लगता है। सबसे पहले जानें पेरीमेनोपॉज क्या है और किन टिप्स की मदद से इस समस्या से डील किया जा सकता है (Symptoms of perimenopause and tips to deal with it)

पेरिमेनोपॉज़ किसे कहा जाता है

इस बारे में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ निशा जैन का कहना है कि पेरिमेनोपॉज़ उस नेचुरल प्रोसेस को कहते हैं, जिसमें पीरियड साइकल चलने के दौरान शरीर में कई प्रकार के बदलाव आने लगते हैं। ओवरीज़ अपना कार्य करना धीरे धीरे बंद कर देती है। इसके चलते ओव्यूलेशन अनियमित होने लगता है। कभी पीरियड साइकिल लंबी हो जाती है, तो कभी ब्लड फ्लो में उतार चढ़ाव आने लगता है। शरीर में ये लक्षण होर्मोन असंतुलन को दर्शाते हैं। शरीर में घटने वाला एस्ट्रोजन का स्तर नींद न आना, हॉट फलशिज़ और चिड़चिड़ेपन का कारण साबित होता है।

नेचर रिव्यूज़ एंडोक्रिनोलॉजी के अनुसार मेनोपॉज से 8 से 10 साल पहले यानि 30 या 40 की उम्र में शरीर में दिखने वाले बदलावों को पेरिमेनोपॉज़ कहा जाता है। पेरिमेनोपॉज़ के दौरान फीमेल होर्मोन एस्ट्रोजेन, जो आवरीज़ से प्रोडयूस होता है, उसमें गिरावट आने लगती है। इसके चलते अनियमित पीरियड्स, पसीना आना और तनाव जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।

एस्ट्रोजेन के स्तर में उतार चढ़ाव आने से पीरियड साइकल में अनियमितता बढ़ने लगती है। इस दौरान ब्लड फ्लो अचानक से बढ़ने लगता है, जिससे शरीर में हीमोग्लोबिल की कमी का खतरा बना रहता है। पेरिमेनोपॉज़ की समय सीमा कुछ महीनों से लेकर चार साल तक रहती है।

जब रीप्रोडक्टिव हार्मोन में बदलाव हो रहा होता है, तो इसका मेंटल हेल्थ पर प्रभाव पड़ सकता है। चित्र : अडोबी स्टॉक

जानते हैं पेरीमेनोपॉज के संकेत

1. अनियमित पीरियड साइकल

पेरीमेनोपॉज के दौरान ओव्यूलेशन प्रभावित होने के चलते पीरियड्स की समय सीमा बढ़ती घटती रहती है। ये अवधि सात दिन या उससे अधिक हो सकती है। शरीर में होर्मोन के असंतुलन के चलते इस समस्या का सामना करना पड़ता है। अगर पीरियड साइकल में 60 दिन या उससे अधिक का गैप बना हुआ है, तो इसका अर्थ है कि ऐसी महिलाएं पेरीमेनोपॉज के आखिरी चरण में हैं।

2. मूड स्विंग होना

स्वभाव में चिड़चिड़ापन बढ़ना और चीजें रखकर भूल जाना पेरीमेनोपॉज का संकेत है। इसके चलते डिप्रेशन का भी खतरा बना रहता है। होर्मोनल बदलाव के चलते नींद न आने की समस्या से भी दो चार होना पड़ता है। दरअसल, शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोन प्रोडयूस न होने से भावनात्मक समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है।

3. नींद न आना

होर्मोन इंबैलेंस का प्रभाव नींद पर भी नज़र आने लगता है। शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर कम होने से नींद की कमी बढ़ने लगती है। दरअसल, ये घटती प्रजनन क्षमता का संकेत हैं। ऐसे में उचित आहार के माध्यम से शरीर में सेरोटोनिन और मेलाटोनिन के स्तर को रेगुलेट करने में मदद मिलती है।

होर्मोन इंबैलेंस का प्रभाव नींद पर भी नज़र आने लगता है। शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर कम होने से नींद की कमी बढ़ने लगती है।चित्र : एडॉबीस्टोंक

इन टिप्स को करें फॉलो

1. सॉल्ट और शुगर से बनाएं दूरी

ज्यादा मात्रा में शुगर और सॉल्ट का इनटेक करने से हॉट फ्लैश यानि पसीना बहने लगता है। ऐसे में सोडियम की अत्यधिक मात्रा से ऑवरऑल हेल्थ को नुकसान पहुंचता है। साथ ही तला भुना खाने से शरीर में वसा का स्तर भी बढ़ने लगता है। इसके अलावा स्मोकिंग और अल्कोहल से भी दूर रहें।

2. निर्जलीकरण से बचें

शरीर में पानी की नियमित मात्रा रहने से कमज़ोरी और मसल्स पेन की समस्या से राहत मिलती है। उचित मात्रा में पानी पीने से स्किन भी हाइड्रेटिड रहती है। इससे एजिंग साइंस की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। दिनभर में घूंट घाट कर पानी पीएं। इसके अलावा हेल्दी पेय पदार्थों का सेवन भी फायदेमंद साबित होता है।

अधिक वजन वाली या मोटापे से ग्रस्त बड़ी उम्र की महिलाओं में स्वस्थ वजन वाली महिलाओं की तुलना में स्तन कैंसर होने का खतरा अधिक होता है। चित्र- अडोबी स्टॉक

3. हेल्दी वेट मेंटेन करें

शरीर में जमा अतिरिक्त कैलोरीज़ से मुक्ति पाने के लिए व्यायाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं। इससे शरीर में बढ़ने वाले फैट्स को बर्न करने में मदद मिलती है। साथ ही शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ने और ऑक्सीज़न का स्तर उचित होने से स्वस्थ वज़न पाया जा सकता है।

आहार में पोषक तत्वों को जोड़ें

रजोनिवृत्ति के नज़दीक आते ही शरीर में कई बदलाव नज़र आने लगते हैं। इन बदलावों को रिवर्स करने के लिए विटामिन, मिनरल, कैल्शियम और प्रोटीन से भरपूर डाइट लें। अपने रूटीन में हेल्दी डाइट लें और मील स्किप करने से भी बचें।

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ज्योति सोही

लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं। ...और पढ़ें

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