सोशल टैबू और लिंगभेद करता है महिलाओं में पेन मैनेजमेंट को प्रभावित, जानिए कितनी गहरी है ये खाई
हेल्थ केयर मॉडल में सांस्कृतिक, नस्लीय, लिंग और जातीय असमानताओं को लेकर कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं। दरअसल,दिनों दिन बढ़ती जातीय विविधता के चलते क्लीनिकल स्टाफ को मरीजों का उनके कल्चरल बैकराउंड से लेकर उनके रहन सहन और भाषा व कल्चर के हिसाब से ही ख्याल रखना चाहिए। साथ ही उनकी आवश्यकताओं को भी पूर्ण करना चाहिए। इसके अलावा उन्हें इस बात को समझना होगा कि जाति और जातीयता दर्द उपचार (pain management and women) को कैसे प्रभावित करती है।
अलग-अलग हैं महिलाओं और पुरुषाें की तकलीफ के मायने (gender disparities in pain management)
महिलाओं और पुरूषों के अधिकारों से लेकर उनकी पीड़ा तक हर क्षेत्र में समाज ने उन्हें दो कैटेगरीज़ में बांट दिया है। जहां पुरूषों से जुड़ी समस्याओं को लेकर समाज संवेदनशील है। तो वहीं महिलाओं के असहनीय दर्द को कम करना तो दूर उन्हें उपेक्षा का शिकार भी होना पड़ता है।
कुछ सांस्कृतिक धारणाओं के कारण महिलाओं के दर्द को जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। इसके चलते वो अल्पनिदान और अल्प उपचार से ग्रस्त रहती हैं। दरअसल, हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स दर्द को लेकर सांस्कृतिक संदर्भ को पूरी तरह से नहीं समझ पाते हैं। संस्कृति और तकनीक के मध्य बढ़ने वाले फासले के चलते महिलाओं की दर्द संबंधी चिंताओं के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण नहीं अपनाया जाता है।
जेंडर के हिसाब से परसेप्शन और एक्सप्रेशन में अंतर (doctors not listening to female patients study)
रिसर्च में इस बात को हाइलाइट किया गया है कि पुरुष और महिलाएं दर्द को कैसे समझते और व्यक्त करते हैं। इस रिपोर्ट की मानें, तो दोनों के एक्सप्रेस करने में बहुत अंतर है। कहीं न कहीं बायोलॉजिकल,साइकॉलोजिकल और सोशियो कल्चरल फैक्टर्स इसके लिए जिम्मेदार हैं। जहां पुरूष दर्द को छुपाते और नज़रअंदाज़ करते हैं। तो वहीं महिलाएं दर्द को उजागर करती है और मदद भी मांगती हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों के संयोजन से महिलाएं दर्द को लेकर चिंतित हो जाती हैं।
सांस्कृतिक बाधाओं से लेकर कम्यूनिकेशन तक दर्द की अभिव्यक्ति को लेकर कई प्रकार के कल्चरल मतभेद पाए जाते हैं। जो दर्द के अनुभवों को उचित तरीके से समझने में बाधाएँ पैदा करने लगते हैं। भाषा में पाई जाने वाली भिन्नताएं दर्द की अभिव्यक्ति को मुश्किल और अलग बना देती है। इससे उपचार जटिल होने लगता है और मरीज को पूरी तरह से राहत नहीं मिल पाती है।
दर्द प्रबंधन को प्रभावित करने वाले सामाजिक आर्थिक कारक
कई बार सामाजिक आर्थिक कारक भी पेन मैनेजमेंट में बाधांए पैदा करने लगते हैं। हेल्थ इंश्योरेंस का न होना, अन्य वित्तीय बाधाएं और सीमित स्वास्थ्य सुविधाएं व भौगोलिक दूरदर्शिता दर्द प्रबंधन तक पहुंचने में परेशानी का सबब बनने लगती हैं।
इसके अलावा महिलाओं के साथ कई प्रकार का भेदभाव भी उनमें क्रानिक पेन की समस्या को जटिल रूप दे देता है। इससे महिलाओं की दर्द की शिकायतों के बावजूद असमान व्यवहार उपेक्षा का कारण बनने लगता है। इससे महिलाओं को समय पर उपचार नहीं मिल पाता है।
कल्चरल सेंसिटीविटी बढ़ाने पर करना होगा
दर्द प्रबंधन में सांस्कृतिक संवेदनशीलता और समझ बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य देखभाल एक्सपर्टस के लिए कुछ खास रणनीतियाँतय की जानी चाहिएं। इसके तहत हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स को कल्चरल एजुकेशन का होना ज़रूरी है। इसके अलावा दर्द से संबंधित जानकारी हासिल करने के लिए सांस्कृतिक मान्यताओं को समझने की भी आवश्यकता होती है।
इसके लिए रोगियों के साथ ओपन कम्यूनिकेशन को बढ़ावा देना बेहद ज़रूरी है। अगर डॉक्टर्स या हेल्थ केयर से जुड़े लोगों को कुछ बातों की जानकारी नहीं है, तो उसके लिए इंटरप्रेटर्स की भी मदद ली जा सकती है। ताकि रोगियों को उचित स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकें।
पॉलिसी एंड एडवोकेसी इनिशिएटिव्स भी हैं जरूरी
इसमें मौजूदा नीतियों का अवलोकन शामिल होना चाहिए। इसका मकसद दर्द प्रबंधन में जेंडर इक्वेलिटी पर विचार करना चाहिए। इसके दायरे से लेकर प्रभाव और सुधार तक सभी क्षेत्रों पर चर्चा करना ज़रूरी है। भविष्य की नीतियों में सांस्कृतिक कारकों पर विचार करने के महत्व पर जोर देते हुए, महिलाओं के लिए दर्द देखभाल में सुधार के लिए संभावित नीति परिवर्तन की आवश्यकता है।
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