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Arthritis in menopause : मेनोपॉज के साथ बढ़ सकती है अर्थराइटिस की जटिलताएं, जानिए इस स्थिति से निपटने के उपाय

मेनोपॉज फेज का प्रभाव जॉइंट्स और कार्टिलेज पर पड़ सकता है। इसके कारण आर्थराइटिस हो सकता है। विशेषज्ञ बता रहे हैं इसका कारण और उपचार के उपाय।
मेनोपॉज के कारण एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर में कमी आती है। इससे हड्डियों और जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। चित्र : अडोबी स्टॉक
स्मिता सिंह Updated: 18 Oct 2023, 10:15 am IST
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अकसर मेनोपॉज का प्रभाव हमारी हड्डियों पर भी पड़ता है। इस दौरान बहुत तेजी से हॉर्मोन में बदलाव आते हैं। इस कारण हॉर्मोनल इम्बैलेंस की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। इसका सीधा असर एस्ट्रोजन लेवल पर पड़ता है। यह हॉर्मोन बोन हेल्थ को भी मजबूती देता है। इसकी कमी से मेनोपॉज के दौरान गठिया (arthritis in menopause) होने की संभावना बढ़ जाती है।

अस्थि और उपास्थि पर कैसे काम करता है एस्ट्रोजन

एस्ट्रोजन हार्मोन हड्डियों और जोड़ों के साथ-साथ मस्तिष्क, हृदय और त्वचा के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जरूरी है। एस्ट्रोजन रिसेप्टर्स जॉइंट कार्टिलेज पर भी पाए जाते हैं। एस्ट्रोजन एंटी इंफ्लामेटरी प्रभाव वाले होते हैं। ये जोड़ों (Joints) और उपास्थि (Cartilage) को सुरक्षा प्रदान करते हैं। एस्ट्रोजन हड्डियों के निर्माण में भी मदद करता है।

क्यों होता है मेनोपॉज आर्थराइटिस (Menopause Arthritis)

गुरुग्राम के क्लाउड नाइन हॉस्पिटल में सीनियर कन्सल्टेंट गायनेकोलोजी डॉ. रितु सेठी कहती हैं, ‘ आमतौर पर महिलाओं को 45-55 वर्ष की उम्र के बीच मेनोपॉज होती है। मेनोपॉज के कारण एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर में कमी आती है। इससे हड्डियों और जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे जोड़ों का दर्द जैसी समस्या होने लगती है। एस्ट्रोजन की कमी जॉइंट्स को कमजोर करने वाला हो सकता है। यह गतिशीलता और लचीलेपन को भी कम कर देता है। हड्डियां पतली भी होने लगती हैं। इसे ‘ऑस्टेपोरोसिस’ कहा जाता है। मेनोपॉज में हड्डियों की कमजोरी आम कारण है। इससे बोन फ्रैक्चर की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।’

हिप जॉइंट पर सबसे अधिक प्रभाव (menopause arthritis effect on hip joint) 

डॉ. रितु कहती हैं, ‘ जोड़ों के आसपास दर्द, स्टिफनेस और सूजन की समस्या आम है। सुबह में यह समस्या सबसे अधिक अनुभव होता है। दिन बढ़ने के साथ इसमें सुधार होता है। हिप जॉइन्ट और घुटनों जैसे बड़े जोड़ों पर अधिक प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि महिलाओं में आर्थराइटिस होने का खतरा अधिक होता है। पीठ, हाथ और अंगुलियों के जोड़ भी आमतौर पर प्रभावित होते हैं। जॉगिंग जैसे हाई इनटेंसिटी वाले व्यायाम समस्या को बढ़ा सकते हैं। यही वजह है कि मेनोपॉज यानी रजोनिवृत्ति के बाद वजन भी बढ़ जाते हैं। जोड़ों के दर्द के कारण एक्टिविटी सीमित हो जाती है। इससे वजन बढ़ने लगता है, जो जोड़ों पर दबाव डालता है।’

जीन भी हो सकते हैं जिम्मेदार

कई शोध भी बताते हैं कि मेनोपॉज फेज में आर्थराइटिस होने की संभावना बढ़ जाती है। इसका कारण आनुवंशिक (Genetics) भी हो सकता है। यह विरासत में मिले असामान्य जीन की उपस्थिति के कारण एस्ट्रोजेन के चयापचय में गड़बड़ी हो सकती है। जो महिलाएं स्तन कैंसर थेरेपी जैसी एस्ट्रोजन अवरोधक दवाएं ले रही हैं, उनमें जोड़ों में दर्द और सूजन होने का खतरा बढ़ जाता है। जिन महिलाओं ने ओवरी को हटाने के लिए ऑपरेशन करवाया है, उनमें भी मेनोपॉज आर्थराइटिस विकसित होने का खतरा अधिक होता है। मेनोपॉज रूमेटॉइड आर्थराइटिस का कारण भी बन सकता है।

ओरल गर्भ निरोधक का सकारात्मक प्रभाव

डॉ. रितु के अनुसार, जो महिलाएं एस्ट्रोजन युक्त ओरल गर्भ निरोधक का उपयोग कर रही हैं, उनमें आर्थराइटिस विकसित होने का जोखिम कम हो जाता है। इससे हड्डी और जोड़ों पर एस्ट्रोजन का सुरक्षात्मक प्रभाव पड़ता है।

ओरल गर्भ निरोधक पिल्स  का हड्डी और जोड़ों पर एस्ट्रोजन का सुरक्षात्मक प्रभाव पड़ता है। चित्र : शटरस्टॉक

यहां हैं आर्थराइटिस से बचाव और उपचार के उपाय

1 एस्ट्रोजन रिप्लेसमेंट थेरेपी (Estrogen replacement therapy)

एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर की पूर्ति उपचार के साथ-साथ रोकथाम का आधार भी बनती है। डॉक्टर के परामर्श के अनुसार, एस्ट्रोजन रिप्लेसमेंट थेरेपी शुरू करने से जोड़ों के दर्द और सूजन के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है।

2 नियमित एक्सरसाइज (Exercise)

स्वस्थ वजन बनाए रखने, नियमित एक्सरसाइज और संतुलित आहार लक्षणों को नियंत्रण में रखने में मददगार होते हैं। जोड़ों पर दबाव और बार-बार होने वाले तनाव को कम करना जरूरी है। जोड़ों की सुरक्षा के लिए कठोर सतहों पर जॉगिंग करने से बचना चाहिए। जोड़ों पर बहुत अधिक दबाव या भार डाले बिना योग और तैराकी मददगार हो सकते हैं

3 संतुलित आहार (balance diet)

आवश्यक पोषक तत्वों और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर फल और सब्जियां लें। संतुलित आहार वजन नियंत्रण में भी मदद करेगा, जिससे जोड़ों पर तनाव कम होगा। आहार में नट्स, साबुत अनाज और ड्राई फ्रूट्स को शामिल करने से कैल्शियम और मैग्नीशियम की आपूर्ति में मदद मिलती है।

संतुलित आहार वजन नियंत्रण में भी मदद करेगा, जिससे जोड़ों पर तनाव कम होगा। चित्र : एडॉबीस्टॉक

विटामिन बी3, ओमेगा फैटी एसिड और मछली के तेल की सप्लीमेंट लेने से भी मदद मिल सकती है।

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4 फिजियोथेरेपी (Physiotherapy)

ओरल पेन किलर, इंट्रा-आर्टिकुलर इंजेक्शन, फिजियोथेरेपी, स्प्लिंट्स भी मददगार हो सकते हैं। जरूरत पड़ने पर सर्जिकल विकल्प पर भी विचार किया जा सकता है।

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स्मिता सिंह

स्वास्थ्य, सौंदर्य, रिलेशनशिप, साहित्य और अध्यात्म संबंधी मुद्दों पर शोध परक पत्रकारिता का अनुभव। महिलाओं और बच्चों से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करना और नए नजरिए से उन पर काम करना, यही लक्ष्य है। ...और पढ़ें

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