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पीडियाट्रिक अस्थमा : बच्चों में अस्थमा कंट्रोल करने के लिए जरूरी है पेरेंट्स का जागरुक होना

बच्चे नाजुक और चंचल होते हैं। जब वे किसी बीमारी की चपेट में आते हैं, तो उनसे ज्यादा चिंता पेरेंट्स के लिए बढ़ जाती है। इसलिए जरूरी है कि पेरेंट्स पीडियाट्रिक अस्थमा के बारे में सही जानकारी से अवगत हों।
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बच्चों को अस्थमा से बचाने के लिए पेरेंट्स का जागरुक होना और भी ज्यादा जरूरी है। चित्र : अडोबी स्टॉक
Dr Sanjiv S Gupta Updated: 18 Oct 2023, 10:20 am IST
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पीडियाट्रिक अस्थमा (pediatric asthma) सांस की एक क्रोनिक बीमारी (Chronic disease) है, जिसमें फेफड़ों में सांस की नलियां सूजकर संकरी हो जाती हैं। यह बच्चों की सबसे आम क्रोनिक बीमारियों में से एक है, जिससे भारत में लगभग 7.9 प्रतिशत बच्चे पीड़ित हैं। इन बच्चों के माता-पिता और देखभाल करने वाले पीडियाट्रिक अस्थमा के नियंत्रण, उनके दीर्घकालिक उपचार और इलाज के परिणामों में सुधार लाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि वे अस्थमा के लक्षणों, कारण और उपचार के बारे में सब कुछ जानें। ताकि इसे बच्चों में होने वाले अस्थमा (pediatric asthma) को नियंत्रित किया जा सके।

क्रोनिक अस्थमा के मामले में सोच-समझकर निर्णय लेने के लिए उन्हें पर्याप्त सहयोग प्रणाली की जरूरत होती है। ताकि वो इस बीमारी की जानकारी पाकर इसे पहचान सकें और अपने बच्चों में इसके लक्षणों, लक्षण बढ़ाने वाली चीजों, इसके लक्षणों के बढ़ने के समय आदि के बारे में जानकर यह समझ सकें कि यह कितनी गंभीर हो सकती है, और इसे कैसे नियंत्रित (how to manage asthma in a child) किया जा सकता है।

बच्चों में अस्थमा के बढ़ते जाने के लिए जिम्मेदार कारक और समाधान 

1 बीमारी की जागरुकता कम होना

अस्थमा जैसी सांस की क्रोनिक बीमारी को समझना और उसके बारे में जागरुक रहना इस बीमारी के दीर्घकालिक नियंत्रण के लिए बहुत जरूरी है। जो इसकी समय पर पहचान, निदान, और इलाज द्वारा संभव हो सकता है।

जरूरी है सही जानकारी 

अस्थमा पीड़ित अधिकांश लोग अपनी बीमारी को लेकर भ्रमित हो जाते हैं, और इसे  ‘श्वास’ और ‘दमा’ का रोग मान लेते हैं। इसलिए इस बीमारी को पहचानकर इसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है। बच्चों में इसके समय पर निदान से परिणामों में काफी ज्यादा सुधार हो सकता है क्योंकि अस्थमापीड़ित लगभग 80 प्रतिशत बच्चों में इसके लक्षण 6 साल की आयु तक प्रकट हो जाते हैं।

इसके प्रति लापरवाही न बरतें। चित्र : अडोबी स्टॉक

2 अस्थमा के इलाज से जुड़ा स्टिग्मा 

माता-पिता एवं देखभाल करने वालों में अस्थमा के बारे में जागरुकता की कमी और इसके इलाज व नियंत्रण को लेकर अनेक पूर्वनिर्मित धारणाएं हैं। इसलिए बच्चों में अस्थमा अनेक मिथ और कलंक से जुड़ा हुआ है। इन धारणाओं में शामिल है कि इसके इलाज से बच्चों का विकास रुक जाता है, उन्हें इसकी लत पड़ जाती है, उनका वजन बढ़ने लगता है।

इस बीमारी के इलाज से वो सामान्य जीवन व्यतीत करने में असमर्थ हो जाते हैं। इन सभी भ्रांतियों की वजह से माता-पिता अपने बच्चे के रोग को छिपाते रहते हैं और उसका इलाज नहीं कराते, और डॉक्टर के पास तभी पहुंचते हैं, जब बीमारी के लक्षण बहुत गंभीर हो जाते हैं ।

क्या है जरूरी 

बच्चों में अस्थमा का निदान और इलाज न कराने पर उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है। उन्हें बार-बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है, खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें बार-बार स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ती है, और उनके जीवन की गुणवत्ता कम हो जाती है। इसलिए ऐसे प्रभावशाली शिक्षा और जागरुकता कार्यक्रमों की जरूरत है, जो अस्थमा और इसके इलाज के बारे में लोगों को शिक्षित करने पर केंद्रित हों।

3 अस्थमा के निदान में आने वाली मुश्किलें 

बच्चों में अस्थमा का निदान करना मुश्किल हो सकता है। इसका कारण यह है कि बच्चों की अनेक समस्याओं के लक्षण एक से होते हैं । इसके अलावा अस्थमा के साथ-साथ अनेक समस्याएं हुआ करती हैं, जिनमें राईनिटिस, साईनुसिटिस, एसिड रिफ्लक्स या गैस्ट्रोएसोफेजियल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी), ब्रोंकाईटिस एवं रेस्पिरेटरी सिंसाईटल वायरस (आरएसवी) शामिल हैं।

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समझिए निदान का तरीका 

अस्थमा का निदान कुछ परीक्षणों द्वारा किया जाता है, जिनमें लंग फंक्शन टेस्ट (5 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों में), पीक एक्सपायरेटरी फ्लो (पीईएफ) और स्पाईरोमीट्री टेस्ट हैं, जो यह पता लगाने में मदद करते हैं कि साँस की नली में हवा के बहाव में रुकावट आ रही है या नहीं। फेनो टेस्ट सांस की नली में सूजन की पहचान करता है (ज्यादातर स्कूल जाने वाले बच्चों में किया जाता है)।

अंत में स्किन प्रिक टेस्टिंग या ब्लड टेस्टिंग द्वारा एलर्जन टेस्ट भी किया जा सकता है, जो साँस के साथ अंदर जाने वाले एलर्जन की पहचान करता है, जिनसे अस्थमा के लक्षण बढ़ते हैं ।

बच्चों में होने वाले अस्थमा को कंट्रोल करने में पेरेंट्स और केयर गिवर्स की है महत्वपूर्ण भूमिका 

वास्तव में बच्चे के जीवन में माता-पिता, अभिभावक और देखभाल करने वाले मुख्य भूमिका निभाते हैं। वही उनके लिए चिकित्सा संबंधी निर्णय लेते हैं और भविष्य में खुद का ख्याल रखने के लिए बच्चों के दृष्टिकोण को आकार देते हैं। इसलिए इन लोगों को सही जानकारी मिलना जरूरी है, जो उन्हें सही निर्णय लेने में मदद कर सके। ताकि बच्चों में अस्थमा के प्रभावशाली नियंत्रण के लिए उसके इलाज का पालन हो सके।

जागरुकता से ही संभव है रोकथाम 

अस्थमा नियंत्रण की चुनौतियों को हल करने के लिए इस बीमारी की ओर दृष्टिकोण व व्यवहार में परिवर्तन लाया जाना जरूरी है। यह निरंतर सहायता व शिक्षा द्वारा मरीजों को और उनकी सहयोग प्रणाली को मजबूत बनाकर किया जा सकता है।

अस्थमा एक क्रोनिक सांस से सम्बंधित बीमारी है। चित्र : शटरस्टॉक

जन जागरुकता कार्यक्रमों द्वारा इस बारे में सामाजिक बातचीत को बढ़ावा देकर अस्थमा के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर किया जा सकता है। मरीज के लिए सहयोग के कार्यक्रम अस्थमा पीड़ित बच्चों और उनके माता-पिता को अस्थमा के इलाज व नियंत्रण के नए दृष्टिकोण का पालन करने में मदद कर सकते हैं।

याद रखें 

पीडियाट्रिक अस्थमा भारत में स्वास्थ्य की एक गंभीर समस्या है, जिस पर तुरंत ध्यान देकर उसका निदान किया जाना जरूरी है। अस्थमा जागरुकता माह में यह जरूरी है कि भारत में अस्थमा पीड़ित बच्चों की समस्याओं को पहचाना जाए और उन्हें हल करने के लिए विस्तृत नीतियाँ बनाई जाएंगे। हम साथ मिलकर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि भारत में अस्थमा पीड़ित सभी बच्चों को एक स्वस्थ, संतोषजनक व सेहतमंद जीवन के लिए आवश्यक इलाज और सहायता मिल सके।

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Dr Sanjiv S Gupta

Dr Sanjiv S Gupta is Pediatrician at Sai kripa Children’s Maternity and Surgical Hospital, Thane ...और पढ़ें

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