Proning : कोविड पॉजिटिव होने पर कैसे मददगार हो सकता उल्टे लेटना या पट पड़ के सोना
कोविड -19 के कारण मरीजों की बढ़ती संख्या की वजह से लोगों में डर का माहौल बना हुआ है। अब हम अच्छी तरह से जान गये हैं कि ये वायरस श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है। इसकी वजह से ऑक्सीजन का स्तर कम होने लगता है और सांस लेने में तकलीफ होती है । कई राज्यों में ऑक्सीजन सप्लाई की कमी है।
ऐसे में सप्लीमेंटल ऑक्सीजन की सभी को आवश्यकता है। अगर विशेषज्ञों की मानें तो सामान्य ऑक्सीजन का स्तर 95 प्रतिशत या उससे अधिक होना चाहिए।
इस मामले में, प्रभावी तरीके से स्थिति को नियंत्रित करने के लिए विशेषज्ञों द्वारा वैकल्पिक तरीकों की सलाह दी जा रही है। ऐसा ही एक उपाय है प्रोनिंग (Proning)। हाल ही में, भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय (MoHFW INDIA) ने कोरोनोवायरस रोगियों को प्रोनिंग के ज़रिये खुद की देखभाल करने की सलाह दी है। साथ ही, यह भी बताया है कि प्रोनिंग उन लोगों के लिए विशेष रूप से मददगार है, जिन्हें सांस लेने में तकलीफ है और जो होम आइसोलेशन में हैं।
तो प्रोनिंग आखिर है क्या और ये कैसे ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाने में मददगार है?
प्रोनिंग (Proning) क्या है?
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, यह एक मरीज को सटीक, सुरक्षित गति के साथ मोड़ने की प्रक्रिया है। इसमें व्यक्ति पेट के बल नीचे की और मुंह करके लेटता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि यह रोगियों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है। फिर चाहें वे वेंटिलेटर पर हों या नहीं! यह फेफड़ों के क्षेत्रों के विस्तार की अनुमति देती है।
साथ ही, शरीर की गति में सुधार करती है और स्राव (secretions) को बढ़ाती है, जो मरीज़ को बेहतर सांस लेने में मदद करते हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि जब मरीज को सांस लेने में कठिनाई महसूस हो और SpO2 घटकर 94 से कम हो जाए, तब ही प्रोनिंग की आवश्यकता होती है। इस के अलावा, SpO2, तापमान, रक्तचाप और रक्त शर्करा को नियमित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
मंत्रालय ने यह भी कहा गया है कि जिन राज्यों में हाइपोक्सिया यानी ऑक्सीजन की कमी है, उन्हें जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। जबकि समय पर प्रोनिंग और अच्छे वेंटिलेशन को बनाए रखने से कई लोगों की जान बच सकती है। हालांकि, सावधानी बरतने के लिए – भोजन के बाद एक घंटे तक प्रोनिंग को नहीं करना चाहिए।
प्रोनिंग कैसे करते हैं?
विशेषज्ञों के अनुसार, रोगी मैन्युअल टर्न की एक श्रृंखला से गुजरता है, जो एक सिंक्रनाइज़ पैटर्न में किया जाता है। रोगियों को तिरछा लिटाया जाता है, इसके बाद उन्हें अपनी तरफ घुमाया जाता है, और अंत में उन्हें पेट के बल लिटाया जाता है। प्रत्येक स्थिति में प्रत्येक चाल के दौरान रोगी की हृदय गति, रक्तचाप और ऑक्सीजन का स्तर स्थिर रहने की आवश्यकता होती है।
मंत्रालय का सुझाव है कि प्रोनिंग के लिए दिन में 16 घंटे तक का समय दिया जा सकता है। तकिए को दबाव क्षेत्रों को बदलने और आराम के लिए थोड़ा समायोजित किया जा सकता है। गर्भावस्था, गंभीर हृदय स्थिति, अस्थिर रीढ़, फीमर या श्रोणि फ्रैक्चर जैसी स्थितियों में इसे नहीं करना चाहिए।
क्या यह वास्तव में काम करती है?
हां बिल्कुल! छाती और पेट के बल लेटने से, शरीर को फेफड़े के सभी क्षेत्रों में अधिक हवा प्राप्त करने में मदद मिलती है। यह तकनीक तीव्र श्वसन रोग सिंड्रोम (एआरडीएस) वाले लोगों के लिए फायदेमंद साबित हुई है। इसे यूरोपीय श्वसन जर्नल, 2002 द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, ऑक्सीजन में सुधार के लिए एक ‘सुरक्षित और सरल विधि’ माना जाता है।
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कस्टमाइज़ करेंइसके अलावा, प्रोनिंग ऑक्सीजेनेशन में सुधार करती है, इस आशय के एक अध्ययन में यह भी बताया गया है कि यह प्लेरल प्रेशर ग्रेडिएंट (pleural pressure gradient), एल्वियोलर इन्फ्लेमेशन (alveolar inflation) और वेंटिलेशन डिस्ट्रूब्यूशन (ventilation distribution) में सुधार कर फेफड़ों की कार्य्रपणाली को बेहतर बनाने में मदद करती है।
यह उच्च श्वसन संकट वाले 70-80 प्रतिशत रोगियों में ऑक्सीजन का स्तर बेहतर बनाने में मदद करती है।
“जैव प्रौद्योगिकी सूचना राष्ट्रीय केंद्र (NCBI) के ‘जुलाई 2020 में क्यूरस जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार “ अवेक प्रोनिंग करना वेंटिलेशन और शरीर के ऊतकों को ऑक्सीजन बनाए रखने में मदद करता है। साथ ही, गंभीर एआरडीएस या गंभीर निमोनिया के रोगियों को राहत देती है।
चूंकि चिकित्सा संस्थानों पर इस समय बोझ बढ़ा हुआ है और सीमित वेंटिलेटर उपलब्ध हैं, इसलिए प्रोनिंग से न केवल अस्पतालों पर बोझ कम हो सकता है, बल्कि वेंटिलेटर की आवश्यकता भी कम हो सकती है।
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