योग सिर्फ वेट लॉस के लिए ही नहीं है, ये देता है आपको एक बेहतर और स्वस्थ जीवन
कोविड-19 महामारी सिर्फ आपके लिए संक्रमण का जोखिम ही नहीं लेकर आई। इसने आपकी दिनचर्या को पूरी तरह बदल दिया। जिसका असर आपके शारीरिक और मानसिक दोनों स्वास्थ्य पर पड़ा है। बदले हुए माहौल में तनाव, अनिद्रा और बड़े हुए वजन से निपटने में योग ने मेरी मदद की।
हां ये सच है, योगाभ्यास सिर्फ वेट लॉस तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आपके समग्र स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
हर रोज सुबह जल्दी उठना, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना और साथ में ही ऑफिस के लिए तैयार होना। दौड़ते-भागते हुए मेट्रो लेना और कभी-कभी उन दूरियों को पैदल नापना, जिनके लिए लोग अकसर रिक्शा कर लेते हैं। ये थी कोविड-19 से पहले मेरी जीवनशैली।
वीकेंड पर मुझे थियेटर या मूवी देखने का शौक था या फिर अपनी किसी साहित्यिक-सामाजिक आयोजन में शामिल होती। कुछ मिलाकर ये सब मुझे शारीरिक रूप से फिट और मेंटली स्ट्रॉन्ग रखे हुए थे। यकीन मानिए मुझे बिस्तर पर पड़ने के बाद कभी नींद के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा था।
महामारी ने सब कुछ पर ब्रेक लगा दी
और कोविड-19 की महामारी ने मेरे इस एक्टिव और आनंददायक जीवन पर ब्रेक लगा दी। शुरूआत बच्चों के स्कूल से हुई। और फिर धीरे-धीरे सब बंद होने लगा। मार्च का वह आखिरी सप्ताह था जब मैं आखिरी बार घर से बाहर निकली।
महामारी के दुष्प्रभाव
पहले पहल कोविड-19 ने हमें संक्रमण से डराया। हम सभी ने लॉकडाउन से निपटने के लिए घर में जरूरी सामान का स्टॉक करना शुरू कर दिया। पर हम भूल गए कि इसका सबसे ज्यादा असर हमारी सेहत पर पड़ रहा है।
हमारी सक्रियता बस ऑनलाइन हो कर रह गई। क्रेविंग, बड़ा हुआ वजन, डिस्टर्ब स्लीप साइकल और मुरझायी हुई त्वचा इसके दुष्परिणाम थे। जी हां, आपके लाइफस्टाइल का असर आपके चेहरे पर भी पड़ता है।
सबसे बड़ी समस्या थी तनाव और अनिद्रा
कोरोनावायरस, न्यूनतम शारीरिक गतिविधि और अधिकतम डिजिटल व्यस्तता का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव था बड़ा हुआ तनाव और अनिद्रा। हमेशा मुस्कुराती रहने के लिए जानी जाने वाली मैं, अब बात-बात पर झुंझलाने लगी थी। किसी भी छोटी बात पर बहुत गुस्सा आता। और खुद को तनाव मुक्त करने के लिए कई और लोगों की तरह मैं भी सोशल मीडिया स्क्रॉल करने लगती।
अंतत: नींद कभी-कभी रात के तीन बजे भी आंखों का रास्ता नहीं ढूंढ पाती। अमेरिकन सेंट्रल फोर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन के मुताबिक कोरोनोवायरस के बाद ज्यादातर लोगों का स्लीप पैटर्न डिस्टर्ब हुआ है। जिससे उन्हें कई शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
आदर्श रूप से एक व्यस्क व्यक्ति के लिए 7 से 8 घंटे की नींद जरूरी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह समय आपकी मसल्स को रिपेयर करने और आपके मस्तिष्क के ताजा होने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
पर जब यह समय आप अपने शरीर को नहीं देते हैं, तब आपको मूड स्विंग, गुस्सा, झुंझलाहट, फोकस करने में दिक्कत, शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द और नकारात्मक सोच से भर देता है।
यकीनन, मैं इनमें से काफी कुछ महसूस कर रहीं थी।
विश्व योगा दिवस
वह जून का विश्व योगा दिवस था जब पापा ने मुझे उनका योगा सेशन जॉइन करने के लिए कहा। दुर्भाग्य से काम की व्यस्तता के चलते मैं उसमें भी हिस्सा नहीं ले पाई। इसने एक अलग तरह की ग्लानि से मुझे भर दिया – कि मैं अपनी सेहत के लिए भी समय नहीं निकाल पा रही।
और फिर मैंने औपचारिक रूप से योगा क्लास शुरू की
ग्लानि को खत्म करने का सबसे बेहतर तरीका है कि जो छूट गया उससे बेहतर कुछ किया जाए। मैंने यही किया, एक सेशन मिस होने के बदलने मैंने औपचारिक रूप से योगा क्लास जॉइन करने का निश्चय किया।
पहला महीना शरीर के साथ संघर्ष का था
मैं पिछले कई महीनों से सिर्फ घर के तीन कमरों में ही मूव कर रही थी। इसमें भी दिन का नौ से दस घंटे का समय सिर्फ अपनी कुर्सी पर। तो पहले महीने योगाभ्यास के साथ मेरे शरीर के संघर्ष का था। सबसे पहले घुटनों ने कहा ‘नहीं’ और फिर गर्दन भी तन गई।
सोचा जैसे-तेसे एक महीना हो जाए, फिर बंद कर दूंगी। पर मेरी योगा टीचर को इसका श्रेय दिया जाना चाहिए, जिन्होंने योगाभ्यास में ही कुछ बदलाव करके इसे मेरे लिए इंटरेस्टिंग बनाया।
योगा के साथ एक्सरसाइज और जुंबा की जुगलबंदी ने मुझे अपना योगाभ्यास जारी रखने के लिए प्रेरित किया। अब हम एक घंटे के वर्कआउट सेशन में शुरू के 15 मिनट स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करते हैं और उसके बाद हाथों-पैरों और कोर मसल्स को मजबूत करने वाले योगासन।
अपनी साप्ताहिक जुंबा क्लास में हम अपने पसंदीदा गानों पर डांस करते हैं।
परिणाम सचमुच आनंददायक हैं
मैंने न सिर्फ अपना वजन किलो में कम किया, बल्कि कर्व्स भी नजर आने लगे। पर यह असल उपलब्धि नहीं है। न ही मैंने इसके लिए योगाभ्यास शुरू किया था। योगा का मुझे जो सबसे बड़ा फायदा हुआ, वह है मेरी नींद। अब मैं उसी तरह बिस्तर पर पड़ते ही सो जाती हूं, जैसे दिन भर के थके मजदूर।
यह वाकई एक उपलब्धि है। जिसका सकारात्मक असर मैं अगले पूरे दिन महसूस करती हूं। वही मुस्कान जो मेरी पहचान थी लौट आई है और अब मैं अपने काम में ज्यादा बेहतर तरीके से फोकस कर पा रहीं हूं।
नवंबर की चढ़ती ठंड में अगर आपके माथे से पसीना बह रहा है, तो यह आपकी सेहत के लिए सबसे सुंदर बात है। और मुझे उस खास एक घंटे का इंतजार रहता है।
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