पढ़ने, सीखने और याद करने में परेशानी हो सकते हैं डिस्लेक्सिया के संकेत, जानिए इस स्थिति से कैसे डील करना है
नन्ही उम्र में बच्चे कभी कविताएं गुनगुनाते हैं, तो कभी अक्षरों को पढ़ने का प्रयास करते हैं। अगर बच्चे को सभी शब्द समान लगने लगें और उन्हें अंतर करने में दिक्कत आने लगे, तो यह डिस्लेक्सिया (Dyslexia) की निशानी हो सकती है। कई बार इन कारणों से बच्चे खुद को पिछड़ा हुआ और कम आंकने लगते हैं। बच्चों की इस समस्या को लेकर अक्सर माता-पिता भी चिंतित रहने लगते हैं। यदि इस समस्या को समय रहते पहचान लिया जाए, तो बच्चे की मदद कर उसे आत्मविश्वास पूर्ण जीवन जीने में सहायता हो सकती है। आइए जानते हैं डिस्लेक्सिया के संकेत और इसे डील करने का तरीका (Dyslexia warning signs)।
समझिए क्या है डिस्लेक्सिया
डिस्लेक्सिया (Dyslexia) एक ऐसा लर्निंग डिसऑर्डर (learning disorder) है, जिसमें बच्चे को ध्वनियों की पहचान करने से लेकर सुनने, याद रखने और उसे समझने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसे रीडिंग डिसएबिलिटी भी कहा जाता है। द येल सेंटर फॉर डिस्लेक्सिया एंड क्रिएटीविटी के अनुसार बच्चे जब क्लास में अन्य बच्चों के साथ बैठने लगते हैं और पढ़ने लगते हैं, तो उनमें डिस्लेक्सिया के लक्षणों को देखा जाता है। बहुत बार टीचर्स और पेरेंट्स बच्चों की इस समस्या को पूर्ण रूप से समझ नहीं पाते हैं। इसे समझने के लिए इसके संकेतों के बारे में जानना जरूरी है।
इस बारे में स्पीच थैरेपी एक्सपर्ट डॉ रामप्रवेश कुमार का कहना है कि आमतौर पर वे बच्चे इस समस्या के शिकार होते है, जिनके परिवार में पहले से ही कोई व्यक्ति इस डिसऑर्डर से ग्रस्त होता है। इसके अलावा कई बार पेरेंट्स का कामकाजी होना भी बच्चे की स्लो ग्रोथ का कारण साबित होता है।
बच्चे का ज्यादा वक्त अकेले बिताना और माता-पिता का पूरा समय नहीं मिल पाना इस समस्या का कारण बनने लगता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए बच्चों को थेरेपी दी जाती है, जिससे बच्चे की परफार्मेंस में इंप्रूवमेंट दिखने लगती हैं।
यहा जानिए डिसलेक्सिया के वार्निंग सांइस क्या है (Warning signs of dyslexia)
1. चीजों को आसानी से न समझ पाना
ऐसे बच्चे जो डिसलेक्सिया (Dyslexia) से ग्रस्त हैं। उन्हें अन्य बच्चों की अपेक्षा चीजों को सोचने और समझने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। उन्हें नई चीजों को याद रखने में कठिनाई आती हैं। वे बहुत बार अक्षरों में अंतर नहीं कर पाते हैं। इसके चलते शब्दों को उल्टा लिखना और अनुक्रम को याद रखना उनके लिए मुष्किलों भरा हो सकता है।
2. रीडिंग करने में परेशानी
वे बच्चे जो इस परेशानी से ग्रस्त होते हैं। उन्हें कुछ भी रीड करने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। दरअसल, शब्दों को जोड़कर पढ़ना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। वे किसी भी कंटेट को फलूएंटली नहीं रीड कर पाते हैं। उचित तरीके से क्लासरूप में रिस्पोंड न कर पाने के चलते वे खुद को कम आंकन लगते हैं। रूक रूक कर रीडिंग करना डिस्लेक्सिया (Dyslexia) का ही एक वार्निंग साइन हैं।
3. अक्षरों को अलग तरीके से लिखना
बहुत से अक्षरों को उल्टा लिखना ऐसे बच्चों की आदत होती हैं। वे समान दिखने वाले शब्दों के न केवल सांउड में गड़बड़ी करते हैं बल्कि उनकी बनावट को भी समझ नहीं पाते हैं। इससे उन्हें पढ़ने और लिखने दोनों में ही समस्या का सामना करना पड़ता है। उदाहअंग्रेरण के तौर पर वो 6 और 9 में अंतर नहीं समझ पाते हैं। ठीक उसी प्रकार अधिकतर बच्चे अंग्रेजी में ब और ड को भी बलत लिखते हैं।
4. भूलने की समस्या
ऐसे बच्चे किसी भी चीज़ को देर तक अपने दिमाग में नहीं रख पाते हैं। वे आसानी से चीजों को भूलने लगते हैं। इसका असर उनकी क्लास परफार्मेंस (class performance) पर दिखने लगता है। आमतौर पर टीचर्स से लेकर अभिभावकों तक सभी को बच्चे को आने वाली इन समस्याओं से बाहर निकालने के लिए थैरेपी (Therapy) का सहारा लेना चाहिए। उचित तरीके से डील करने से बच्चे का मनोबल बना रहता है।
5. समय पर काम न कर पाना
ऐसे बच्चों को लिखने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। वे लिखने में काफी समय लगाते हैं। साथ ही उनकी हैंड राइटिंग (hand writing) भी रीडएबल (readable) नहीं होती है। इसके चलते वो क्लासरूम में अन्य बच्चों जैसा परफार्म नहीं कर पाते हैं। ऐसे बच्चे कई बार स्कूल न जाने की भी जिद्द करने लगते हैं।
डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चे के साथ व्यवहार करते समय रखें इन बातों का ध्यान
1. अन्य बच्चों से इनकी तुलना न करें
दूसरे बच्चे अगर पढ़ाई में आगे रहते हैं। तो डिस्लेक्सिया (Dyslexia) से ग्रस्त बच्चे पेटिंग और अन्य स्पोर्टस में अच्छा परफार्म कर सकते है। ऐसे में उनकी खूबियों को पहचानने का प्रयास करें।
2. बच्चों को कमी का एहसास न कराएं
हर बच्चा किसी न किसी खूबी और कमी के साथ दुनिया में जन्म लेता है। ऐसे में बच्चे के हर छोटे प्रयास की सराहना करें और उसे एसके अंदर मौजूद कमियों का एहसास न करवाएं। इससे बच्चे में आगे बढ़ने का जुनून पैदा होता है।
3. थेरेपी का सहारा लें
कई बार बच्चों को लिखने पढ़ने में आने वाली दिक्कत थैरेपी से दूर होने लगती है। ऐसे में उन्हें थैरेपी सिटिंगस के लिए लेकर जाएं। इससे बच्चे में आत्मविश्वास बढ़ने लगता है और उसमें मौजूद कमियों को दूर किया जा सकता है।
4. बच्चे को समय दें
ऐसे बच्चों काे चीजों काे समझने, उसे सीखने और याद करने में ज्यादा समय लगता है। इसलिए धैर्य न खाेएं, बच्चे को उसका समय लेने दें। अकसर देखा गया है कि ऐसे बच्चों के साथ टीचर्स और पेरेंट्स दोनों ही पेशेंस खाेने लगते हैं। जबकि ऐसे बच्चों को संभालने और सिखाने के लिए आपको ज्यादा धैर्य की जरूरत पड़ सकती है।
5. अपने लिए वक्त निकालें
यह सच है कि ऐसे बच्चों को डील करना थोड़ा ज्यादा जटिल हो सकता है। ऐसे में आप चिड़चिड़े या गुस्सैल हो सकते हैं। परिवारों में भी कई बार देखा गया है कि थोड़ी सी भी समस्या होने पर लोग दूर होने लगते हैं। ऐसे में बिना तनाव लिए आपको अपने आप को कूल रखना है। आप ऐसा तभी कर पाएंगी जब आप खुद के लिए समय निकाल पाएंगी। इसलिए अपनी केयर और जागरुकता के लिए भी समय निकालें।
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