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क्या ओरल सेक्स के कारण बढ़ जाता है गले के कैंसर का खतरा, जानें इस पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट

फोरप्ले के दौरान 'ओरल सेक्स' अहम भूमिका निभाता है। जिसमें पार्टनर्स एक-दूसरे को एक्स्ट्रा-प्लेज़र देने के लिए उनके सेक्सुअल ऑर्गन्स के साथ ओरली रिएक्ट करते हैं। जिसे आम भाषा में किसिंग या लिकिंग कहा जाता है।
अनप्रोटेकटेड ओरल सेक्स करने से हो है एसटीआई. चित्र : शटरस्टॉक
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किसी भी सेक्सुअल रिलेशनशिप में पार्टनर्स की एक-दूसरे के प्रति कंपैटिबिलिटी के बाद ‘फोरप्ले’ एक अच्छी और बेहतर सेक्स ड्राइव की भूमिका निभाता है। आमतौर पर हमारे ‘पुरुष प्रधान देश’ में सेक्स के मामले में भी ‘व्हाट मेन वांट’ वाली सोच प्रमुख तौर पर दिखाई देती है।

स्वाभाविक तौर पर पुरुषों को अल्टीमेट प्लेज़र सेक्सुअल इंटरकोर्स के दौरान ही मिलता है, लेकिन महिलाओं के लिए इसकी डेफिनेशन शायद थोड़ी अलग हो सकती है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक रिपोर्ट बतातीं हैं कि महिलाओं को ऑर्गैज़म तक पहुंचने में औसत 13.41 मिनट का समय लगता है, जिसका सीधा मतलब है कि महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले ऑर्गैज़म तक पहुंचने में अधिक समय लगता है। साथ ही कई रिपोर्ट्स यह भी बतातीं हैं कि सेक्स के लिए खुद के दिमाग और शरीर को तैयार करने के लिए भी महिलाओं को अधिक समय लगता हैI इस प्रक्रिया में आमतौर पर ‘फोरप्ले’ उनकी मदद करता है।

फोरप्ले के दौरान ‘ओरल सेक्स’ अहम भूमिका निभाता है। जिसमें पार्टनर्स एक-दूसरे को एक्स्ट्रा-प्लेज़र देने के लिए उनके सेक्सुअल ऑर्गन्स के साथ ओरली रिएक्ट करते हैं। जिसे आम भाषा में किसिंग या लिकिंग कहा जाता है।

लेकिन अक्सर अनप्रोटेक्टेड ओरल सेक्स को लेकर कहा जाता है कि इसके कारण ‘थ्रोट कैंसर’ यानी गले का कैंसर भी हो सकता है। इस बात पर अधिक जानकारी लेने के लिए हेल्थ शॉट्स ने बेंगलुरु स्थित एचसीजी कैंसर हॉस्पिटल के मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट एंड थ्रोट कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ. श्रीनिवास बीजे से संपर्क किया।

अनप्रोटेक्टेड ओरल सेक्स करने के कारण ह्यूमन पेपीलोमा वायरस नाम का एक वायरस पैदा हो जाता है। चित्र : अडोबी स्टॉक

पहले जानिए क्या कहती है रिपोर्ट्स

सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन की एक रिपोर्ट बताती है कि कई लोग ऐसा मानते हैं कि साधारण सेक्स के मुकाबले ओरल सेक्स ज्यादा सेफ होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। अनप्रोटेक्टेड ओरल सेक्स करने के कारण ह्यूमन पेपीलोमा वायरस नाम का एक वायरस पैदा हो जाता है। जिसे आम भाषा में एचवीपी भी कहा जाता है।

इसी एचवीपी के कारण युवाओं को थ्रोट कैंसर यानी ‘गले के कैंसर’ का खतरा कई अधिक बढ़ जाता है। साथ ही इस एचवीपी वायरस के कारण महिलाओं में एनल कैनाल और सर्वाइकल का कैंसर होने की भी अत्यधिक संभावनाएं होती है।

USCDS की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका में लगभग साढ़े छह करोड़ लोग यौन रोगों से ग्रसित है, जिनमें 10 फीसदी पुरुष और लगभग 4 फीसदी महिलाएं ओरल सेक्स से फैलने वाले एचवीपी से पीड़ित हैं। WHO की एक रिपोर्ट बताती है कि हर साल पूरी दुनिया में 10 लाख लोग यौन रोगों से प्रभावित होते हैं। भारत में यौन रोगों से हर साल लगभग तीन से साढ़े तीन करोड़ लोग प्रभावित होते हैं।

क्या कहते हैं ओरल सेक्स के बारे में एक्सपर्ट?

ओरल सेक्स और गले के कैंसर के बीच संबंध बताते हुए डॉ.श्रीनिवास बताते हैं कि गले का कैंसर एक ट्यूमर के विकास की तरफ इशारा करता है। जिसमें फर्निकस, वॉइस बॉक्स और टॉन्सिल शामिल होते हैं। गले में असामान्य सेल ग्रोथ होती है, जिससे लगातार गले में खराश, निगलने में कठिनाई या आवाज में बदलाव जैसे लक्षण दिखाई पड़ते है।

डॉ.श्रीनिवास बताते है कि कई अध्ययनों में गले के कैंसर के कुछ मामलों और ओरल सेक्स के माध्यम से प्रसारित होने वाले ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) के बीच एक संभावित संबंध देखा गया है। जिसमें विशेष रूप से एचपीवी-16 जैसे स्ट्रेंस गले के कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़े होते है।

ऐसे में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि ओरल सेक्स करने वाले हर व्यक्ति को गले का कैंसर नहीं होता है। और भी कई कारक इसके विकास में योगदान करते हैं।

ओरल सेक्स के दौरान क्या सावधानियां रखनी चाहिए

डॉ. श्रीनिवास बताते है कि ओरल सेक्स के दौरान कंडोम या डेंटल डैम के उपयोग सहित सुरक्षित सेक्स उपायों का अभ्यास, संभावित रूप से एचपीवी को फैलने और उसके कारण होने वाले कैंसर के खतरे को कम कर सकता है। साथ ही नियमित एचपीवी टीकाकरण भी संक्रमण के जोखिम को काफी कम कर सकता है।

ओरल सेक्स करने से थ्रोट कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। चित्र : शटरस्टॉक

क्या है इसका उपचार?

डॉ. श्रीनिवास बताते है कि एचपीवी से संबंधित गले का कैंसर पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित कर सकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में एचपीवी से जुड़े गले के कैंसर विकसित होने की अधिक संभावना होती है।

इसके उपचार में कई कारण निर्भर करते हैं, जिसके हिसाब से उपचार किया जाता है। इसकी उपचार प्रक्रिया में ट्यूमर या प्रभावित टिश्यूज़ को हटाना, रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी जैसे प्रक्रियाएं शामिल है। उद्देश्य कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करना है। लक्षित थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी नए दृष्टिकोण हैं जो विशिष्ट कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करते हैं या कैंसर से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देते हैं।

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कार्तिकेय हस्तिनापुरी

पिछले कई वर्षों से मीडिया में सक्रिय कार्तिकेय हेल्थ और वेलनेस पर गहन रिसर्च के साथ स्पेशल स्टोरीज करना पसंद करते हैं। इसके अलावा उन्हें घूमना, पढ़ना-लिखना और कुकिंग में नए एक्सपेरिमेंट करना पसंद है। जिंदगी में ये तीनों चीजें हैं, तो फिजिकल और मेंटल हेल्थ हमेशा बूस्ट रहती है, ऐसा उनका मानना है। ...और पढ़ें

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