दुनिया भर में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कैंसर न केवल स्वास्थ्य, बल्कि किसी भी देश या समाज की अर्थव्यवस्था के लिए भी घातक साबित हो रहा है। इससे न केवल बहुमूल्य धन-संपदा की हानि हुई है, बल्कि यह बेशकीमती मानव संसाधन की भी हानि है। हालांकि ये बात और है कि कैंसर के साथ ही स्वास्थ्य उद्योग में एक बड़ा सेक्टर तैयार हो गया है। जहां कैंसर की जांच परीक्षण (Cancer diagnosis) से लेकर उपचार (Cancer treatment) तक, तकनीक और सर्विसेज में बहुत सारे लाेग कार्यरत हैं। आखिर क्या वजह है कि इतनी जागरुकता के बावजूद कोई भी देश कैंसर के बढ़ते मामलों पर लगाम नहीं लगा पाया है? आइए समझते हैं भारत में क्या है कैंसर के मामले (Cancer cases in India) और इसके लिए जिम्मेदार कारक।
यह जानने के लिए हमने बात की डॉ वेदांत काबरा से। डॉ वेदांत, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम में प्रिंसीपल डायरेक्टर, सर्जिकल ओंकोलॉजी हैं।
कैंसर की भयावहता को समझने के लिए यह जरूरी है कि हम नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम की रिपोर्ट पर नजर डालें। यह रिपोर्ट वर्ष 2020 में जारी की गई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक भारत में 679,421 पुरुष कैंसर से ग्रस्त थे। बढ़ते मामलों के आधार पर यह अनुमान लगाया गया कि वर्ष 2025 तक यह आंकड़ा बढ़कर 763,575 तक पहुंच सकता है। वहीं कैंसर पीड़ित महिलाओं की संख्या 2020 में 712,758 थी। 2025 तक इसके 806,218 तक पहुंच जाने का अनुमान है।
डॉ वेदांत समग्र परिदृश्य का आकलन करते हुए जिन कारणों को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं, उनमें शामिल हैं –
महिलाओं में मिलने वाले कैंसर के मामलों में स्तन कैंसर इसका सबसे आम प्रकार है और महिलाओं में कैंसर के कुल मामलों में इसकी एक-चौथाई से अधिक हिस्सेदारी है। हालांकि, ग्रामीण महिलाओं में अब भी सर्वाइकल (गर्भाशय का मुंह) कैंसर के मामले सबसे अधिक मिलते हैं।
डॉ वेदांत कहते हैं, “स्तन कैंसर के मामलों में आ रही तेज़ी की एक मुख्य वजह जीवनशैली में आया पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव भी है। शहरी भारत (गुरुग्राम जैसे शहर) में स्तन कैंसर से पीड़ित कुल महिलाओं में से आधे से भी ज़्यादा की उम्र 50 वर्ष से कम है और यह आंकड़ा बेहद चिंताजनक है क्योंकि यह व्यक्ति के जीवन के सबसे उत्पादक वर्ष होते हैं।”
मुंह, फेफड़े, पेट और बड़ी आंत कैंसर भारतीय पुरुषों में सबसे अधिक पाए जाने वाले कैंसर के प्रकार हैं। ये तंबाकू के सेवन (मुंह व फेफड़े) व खानपान की बदलती आदतों (पेट व बड़ी आंत) से संबंधित हैं। हालांकि, हाल के कुछ वर्षों के दौरान हमारे सामने जो ट्रेंड आया है उसमें फेफड़े के कैंसर से पीड़ित होने वाले कुछ मरीज़ ऐसे भी हैं, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया। कयास लगाए जा रहे हैं कि लगातार बढ़ता वायु प्रदूषण कई भारतीय शहरों में इस कैंसर के मामलों में आई तेज़ी की वजह है।
भारत और पश्चिमी देशों में कैंसर के रोगियों का सर्वाइवल रेट यानी जीवन प्रत्याशा कम है। इसकी वजह की पड़ताल करते हुए डॉ वेदांत कहते हैं, “सामान्य रूप से हम देखते हैं कि कई प्रकार के कैंसर के लिए हमारे रोगियों की उम्र पश्चिमी देशों के कैंसर पीड़ितों के मुकाबले 10-15 साल कम है। इसकी वजह उपर्युक्त बताए गए जीवनशैली से जुड़े विभिन्न कारक, प्रदूषण और व्यापक स्तर पर कीटनाशकों का उपयोग व खाद्य पदार्थों में मिलावट हो सकती है।”
उपरोक्त कारकों के चलते सामान्य जन और कैंसर रोगियों दोनों की ही उम्र घटती जा रही है। वहीं सही उपचार न मिलने और कई बार क्षमता से अधिक महंगा उपचार हाेने के कारण भी लोग कैंसर का प्रभावी उपचार नहीं करवा पाते। जिससे उन लोगों की भी मृत्यु हो जाती है, जिन्हें सही उपचार से बचाया जा सकता था।
सिर्फ कैंसर रोगी ही नहीं, बल्कि उनके परिजनों, मित्रों और केयरगिवर्स में भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वे कई तरह के तनाव और अवसाद के शिकार होने लगते हैं। पर ऐसा नहीं है कि केवल महंगे उपचार या विदेशी उपचार से ही कैंसर से बचा जा सकता है।
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कस्टमाइज़ करेंडॉ वेदांत उन जरूरी सावधानियों के बारे में भी बता रहे हैं, जिन्हें अपनाकर समय रहते कैंसर से बचा जा सकता है।
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