World Earth Day 2021 : ऑक्सीजन के स्तर को बनाए रखने के लिए जरूरी है इसे नुकसान पहुंचाने वाले कारकों को समझना
कोविड-19 (Covid-19) की पहली लहर (First wave), दूसरी लहर (Second wave), अस्थमा (Asthma) और श्वसन संबंधी (Respiratory diseases ) अन्य सभी रोगों में ऑक्सीजन (Oxygen) का स्तर बहुत महत्वपूर्ण है। मौजूदा हालात ये हैं कि दिल्ली जैसे महानगर में भी ऑक्सीजन का कोटा अगले 24 घंटों में चुक सकता है। विश्व पृथ्वी दिवस (World Earth Day) के अवसर पर हमें उन कारकों को समझना होगा जो ऑक्सीजन के स्तर को लगातार कम करते जा रहे हैं।
विश्व पृथ्वी दिवस (World Earth Day)
प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को, विश्व पृथ्वी दिवस (World Earth Day) के रूप में मनाया जाता है। ताकि मनुष्य को पृथ्वी के प्रति उसका कर्तव्य याद दिलाया जा सके। हालांकि, हम में से कई लोग ऐसे हैं जो पृथ्वी की बिगड़ती सेहत का ख्याल रखने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
सबसे पहला पृथ्वी दिवस 1970 में मनाया गया था ताकि लोग पृथ्वी द्वारा प्रदान किये गये प्राकृतिक संसाधनों का महत्व समझें, और फॉसिल फ्यूल्स द्वारा दूषित हुए वातावरण के लिए कुछ करें। इन मुद्दों पर पहले पृथ्वी दिवस पर ध्यान देने के परिणामस्वरूप पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (Environmental Protection Agency, EPA) की स्थापना हुई और यह कानून बना जो आज भी इन समुदायों की रक्षा करता है।
श्वसन संबंधी बीमारियों के लिए जरूरी है इसे जानना
मौजूदा कोरोना वायरस महामारी, अस्थमा और अन्य श्वसन संबंधी रोगों से ग्रस्त लोगों के लिए, वायु प्रदूषण हालात को बदतर बना सकता है। यह वह कारक है जो बीमारी को और ज्यादा ट्रिगर करता है। पृथ्वी पर मौजूद इस वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव अस्थमा या सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोगों पर कहर ढा सकते हैं।
प्राण घातक साबित होता है वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से अस्थमा से पीड़ित लोगों को विशेष रूप से खतरा होता है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन Centers for Disease Control and Prevention (CDC) की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 2.5 मिलियन बच्चे – उन क्षेत्रों में रहते हैं, जहां कम से कम एक तरह के प्रदूषक का उच्च स्तर है।
क्या आपको पता है, वर्ष 2020 में दिल्ली में वायु प्रदूषण की वजह से 54,000 लोगों की जानें गईं थीं? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गाज़ियाबाद दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है और भारत में मौजूद कई शहर इसी कड़ी में शामिल हैं।
क्लाइमेट चेंज का लोगों पर प्रभाव
बदलती जलवायु हमारी वायु की गुणवत्ता के लिए कई जोखिम पैदा करती है। गर्म तापमान स्मॉग बनाने में मदद कर सकता है, जो वायु प्रदूषण में योगदान देता है। एलर्जी या अस्थमा वाले लोगों के लिए पोलन सीजन एक सामान्य ट्रिगर बनता है। 2019 के शोध में पाया गया कि उच्च तापमान हवा में पराग की मात्रा को भी बढ़ाता है।
वायु प्रदूषण हो या क्लाइमेट चेंज, 2020 के एक अध्ययन में पाया गया कि प्रत्येक 1 ° C तापमान में वृद्धि होने से अस्थमा मरीजों की अस्पताल में उस दिन 3.25 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इतना ही नहीं क्लाइमेट चेंज की वजह से आने वाले बाढ़ और तूफान घरों और इमारतों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को क्लाइमेट चेंज के हानिकारक प्रभाव झेलने पड़ते हैं
2020 के लिए स्टेट ऑफ द एयर रिपोर्ट से साक्ष्य बताते हैं कि कम आय वाले घरों में रहने वाले लोगों को विशेष रूप से वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों से खतरा है। 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, गरीबी रेखा वाले 19 मिलियन के करीब लोग, वायु प्रदूषण के उच्च स्तर वाले क्षेत्रों में रहते हैं।
रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (Centers for Disease Control and Prevention (CDC) ) के अनुसार, कम आय वाले परिवारों में लोग औसत (7.7 प्रतिशत) की तुलना में अस्थमा (10.8 प्रतिशत) की उच्च दर का अनुभव करते हैं।
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कोरोना वायरस महामारी के इस कठिन समय में, अब यह और भी महत्वपूर्ण हो गया है कि हम अपना और पृथ्वी दोनों के ख्याल रखें! इसके लिए, आपको कुछ ज्यादा करने की ज़रुरत नहीं है बस मास्क पहनिए और अपने घरों के आसपास पेड़-पौधे ज़रूर लगाइए।
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