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एक्सपर्ट से जानते हैं तेज दिमाग के पीछे जीन जिम्मेदार हैं या परिवेश या फिर दोनों

इस बात पर हमेशा बहस होती है कि तेज दिमाग के लिए जेनेटिक्स अधिक प्रभावी है या परिवेश। आइये विशेषज्ञों से जानते हैं कि दोनों कारकों में तेज दिमाग के लिए कौन अधिक प्रभावी है?
हमारा इंटेलिजेंस या बुद्धि हमें आनुवंशिक रूप से प्राप्त हुआ है या एनवायरनमेंट से मिला है। चित्र : शटरस्टॉक
स्मिता सिंह Updated: 10 Jan 2023, 14:09 pm IST
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तेज दिमाग और बुद्धि कई चीजों पर निर्भर करती है। हम किसी इंटेलिजेंट बच्चे से मिलते हैं, तो यह बरबस कह बैठते हैं कि जरूर इसके पेरेंट्स भी बुद्धिमान होंगे या फिर परिवेश से मिला है। बुद्धि के विकास में निश्चित रूप से पर्यावरण और जीन दोनों का महत्व है। यहां परिवेश या पर्यावरण ऐसे संदर्भ में कहा जा रहा है, जिसमें व्यक्ति पैदा और पोषित हुआ। जबकि जीन या आनुवंशिकी से तात्पर्य है कि आपका जन्म किसके साथ हुआ है। पूर्वजों द्वारा प्राप्त डीएनए के साथ आप इस संसार में आयी हैं।

बुद्धि पर किसका प्रभाव अधिक 

पर्यावरण में एपिजेनेटिक्स भी शामिल हैं। ऐसे गुण जो किसी विशेष वातावरण के परिणामस्वरूप प्रकट होते हैं। यह निर्धारित करता है कि इस दुनिया में आपके साथ कैसा व्यवहार, शिक्षा और पालन-पोषण किया जाता है। अब हम जानते हैं कि हमारा इंटेलिजेंस या बुद्धि हमें आनुवंशिक रूप से प्राप्त हुआ है या एनवायरनमेंट से मिला है। इसके लिए हमने बात की साइकोलॉजिस्ट या मेंटल हेल्थ के विशेषज्ञों से।

जेनेटिक्स और पर्यावरण दोनों पर होती है बहस

सीनियर क्लिनिनिक्ल साइकोलॉजिकस्ट और अनन्या चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर की डायरेक्टर डॉ. ईशा सिंह बताती हैं, ‘इंटेलिजेंस हमारे जेनेटिक्स द्वारा निर्धारित होती है या यह पर्यावरण यानी हमारे दैनिक अनुभव से सीखने से आती है? इस पर हमेशा बहस होती रहती है। दोनों मोर्चों पर वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध हैं। जेनेटिक्स जिसे ‘प्रकृति’ या ‘नेचर’ के रूप में जाना जाता है। यह हमारे हेरेडिटरी द्वारा निर्धारित किया जाता है। उदाहरण के लिए हम कैसे दिखते हैं, किस तरह बात करते हैं, किस तरह चलते हैं। हमारी पसंद-नापसंद , हमारे खान-पान से लेकर करियर के प्रति हमारी पसंद जैसी छोटी-छोटी बातें होती हैं।  ये हमारे माता-पिता या दादा-दादी द्वारा निर्धारित की जा सकती हैं।’

नेचर(genetics) और ‘नर्चर(environment) दोनों का मिश्रण इंटेलिजेंस

डॉ. ईशा आगे बताती हैं, ‘ यह भी देखा गया है कि चित्रकारी या बुनाई जैसे कौशल भी आनुवंशिक रूप से आगे बढ़े हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे रोजमर्रा के अनुभव और इसके साथ मिलने वाली सीख मायने नहीं रखती। ‘पोषण’ या ‘नर्चर’ वह स्थान है जहां हम बड़े होते हैं। उसके अनुरूप बने रहते हैं। हम जो भी निर्णय लेते हैं, पहनावे से लेकर काम करने और व्यवहार करने के तरीके तक, हमारे आसपास के लोग जैसे बड़े-बुजुर्ग या दोस्त प्रभावित कर सकते हैं। हम दूसरों के साथ अपनी बातचीत के माध्यम से समाज के अनकहे ‘क्या करें’ और ‘क्या न करें’ सीखते हैं। यह सीख हमारी इंटेलिजेंस के प्रत्येक चरण में योगदान देती है। इसलिए हमारी इंटेलिजेंस नेचर (genetics) और ‘नर्चर(environment) दोनों का एक मिश्रण (Intelligence comes from heredity or environment) है। हमारे पूर्वजों से हमें कौशल और विशेषताएं विरासत में मिली हैं। वे हमारे दैनिक अनुभव के साथ या तो बढ़ी हैं या कम हुई हैं या बदल गई हैं।’

सीधे तौर पर आनुवांशिकी (Genetics) अधिक महत्वपूर्ण

पारस हॉस्पिटल्स, गुरुग्राम में सीनियर कंसल्टेंट, क्लिनिकल साइकोलॉजी डॉ.प्रीति सिंह बताती हैं, ‘यह पहचानना चुनौतीपूर्ण हो सकता है कि पर्यावरण या आनुवंशिकता का बुद्धि पर अधिक प्रभाव है या नहीं। बहुत से लोग दृढ़ता के साथ एक पक्ष का समर्थन करते हैं। कुछ लोग यह दावा करते हैं कि यह समान रूप से विभाजित है। वैज्ञानिक की सामान्य राय यह है कि आनुवांशिकी(Heredity) पर्यावरणीय कारकों (environmental factors) की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं। फिर भी जीन अभिव्यक्ति (gene expression) और फेनोटाइप (Phenotype) के कारण पर्यावरणीय कारक निस्संदेह महत्वपूर्ण हैं।

आनुवांशिकी पर्यावरणीय कारकों  की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं। चित्र : शटरस्टॉक

हालांकि मस्तिष्क का आकार (Brain size) और संज्ञानात्मक तीक्ष्णता (cognitive acuity) ज्यादातर वंशानुगत होती है। हाई सोशियो इकोनोमिक घरों के लोग होशियार होते हैं।’

जीन और पर्यावरण एक-दूसरे से संबंधित (gene-environment correlation) हैं

डॉ.प्रीति सिंह के अनुसार, ‘जीन-पर्यावरण सहसंबंध (gene-environment correlation) इस बात की पड़ताल करता है कि हमारे जीन कैसे प्रभावित होते हैं। हम अपने पर्यावरण से कैसे संबंधित हैं। उदाहरण के लिए एक शर्मीला लड़का स्कूल में शैक्षणिक क्लबों को अस्वीकार करता है, तो वह उस तरह की बुद्धि विकसित नहीं कर पायेगा, जो बहस क्लब या शतरंज क्लब में भाग लेने के दौरान वह विकसित कर पाता। वहीं दूसरी ओर, यदि कोई बच्चा जन्मजात रूप से कम क्षमता वाला है और वह बहिर्मुखी और मिलनसार है। वह शैक्षणिक संगठनों और ग्रीष्मकालीन कार्यक्रमों में भाग लेता है, तो वह अपनी क्षमता बढ़ा सकता है।’

प्रत्येक व्यक्ति का जेनेटिक मेकअप और पर्यावरणीय प्रभाव अलग

डॉ.प्रीति इस बात पर जोर देती हैं, ‘जेनेटिक्स और एनवायरनमेंट दोनों को अलग करना मुश्किल है। क्योंकि आनुवंशिकी और पर्यावरण अक्सर परस्पर क्रिया करते हैं। वे ओवरलैप करते हैं। वैज्ञानिक रूप से जेनेटिक्स और एनवायरनमेंट की मात्रा निर्धारित करना कठिन है। यह निर्धारित करना भी असंभव है कि जीन और पर्यावरण के प्रभाव कहां से शुरू या बंद हो सकते हैं। आनुवंशिकी, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के बीच आम सहमति यह है कि बुद्धि आनुवंशिक प्रवृत्ति और एनवायरनमेंट फैक्टर के संयोजन से उत्पन्न होती है। यहां हम कह सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन अलग होता है। प्रत्येक व्यक्ति का जेनेटिक मेकअप और पर्यावरणीय प्रभाव भी अलग होता है।

पर्यावरण या परिवेश का प्रभाव अधिक

‘अधिकांश वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सटीक सम्मिश्रण – 50/50, 60/40 या 70/30 – का हो सकता है। इससे यह स्पष्ट है कि कोई व्यक्ति कितना बौद्धिक होता है, इस पर दोनों कारकों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

कोई व्यक्ति कितना बौद्धिक होता है, इस पर पर्यावरण या परिवेश का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। चित्र शटरस्टॉक।

व्यक्ति को अपनी पूरी क्षमता को साकार करने के लिए पर्यावरण या परिवेश की जरूरत पड़ती है। जीन के बावजूद अलग-अलग वातावरण में समान गुणवत्ता वाले बीज नहीं पनप पायेंगे। इसलिए तस्वीर में पर्यावरण अधिक मायने रखता है।’

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स्मिता सिंह

स्वास्थ्य, सौंदर्य, रिलेशनशिप, साहित्य और अध्यात्म संबंधी मुद्दों पर शोध परक पत्रकारिता का अनुभव। महिलाओं और बच्चों से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करना और नए नजरिए से उन पर काम करना, यही लक्ष्य है। ...और पढ़ें

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