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गंभीर चोट के बावजूद नवजीत ने डिस्कस थ्रोअर में दर्ज की जीत, ये है उनकी जिजीविषा की कहानी

चोट इतनी गंभीर थी कि नवजीत कौर के लिए चल पाना भी मुश्किल था। पर उन्‍होंने हार नहीं मानी और भारत को सिल्‍वर मैडल दिलवाया।
गंभीर चोट के बावजूद नवजीत ने कॉमनवेल्‍थ में सिल्‍वर मैडल जीता। चित्र: नवजीत कौर
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मेरा नाम है नवजीत कौर ढिल्लों और मैं पंजाब से हूं। मैं डिस्कस थ्रोअर हूं। बचपन से ही मैं मुझे बड़े लाड़ प्यार से पाला गया और मैं एथलेटिक्स को चुनूंगी ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था। लेकिन बाकी लड़कियों से कुछ अलग करने की इच्छा से मैंने स्पोर्ट्स को चुना। मैं हमेशा से नाम कमाना चाहती थी।

कैसे मैंने डिस्कस में कैरियर बनाने की ठानी

मैं हर शाम अपने भाई और मम्मी-पापा के साथ प्रैक्टिस पर जाती थी। मेरा भाई शॉट पुट के लिए ट्रेनिंग कर रहा था, वह मुझसे 5 साल बड़ा था। उसको अक्सर मेडल मिलते थे, अखबार में नाम आता था और यही देख कर मैंने भी तय किया कि मैं स्पोर्ट्स में ही नाम कमाऊंगी।

12 साल की उम्र में मैंने नेशनल्स में अपना पहला सिल्वर पदक जीता। मेरे पिता को लगता था डिस्कस थ्रो जैसा स्पोर्ट शायद मैं ना खेल पाऊं, वो अक्सर कहते थे इसमें बहुत ताकत चाहिए, सोच लो। लेकिन मैंने मन बना लिया था, और भाई हमेशा मुझे सपोर्ट करता था। फिर पापा ने भी मेरा साथ दिया और मेरे कैरियर की शुरूआत हुई।

पापा ने देखे मेरे जीत के सपने। चित्र: नवजीत कौर

इन मुश्किलों का किया सामना

शुरू में मेरे पिता के कोच लड़कियों के स्पोर्ट्स में जाने के खिलाफ थे, लेकिन मेरे घर मे कभी मुझमें और भाई में फर्क नहीं किया गया था। मेरे पिता भी स्पोर्ट्समैन थे। इसलिए उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया। वो हमेशा मुझे मोटिवेट करते थे, वह चाहते थे कि जो वे हासिल नहीं कर पाए उनके बच्चे हासिल करें।

आसपास के लोग मेरे स्पोर्ट्स में जाने को लेकर सवाल खड़े करते रहे, लड़कियों का घर से निकलना भी गलत माना जाता था। इसके बावजूद पापा ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया। यह हालांकि आसान नहीं था, आज भी लड़कियों का कुछ अलग करना आसान नहीं है। पर कुछ कर गुजरने के लिए दुनिया की परवाह छोड़ देनी चाहिए।

तनाव और अवसाद ने मुझे घेर लिया

16 साल की उम्र में मैंने अपना पहला इंटरनेशनल मैडल जीता। 2014 में मैंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में जूनियर कैटेगरी में ब्रॉन्ज़ मैडल जीता था। वह बहुत ख़ास पल था। सिर्फ़ इसलिए नहीं क्योंकि मैंने जीत हासिल की, बल्कि इसलिए भी क्योंकि 10 साल बाद किसी भारतीय ने जीत हासिल की थी। स्पोर्ट्स में चोट लगना बहुत नॉर्मल बात होती है, मैं भी चोट खाती थी और आगे बढ़ती थी।

जब मुझे शोहरत मिलने लगी, मैं लगातार जीत रही थी, तब मेरे मन में डर आ गया कि अगर मैं कभी हार गई तो क्या होगा। मैं अच्छा परफॉर्म कर रही थी, लेकिन मेरे मन में एंग्जायटी बढ़ती जा रही थी।

मेरी जीत का श्रेय मेरे पापा को जाता है। चित्र: नवजीत कौर

2015 में मैं डिप्रेस्ड हो गयी, लेकिन मैंने अपनी ट्रेनिंग जारी रखी। 2018 का कॉमनवेल्थ गेम मेरा टारगेट था। मैंने एक साल तक US में ट्रेनिंग की और मैं उस गेम के लिए पूरी तरह तैयार थी। मगर तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने मेरी लाइफ को पूरी तरह से बदल दिया।

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वो चोट जो मैं कभी नहीं भूल सकती

जनवरी 2018 में मुझे ग्रोइन एरिया में भयंकर इंजरी आ गई। फरवरी के अंत में मेरे ट्रायल्स थे। और चोट इतनी बुरी थी कि मैं चल तक नहीं पाती थी। दो महीने तक मैं भीषण दर्द से जूझने के बावजूद ग्राउंड पर जाती थी। लगातार मेरी फिजियोथेरेपी होती थी। उन दिनों मुझ पर जो बीती, मैं ही जानती हूं। लेकिन मैंने अपना विश्वास कभी डिगने नहीं दिया।

मेरा परिवार हमेशा मेरे पीछे सपोर्ट बन कर खड़ा रहा। चित्र: नवजीत कौर

मेरे फाइनल मुकाबले से एक रात पहले मेरा दर्द अचानक से सौ गुना बढ़ गया। इसका कारण मेरी एंग्जायटी भी थी और रेस्ट की कमी भी। मैं तीन पेनकिलर खाकर ग्राउंड पर पहुंची थी। मैंने कैसे परफॉर्म किया मुझे याद भी नहीं, बस यह याद है कि मैं जीत गयी थी और आंसू अपने आप बहे जा रहे थे। वो दिन और वो जीत मुझे हमेशा शीशे की तरह साफ याद रहेगी। मैं सभी से बस इतना ही कहूंगी, अपने ऊपर भरोसा रखो और कभी गिव अप नहीं करना।

इस जीत का श्रेय मेरे पापा को जाता है

पापा ने मुझे हमेशा मोटिवेट किया। मेरे मुश्किल वक्त में मैं खुद को यही समझाती थी कि पापा के लिए करना है। बचपन में हर मुकाबले से पहले पापा मेरे पैरों की मालिश करते थे। उनको कितनी भी तकलीफ हो, वो हमारे लिए हमेशा खड़े रहे। आज मैं जो हूं, पापा की वजह से हूं।

मैं सभी लड़कियों से यही कहना चाहूंगी कि आप कहीं से भी किसी आदमी से कम नहीं हो। जो रास्ता चुनना है चुनो और ख़ुद पर भरोसा रखो। मेहनत और लगन से सब कुछ हासिल किया जा सकता है।

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