लॉग इन

तेज़ दर्द से पीड़ित होते हैं कैंसर के 33 फीसदी से ज्यादा मरीज, एक्सपर्ट बता रहे हैं इस पर काबू पाने का तरीका

दुनिया भर में तेजी से बढ़ती जा रही घातक बीमारियों में से एक है कैंसर। इससे न केवल मरीज, बल्कि उसके परिजन भी मानसिक, भावनात्मक स्तर पर प्रभावित होते हैं। इसलिए एक्सपर्ट इसके उपचार की शुरूआत जल्दी और सही तरीके से करने की सलाह देते हैं।
जानें ईआर और आईसीयू के बिच का फर्क। चित्र: शटरस्टॉक
Dr. Amod Manocha Updated: 23 Oct 2023, 09:52 am IST
ऐप खोलें

कैंसर के निदान के बाद से ही प्रभावित लोगों का जीवन बुरी तरह बदल जाता है। लोगों में इसके डर का बड़ा कारण अत्यंत दर्द होना और डायग्नोसिस से जुड़ी घबराहट है। इसका असर लगभग 28 फीसदी डायग्नोज लोगों पर, 50 से 70 फीसदी इलाज करा रहे लोगों पर और एडवांस कैंसर से पीड़ित 64 से 80 फीसदी लोगों पर होता है। अक्सर दर्द के भय के कारण ही लोग चिकित्सा कराने पर मजबूर होते हैं और रोग का पता लगाने के लिए तैयार होते हैं।

कब दर्दनाक हो जाता है कैंसर

इस बीमारी में दर्द अक्सर आम होता है और यही वजह है कि लोग इलाज कराने को तैयार होते हैं, लिहाजा कोई कारण नहीं बनता है कि दर्द से राहत पाने को इलाज की प्राथमिकता में शामिल नहीं किया जाए।

इलाज में प्रगति होने के कारण मरीज के बचने की दर में सुधार के साथ ही कैंसर मरीजों में गंभीर दर्द के मामले भी बढ़ रहे हैं। एक शोध के मुताबिक, कैंसर के लगभग 33 फीसदी मरीज लंबे समय तक दर्द से जूझते रहते हैं। दर्द पर नियंत्रण के साथ प्रतिकूल जीवन गुणवत्ता सुधारने तक इलाज का लक्ष्य सिर्फ मरीज को जैसे-तैसे बचाना नहीं होता है।

कैंसर के मरीज तेज़ दर्द से परेशान रहते हैं। चित्र: शटरस्‍टॉक

क्या होता है मरीज पर इस तेज़ दर्द का असर

अनियंत्रित दर्द का प्रभाव मरीज को लंबे समय तक पीड़ित और विकलांगता का शिकार बना देता है। जिस कारण वह शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्याओं से जूझता रहता है।

नियंत्रण का अभाव, ताकत और गतिशीलता की कमी, घबराहट, डर और अवसाद इस अनियंत्रित दर्द के साथ आम तौर पर जुड़े होते हैं। मरीज की बढ़ती परेशानियों के कारण तीमारदारों के साथ उनके रिश्तों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

क्यों मुश्किल हो जाता है कैंसर के दर्द पर काबू पाना

कैंसर के दर्द पर काबू पाना वाकई एक चुनौती है, क्योंकि कैंसर के अलावा अन्य अंगों और नसों पर अधिक दबाव, कब्ज, पेट या शरीर के अन्य हिस्सों में सूजन समेत कई कारण दर्द को बढ़ा देते हैं। सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी जैसे इलाज का दुष्प्रभाव भी उतना ही कष्टदायक होता है।

रीढ़ में अर्थराइटिस जैसी अन्य समस्या दर्द को बढ़ा देती है। इससे भी बड़ी चुनौती होती है, जब कुछ प्रकार के कैंसर बड़े आक्रामक तरीके से बढ़ते हुए कई तरह के दर्द का कारण बन जाते हैं और इसके लिए नियमित जांच और थेरेपी में सुधार की जरूरत पड़ती है।

किया जा सकता है दर्द को नियंत्रित

अच्छी खबर यह है कि कैंसर मरीजों के बड़े हिस्से को प्राथमिक उपचार पद्धति के साथ योजनाबद्ध इलाज से दर्द से संतोषजनक राहत मिल सकती है।

इसमें मेडिटेशन, नर्व ब्लॉक, फिजियोथेरेपी और मनोवैज्ञानिक तकनीकों समेत दर्द से निजात दिलाने की आधुनिक पद्धतियों के साथ ट्यूमर का इलाज भी शामिल है।

मेडिटेशन भी कैंसर पेन मैनेजमेंट में मददगार हो सकती है। चित्र: शटरस्‍टॉक

शोध बताते हैं कि शुरुआती इलाज से बेहतर परिणाम मिलते हैं। इसलिए सलाह दी जाती है कि शुरुआती चरण में ही डॉक्टरी मदद लें। कम से कम साइड इफेक्ट के साथ अधिकतम राहत देने का लक्ष्य रखते हुए विशेष दर्द प्रबंधन इनपुट अधिक प्रासंगिक हो जाता है। इस बीमारी की जटिलता या दर्द की गंभीरता समय के साथ बढ़ती ही जाती है।

अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें

कस्टमाइज़ करें

एक तरह की थेरेपी सभी मरीजों के लिए कारगर नहीं होती

कैंसर के दर्द पर नियंत्रण सिर्फ दवाइयों या इंजेक्शन से नहीं हो सकता है। संतोषजनक नियंत्रण के लिए विस्तृत जांच से दर्द का सटीक कारण जानना जरूरी होता है और मरीज को शिक्षित करने सेअपेक्षित परिणाम मिल सकता है।

बीमारी के कारण अनुपयोगी मान्यताओं, मिजाज, घबराहट, असुरक्षा की भावना जैसे कारकों पर काबू पाना और इलाज, आध्यात्मिक एवं सामाजिक आवश्यकताएं पूरी करना जरूरी है। वरना बीमारी के साथ उनका दर्द बढ़ता जाएगा। मेडिटेशन जैसी सुकूनदायक थेरेपी, नियोजित इलाज से मरीजों की सोच बदल सकती है, उनको राहत दिला सकती है।

हर मर्ज की एक ही दवा नहीं होती है और किसी भी मरीज पर फार्मास्यूटिकल, इंटरवेंशनल, रिहैबिलिटेशन उपचार और अच्छे बर्ताव का इलाज पर खासा असर पड़ता है।

यह भी जान लें 

आपको एक उदाहरण देता हूं। हाल ही में मैंने सीने के दर्द से पीड़ित एक बुजुर्ग मरीज का इलाज किया। उन्हें रीढ़ में बड़ा ट्यूमर होने के कारण नसों पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा था। उन्हें दर्द से तत्काल राहत देना जरूरी था।

कैंसर से बचाव के लिए सही उपचार जरूरी है। चित्र: शटरस्‍टॉक

उन्हें 80 डिग्री से कम तापमान पर प्रभावित नसों को फ्रीज करने जैसी क्रिया एब्लेशन पद्धति का इलाज दिया गया। कुछ ही घंटे में उनका दर्द कम होने लगा। आधुनिक टेक्नोलॉजी का यह एक बेहतरीन उदाहरण है।

उनकी हर तरह से देखभाल की गई और उनके परिवार वालों ने भी महसूस किया कि वह अपने जीवन के आखिरी दिनों में अपने परिजनों के साथ बेहतर जिंदगी गुजारने लगे।

यह भी पढ़ें – गला बैठना भी हो सकता है लंग कैंसर का प्रारंभिक संकेत, जानिए क्यों होता है ऐसा

Dr. Amod Manocha

Dr. Amod Manocha is Head of Pain Management Services at Max Hospital, Saket ...और पढ़ें

अगला लेख