छोटी उम्र से ही सिखाएं बच्चों को इमोशनल मैनेजमेंट, ये 4 टिप्स हो सकते हैं मददगार
आपका बच्चा हर दिन अलग-अलग भावनाओं का अनुभव करता है, जैसे खुशी, उदासी, गुस्सा और डर। उनके लिए अपनी भावनाओं को समझना और उनसे निपटना कठिन हो सकता है। उन्हें अपनी भावनाओं को पहचानना, बोलना और उन पर नियंत्रण रखना सीखने में आपकी मदद की ज़रूरत है। परिवार, शिक्षा और समाज के बारे में जागरुकता के साथ यह भी जरूरी है कि आप अपने बच्चे को भावनाओं काे प्रबंधित करने के बारे में समझाएं। आपकी मदद के लिए हम यहां कुछ टिप्स दे रहे हैं।
समझिए अलग-अलग भावनाओं का स्तर
भावनाएं हमारे द्वारा अनुभव की जाने वाली स्थितियों पर दी जाने वाली प्रतिक्रियाएं हैं। वे एक ही बार में विकसित नहीं होतीं। बच्चे द्वारा महसूस की जाने वाली पहली भावनाएं प्राथमिक भावनाएं होती हैं। यह एक वर्ष से बच्चे में शुरू होती है इसमें खुशी, उदासी, क्रोध, भय, घृणा और आश्चर्य शामिल होते हैं।
माध्यमिक भावनाएं 15 से 24 महीने की उम्र के बीच देखी जाती हैं, क्योंकि तब आपका बच्चा पहले से ज्यादा जागरूक हो जाता है। वह समझने लगता है कि वह दूसरों से अलग है और एक व्यक्ति है। आपका बच्चा धीरे-धीरे अन्य माध्यमिक भावनाओं, जैसे अपराधबोध, शर्म और गर्व का अनुभव कर सकता है। जिसके लिए नियमों, मानदंडों और लक्ष्यों की समझ की जरूरत होती है।
इस तरह सिखाएं बच्चों को इमोशनल मैनेजमेंट (How to teach emotional management to kids)
1 भावनाओं को व्यक्त करने दें
बच्चों को बिना किसी आलोचना के व्यक्त करने दें कि वे कैसा महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि वे गुस्से में हैं, तो उनके साथ रहें और शांत रहने का प्रयास करें। जब वे काम कर रहे हों या जब वे अनियंत्रित रूप से रो रहे हों तो बातचीत करने का प्रयास न करें। बस उन्हें सांत्वना दें, उन्हें गले लगाएं और क्या हुआ यह पूछने से पहले उनके शांत होने का इंतजार करें।
2 बच्चे को भावनाओं के प्रति जागरूक बनाएं
इससे पहले कि आपका बच्चा अपनी भावनाओं को प्रबंधित कर सके, उन्हें पहले उनके बारे में जागरूक होना होगा। हालाँकि, बच्चों को हमेशा अपनी भावनाओं के बारे में पता नहीं होता है या उन्हें यह पहचानने में परेशानी हो सकती है कि वे क्या महसूस कर रहे हैं। आप अपने बच्चे पर पूरा ध्यान देकर इस प्रक्रिया में मदद कर सकते हैं।
यदि आप देखते हैं कि आपका बच्चा सामान्य से अलग व्यवहार कर रहा है, तो एक सरल सवाल इसके बारे में पूछे। इससे आपके बच्चे को अपनी भावनाओं को पहचानने में मदद मिल सकती है।
3 भावनाओं के शब्दों में पिरोना सिखाएं
बच्चा यदी कोई भी भावनाओं को अपने रिएक्शन से दिखा रहें हो तो उसे शब्दों में व्यक्त करने में उनकी मदद करें। यह जानने के लिए प्रश्न पूछें कि प्रतिक्रिया किस कारण से हुई, ये प्रतिक्रिया कोई भी हो सकती है वो दुख वाली, खुशी वाली, गुस्से वाली भी हो सकती है। आपको सभी तरह की भावानाओं पर ध्यान देना है और उनसे इसके बारे में सवाल पूछने है। उदाहरण के लिए, गुस्से वाली प्रतिक्रिया किसी खेल में खराब प्रदर्शन पर अस्वीकृति या हताशा की भावनाओं को छिपा सकती है। इसके लिए आपको उनसे बात करनी है।
4 अनुशासन सिखाएं न कि सजा दें
जब बच्चा आपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना सीखता है तो उसे दंडित करना अनुचित और अवास्तविक है। साथ ही, कुछ व्यवहार कभी भी स्वीकार्य नहीं होते हैं, जैसे मारना, काटना, दूसरों पर वस्तुएं फेंकना या गुस्से या हताशा में जानबूझकर चीजों को तोड़ना। इसके बड़े उनको समझा सकते है, इसके लिए थोड़ा कड़ा होना सही है लेकिन दंड देना नहीं। जो व्यवहार स्वयं, दूसरों या हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं उसके लिए उन्हें सही व्यवहार क्या है ये बताया जा सकता है।
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