जी हां, आपके पुरुष साथी भी चाहते हैं आपसे इमोशनल सपोर्ट, ये कुछ प्वाइंट्स हो सकते हैं मददगार
हमने अपनी दुनिया को दो हिस्सों में बांट रखा है- एक वह जो औरतों के लिए हैं और दूसरी वह जो पुरुषों के लिए है। इसमें हमारे रंग, मुहावरे, व्यवहार और सेहत तक को अलग-अलग बांट दिया गया है। जबकि मानसिक स्वास्थ्य के मामले में महिलाओं और पुरुषों दोनों पर बराबर ध्यान देने की जरूरत है। आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों को लगने वाले भावनात्मक आघात उन्हें आत्म हत्या तक ले जाते हैं। कोविड-19 के आंकड़े भी पुरुषों के प्रति ज्यादा सतर्क होने की ओर इशारा करते हैं।
पुरुषों के बारे में एक खास तरह की सोच है
हमने यह तय कर लिया है कि पुरुषों के लिए नीले रंग की कमीज ही बेस्ट है। पर अगर वे गुलाबी पहनना चाहें, तो हम एक टेढ़ी मुस्कान उनकी तरफ फेंकते हैं। यही हाल पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य का भी है। अगर आपका भाई, दोस्त या पार्टनर किसी बात पर नाराज हो जाए तो हम में से ज्यादातर का पहला कमेंट यही होगा, “क्या लड़कियों की तरह बात-बात पर रूठ जाते हो।” हमने अपने दिमाग में यह बैठा लिया है कि पुरुषों में भावनात्मक ग्रंथि नहीं होती।
पुरुष नहीं ढूंढ पाते लौटने का रास्ता
नेशनल इंस्टीेट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के अनुसार महिलाओं में पुरुषों की तुलना में मानसिक अवसाद और तनाव ज्यादा होता है। इसके बावजूद जब आत्महत्या के आंकड़ों पर गौर करें तो यहां पुरुष महिलाओं की तुलना में ज्यादा आत्महत्या की ओर मुड़ते हैं। अर्थात तनाव और अवसाद में होने के बावजूद महिलाएं जिंदगी में बनी रहती हैं। जबकि पुरुषों को लौटने का रास्ता नहीं मिलता।
यहां हमें खुद एक बार यह सोचने की जरूरत है कि कहीं वे रास्ते हम ही ने तो बंद नहीं कर दिए। एक मां, बहन, दोस्त और पत्नीे होने के नाते आपको भी यह सोचना है कि क्या आपने अपने पुरुष साथी के हंसने, रोने, रूठने, मनाने पर कोई बेरीकेडिंग तो नहीं की है !
क्या आप जानती हैं उनके मन की बात
पुरुष और महिला दोनों में ही तनाव के कारण मानसिक स्वास्थ्य के प्रभावित होने का खतरा समान रहता है। पर इन दोनों के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। महिलाएं जहां अवसाद में होने पर रोने लगती हैं, वहीं पुरुष चुप रहना शुरू कर देते हैं। उनके मन की बात समझने के लिए आपको कुछ संकेतों पर ध्यान देना होगा –
- क्रोध, चिड़चिड़ापन या आक्रामकता
- मूड स्विंग, एनर्जी लेवल और भूख में बदलाव
- स्मोकिंग शुरू करना या ज्यादा करना
- सोने में कठिनाई होना या बहुत ज्यादा सोना
- किसी भी काम पर फोकस करने में मुश्किल आना या अलग-थलग पड़ जाना।
- बढ़ी हुई चिंता या तनाव महसूस करना
- शराब और/ या ड्रग्स का ज्यादा सेवन
- दुःखी और निराश अनुभव करना
- आत्मघाती विचार आना
- कुछ भी ऐसा करना, जिससे दूसरे परेशान होने लगें
- पाचन संबंधी गड़बड़ी होना
- निगेटिव चीजों में शामिल होना।
आप कैसे कर सकती हैं उनकी मदद
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ अब तक के मामलों पर गौर करते हुए जो सुझाव देता है, उसमें सबसे ज्यादा जरूरी है बात करना। अमूमन पुरुषों में एक कॉमन पैटर्न होता है, वे जब तनाव या अवसाद में होते हैं तो ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं। जिसके चलते उन्हें बहुत कम पारीवारिक सपोर्ट मिल पाता है।
दूसरा रास्ता जो वे तनाव से बचने के लिए चुनते हैं, वह है शराब, सिगरेट या ड्रग्स का। इस कारण भी वे दोस्तों, परिवार से दूर होते जाते हैं। पर आपको समझना है कि यह असल समस्या नहीं है। ये केवल समस्या से उपजे संकेत हैं। आपको इन संकेतों को समझकर उनकी समस्या तक पहुंचना है।
बात कीजिए
पुरुषों के मन की बात समझने के लिए जरूरी है कि आप उन्हें बात करने का पूरा मौका दें। हो सकता है कि शुरुआत में यह बहुत इरिटेटिंग हो, कुछ-कुछ ब्लेम गेम जैसा, पर आपको धैर्य रखना होगा।
हेल्दीं डाइट दें
कुछ ऐसे आहार होते हैं जो तनाव और एंग्जायटी लेवल को बढ़ाते हैं। इनमें वे सभी तरह के गरिष्ठ भोजन शामिल हैं जिन्हें पचाने में पेट को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। इसलिए इनसे परहेज करें और सलाद, हरी सब्जियां, फल आदि को उनके आहार में शामिल करें।
टैबू तोड़ें
हंसना और रोना दोनों ही किसी खास जेंडर के लिए नहीं हैं। यह शरीर में होने वाली प्राकृतिक प्रतिक्रियाएं हैं। इसलिए जब कोई रोना चाहे तो उसे अपने मन का गुबार निकालने का मौका दें। रोने पर हुए अब तक के शोध इसे एक थेरेपी के तौर पर स्वीकार करते हैं।
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कस्टमाइज़ करेंएक्टिव रहने में मदद करें
चाहें घर के लिए बाजार से सब्जी लाना हो या किचन में उनसे मदद लेना, किसी भी काम में संकोच न करें। आपके पास प्यार नाम की वे चाबी है, जिसका इस्तेमाल आप पॉजीटिवली कर सकती हैं। घर के छोटे-मोटे काम भी उन्हें एक्टिव रहने में मदद कर सकत हैं। शारीरिक रूप से एक्टिव रह कर मानसिक तनाव से बचा जा सकता है।
आखिर में एक जरूरी बात
बढ़ते आंकड़ों को देखकर परेशान न हों। सबकी स्थिति अलग-अलग होती है। आप उन्हें बेहतर समझती हैं, किसी भी मनोचिकित्सक से ज्यादा। तो बस अपनी उसी सिक्स्थ सेंस का इस्तेेमाल कीजिए और उन्हें बेहतर मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कीजिए।