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हिंसा और गाली को सामान्य मानने लगते हैं गैजेट्स पर वर्चुअल हिंसा देखने वाले बच्चे

वर्चुअल संसार अब बहुत आक्रामक तरीके से हमारी दुनिया में शामिल हो चुका है। पर इस पर दिखाई जा रही हिंसा, आक्रामकता और भद्दी भाषा बच्चों के व्यक्तित्व को भी प्रभावित कर रही है।
मोबाइल वर्गआपको सोशल होने में भी मदद कर सकते हैं । चित्र: शटरस्टाॅक
Kamna Chhibber Updated: 23 Oct 2023, 09:40 am IST
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वर्चुअल दुनिया आज हरेक की जिंदगी का अहम् हिस्‍सा बन चुकी है। एक समय था जब हम इस बात पर चर्चा किया करते थे कि स्‍क्रीन टाइम को किस तरह से सीमित करें। साथ ही बच्‍चों को अलग-अलग तरह के गैजेट्स तथा सोशल मीडिया प्‍लेटफार्मों से किस प्रकार दूर रखा जाए। लेकिन महामारी के दौर में गैजेट्स पर निर्भरता काफी बढ़ चुकी है। और इसका उसर उनके व्यक्तित्व, भाषा और व्यवहार पर भी पड़ रहा है। जिसे रोका जाना बहुत जरूरी है।

लॉकडाउन और गैजेट्स 

क्‍लास में उपस्थिति से लेकर शोध कार्यों, मनोरंजन और यहां तक कि साम‍ाजिकता के लिए भी अब वर्चुअल स्‍पेस में सक्रियता ज्‍यादा हो चुकी है। वर्चुअल प्‍लेटफार्मों पर उपस्थिति बढ़ने के चलते बच्‍चों में आक्रामकता तथा हिंसा के मामले बढ़ने लगे हैं।

उधर, अभिभावकों के लिए भी बच्‍चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रखना लगभग नामुमकिन है। उन्‍हें इसी से संतोष करना पड़ता है कि बच्‍चे उनके साथ कितनी बातें शेयर करते हैं और ऐसे में कई बार बहुत सी बातें नज़रंदाज़ हो जाती हैं।

बच्चों की पहुंच में हैं बहुत से साधन 

मीडिया तथा सोशल मीडिया के जरिए हिंसक सामग्री तो बच्‍चों तक पहुंचती ही है, इसके अलावा उनके गेम्‍स के माध्‍यम से भी ऐसा लगातार हो रहा है।

ऑनलाइन क्‍लास के साथ-साथ अन्य माध्यमों तक भी बच्चों की पहुंच बढ़ी है। चित्र: शटरस्‍टॉक

हिंसक सामग्री के लगातार संपर्क में आने से बच्‍चों के मस्तिष्‍क पर इसका प्रभाव पड़ता है और अक्‍सर उनके संबंध भी इससे प्रभावित होते हैं। इसकी वजह है कि बच्‍चे जो देखते हैं, वही सीखते हैं। हिंसा प्रधान माध्‍यमों के संपर्क में आने का एक असर यह भी होता है कि वे उन पर दिखायी जाने वाली हर बात को, हर व्‍यवहार को और विभिन्‍न स्थितियों में होने वाली प्रतिक्रियाओं को आसानी से आत्‍मसात करने लगते हैं।

हिंसक होने लगता है व्यवहार

वर्चुअल हिंसा देखने का परिणाम यह होता है कि वे किसी भी प्रकार की विषम स्थिति और अवसाद में इन्‍हें स्‍वीकार्य प्रतिक्रिया मानने लगते हैं।

वर्चुअल मीडिया पर हिंसा को देखते चले जाने का एक और असर यह भी होता है कि बच्‍चे इसे लेकर कम संवेदी बनते जाते हैं। जिससे वे इसे हर प्रकार की प्रतिक्रिया में सामान्‍य मान लगते हैं।

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साथ ही, जब हिंसक साधनों को मान्‍यता मिलती है, यहां तक कि अच्‍छे कार्यों के संदर्भों में भी, तो ये न सिर्फ स्‍वीकृत होने लगते हैं बल्कि दूसरों के प्रति भावनात्‍मक अनुभवों में भी संवेदनाओं का ह्रास का कारण बनते हैं।

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नहीं समझ पाते समस्याओं का व्यवहारिक समाधान 

बच्‍चे अक्‍सर यह नहीं समझ पाते कि वर्चुअल प्‍लेटफार्मों पर दिखायी जाने वाली स्थिति में जिस प्रकार की प्रतिक्रिया की गई होती है, उससे अलग ढंग से भी व्‍यवहार किया जा सकता है। यह भी कि वर्चुअल माध्‍यमों पर दिखने वाला व्‍यवहार असल जिंदगी में स्‍वीकार्य नहीं भी हो सकता है। इस प्रकार से सोच-विचार करने में असमर्थता तथा अन्‍य कोई उपाय न अपनाने के परिणामस्‍वरूप बच्‍चों के विकास तथा उनकी प्रगति पर भी काफी गंभीर असर होता है।

ऐसे में क्या कर सकते हैं पेरेंट्स

बच्‍चे वर्चुअल माध्‍यमों पर क्‍या देख रहे हैं, उनसे क्‍या सीख रहे हैं, इसका प्रभाव उनके व्‍यक्तित्‍व विकास पर सीधे दिखायी देता है। यह बहुत जरूरी है कि वे मीडिया पर जो कुछ दिखाया जाता है उसे समझने का हुनर विकसित करें। उसके निहितार्थों को समझें और यह जानने की कोशिाश करें कि उस परिस्थिति में और क्‍या विकल्‍प हो सकते हैं।

यह जरूरी है कि बच्चों से हर मुद्दे पर खुलकर बात करें। चित्र: शटरस्टॉक

ऐसा करते हुए अभिभावक तथा स्‍कूल बच्‍चों के जीवन में कहीं बड़ी और बेहतर भूमिका निभा सकते हैं। इन पहलुओं पर बच्‍चों के साथ मिलकर गंभीरतापूर्वक चर्चा की जानी चाहिए।

बच्‍चों में किसी भी प्रकार की आक्रामकता को नज़रंदाज़ करना या उस पर ध्‍यान नहीं देने का एक परिणाम यह होता है कि बच्‍चे उसे स्‍वीकृत व्‍यवहार मानने लगते हैं। लेकिन यह बताना बहुत जरूरी है कि ऐसा नहीं है और हरेक परिस्थिति का इस्‍तेमाल बच्‍चों को सिखाने के लिए किया जाना चाहिए ताकि वे सही व्‍यवहार करने के बारे में सीख सकें।

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Kamna Chhibber

Head, Mental Health & Behavioral Science, Fortis Healthcare ...और पढ़ें

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