By Jyoti Sohi
Published Nov 13, 2024

Healthshots

हॉर्मोन्स और विभिन्न हेल्थ कंडीशन्स महिलाओं में बढ़ा देती हैं डायबिटीज का जोखिम, जानिए कैसे 

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में बहुत सारे ऐसे कारक मौजूद हैं, जब हॉर्मोनल असंतुलन का जोखिम बढ़ जाता है। विभिन्न स्थितियों और उम्र वर्ग में यह असंतुलन डायबिटीज का कारण और परिणाम दोनों साबित हो सकता है। 

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क्या है हॉर्मोन और डायबिटीज का संबंध

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शरीर में इंसुलिन की कमी और उसका सही इस्तेमाल न हो पाना शरीर में ब्लड शुगर लेवल को बढ़ाता है। जब ग्लूकोज रक्तप्रवाह में प्रवेश करता है, तो उस वक्त इंसुलिन कोशिकाओं में ग्लूकोज़ का अवशोषण करती है। मगर इसका स्तर बढ़ना और सही प्रकार से एब्जॉर्बशन न हो पाना डायबिटीज़ यानि हाइपरग्लाइसेमिया का कारण साबित होता है। 

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थायरॉइड और डायबिटीज

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हाइपरथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म थायरॉयड रोग हैं। गर्दन में मौजूद ग्लैंड से ये हार्मोन प्रोड्यूस होता है। हाइपरथायरायडिज्म उसे कहते हैं, जब थायरॉयड हार्मोन उच्च स्तर में प्रोड्यूस करता है। वही हाइपरथायरायडिज्म इंसुलिन के अधिक उत्पादन का कारण साबित होता है। ऐसे में डायबिटीज़ के शिकार लोगों में थायराइड रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।

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पीसीओएस और डायबिटीज

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पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम उस स्थिति को कहते हैं, जब ओवरीज़ के इर्द गिर्द सिस्ट बनने लगती  हैं। इसके चलते एग्स को रिलीज़ करने में मुश्किलात बढ़ जाती है। पीसीओएस के साथ अक्सर इंसुलिन रज़िस्टेंस बढ़ जात है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार पीसीओएस से पीड़ित आधे से ज़्यादा लोगों में 40 की उम्र तक टाइप 2 डायबिटीज़ विकसित हो जाती है। 

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मेनोपॉज में डायबिटीज

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मेनोपॉज के दौरान वेटगेन, स्वैटिंग और मूड स्विंग समेत कई बदलाव आते हैं। शरीर में ये बदलाव  इंसुलिन उत्पादन और संवेदनशीलता को भी प्रभावित करने लगते हैं। वे महिलाएं, जो रजोनिवृत्ति से गुज़रती हैं, उनमें टाइप 2 डायबिटीज़ का जोखिम बढ़ने लगता है। एनआईएच की रिसर्च के अनुसार 20 वर्ष की आयु से पहले डायबिटीज़ से पीड़ित महिलाओं में प्री मेनोपॉज होने की संभावना बढ़ जाती है।

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प्रेगनेंसी में डायबिटीज़

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गर्भावस्था के दौरान एस्ट्रोजन और कोर्टिसोल हार्मोन के स्तर में बदलाव आने लगता है। इसके अलावा प्लेसेंटा से रिलीज होने वाला हार्मोन इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ा सकता हैं। दरअसल, जब शरीर इंसुलिन प्रतिरोध से निपटने के लिए पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता है। उस वक्त मधुमेह का जोखिम बढ़ जाता है। 

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तनाव के कारण डायबिटीज

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शरीर में तनाव का स्तर बढ़ने कॉर्टिसोल और एड्रेनालाईन जैसे हार्मोन का रिलीज़ बढ़ जाता हैं। ऐसे में डायबिटीज़ का खतरा बढ़ता है, जिससे शरीर में थकान, कमज़ोरी और नींद न आने की समस्या बनी रहती है। इसके अलावा हार्मोन का स्त्राव बढ़ने से रक्त शर्करा को नियंत्रित करना मुश्किल कार्य है।    

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