By Jyoti Sohi
Published Aug, 2024

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रिश्तों को बेहतर तरीके से निभाने के लिए श्रीकृष्ण के इन 5 गुणों को करें अपने व्यवहार में शामिल 

जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है। इस पावन मौके पर भगवान श्रीकृष्ण की आराधना में उपवास रखते हैं। 16 कलाओं से परिपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। मानव धर्म और संस्कारों का बोध करवाने वाले श्रीकृष्ण मन के भीतर की लड़ाई को ज्ञान से जीतना सिखाते हैं। जानते हैं भगवद गीता के रचयिता भगवान श्रीकृष्ण से रिश्तों को निभाने और सार्थक बनाने के गुण 

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अटूट मित्रता की मिसाल 

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मित्रता की बात जब आती है, तो श्रीकृष्ण सुदामा की दोस्ती को याद किया जाता है। सुदामा भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय मित्र थे। श्रीकृष्ण ने ऊंच.नीच का भेद किए बगैर मित्र को भरपूर आदर सम्मान दिया। बचपन की इस अटूट मित्रता को उन्होंने बिछड़ने के बावजूद भी याद रखा।

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गुरूओं के प्रति सम्मान

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भगवान श्रीकृष्ण अपने गुरूजनों और साधु संतों के प्रति अटूट श्रृ़द्धा का भाव रखते थे। देवताओं में श्रेष्ठ श्री कृष्ण ने गुरूओं का सम्मान किया। अहंकार को मनुष्य का शत्रु मानने वाले श्रीकृष्ण ने बचपन में महर्षि सांदीपनि के आश्रम में रहकर 64 कलाओं की शिक्षा ग्रहण की थी। 

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एक कुशल मार्गदर्शक

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उनके चेहरे पर हर पल मुस्कान बनी रहती थी, जिसके चलते लोग उनकी ओर आकर्षित हुआ करते थे। उनके जीवन में कई उतार चढ़ाव आए। मगर वे जीवन से भी निराश नहीं हुए और अपनी सच्ची लगन से हर बाधा को आसानी से पार किया। उनका स्वाभाव बेहद सादा था, उनके अनुसार भ्रम में मार्गदर्शन और ज़रूरत पड़ने पर मदद की जानी चाहिए।

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निष्काम प्रेम की भावना

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राधा कृष्ण का निष्काम प्रेम युवाओं का मागदर्शन करता है। गोपियों के प्रेम और सम्मान के बावजूद राधा के प्रति उनका प्रेम कभी कम नहीं हुआ। जीवन के मूल्यों को समझते हुए वे धर्म के मार्ग पर चले। श्रीकृष्ण का राध के प्रति प्रेम सम्मान और सादगी को दर्शाता है। 

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माता पिता के प्रति कृतज्ञता

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समानता और सम्मान की भावना श्रीकृष्ण में समाई हुई थी। वे अपने आचरण और व्यवहार से माता पिता को आनंदित करने का प्रयास करते है। वे बचपन में मॉ यशोदा को खूब तंग करते और उन्हें माखनचोर कहकर भी  पुकारा जाता है। मगर उतना ही कृतज्ञता का भाव भी रखते थे। 

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