By Jyoti Sohi
Published Nov 26, 2024
अक्सर लोग व्यायाम करने के लिए जिम का रुख करते हैं। मगर वहां घंटों पसीना बहाने के बाद भी मन मुताबिक रिजल्ट नहीं मिल पाते है। वहीं कुछ लोग वॉक करके फिटनेस रूटीन की शुरूआत करते है। अगर आप भी सुबह की सैर में 6 का आंकड़ा जोड़ देते हैं, तो इससे वेटलॉस के अलावा शरीर को अन्य फायदे भी मिलते है। जानते हैं ट्रेंडिंग 6-6-6 वॉकिंग रुटीन के फायदे।
क्या है 6-6-6 वॉकिंग रूल
6-6-6 वॉकिंग रुटीन एक ऐसा फिटनेस रूटीन है, जिसमें सुबह 6 बजे और शाम 6 बजे 60 मिनट वॉक करके वज़न को कम किया जा सकता है। इसके अलावा वॉक से पहले 6 मिनट का वॉर्मअप और सैर के बाद 6 मिनट का कूल डाउन सेशन भी शामिल होता है। इससे वेटलॉस के अलावा हृदय रोगों और तनाव बढ़ने का जोखिम कम हो जाता है।
वेटलॉस में मिलती है मदद
इसका नियमित रूप से पालन करने से पेट पर जमा अतिरिक्त चर्बी को बर्न किया जा सकता है। साथ ही हेल्दी वेट मैनेजमेंट में मदद मिलती है। दिनभर बैठकर काम करने से शरीर में बढ़ने वाली कैलोरी स्टोरेज से बचने के लिए दिन में दो बार वॉक के लिए जाएं और वॉर्मअप और कूल डाउन रूल को भी फॉलो करें। इससे शरीर में बढ़ने वाले मोटापे से बचा जा सकता है।
शरीर के लचीलेपन को बढ़ाए
दिनभर बैठकर काम करने से मांसपेशियों में ऐंठन बढ़ने लगती है। इसके अलावा शरीर में थकान और आलस्य का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में रोज़ाना वॉक करने से शरीर में बढ़ने वाली स्टिफनेस को कम कियाजा सकता है। शरीर में एनर्जी का स्तर बना रहता है।
हृदय रोगों के खतरे को घटाए
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार नियमित रूप से 30 मिनट की वॉक करने से व्यक्ति के शरीर में 35 फीसदी हृदय रोगों का खतरा कम हो जाता है। इससे ब्लड प्रेशर नियमित बना रहता है और कोलेस्ट्रोल बढ़ने की समस्या भी हल हो जाती है। रोज़ाना वॉक करने से ब्लड का सर्कुलेशन उचित बना रहता है।
स्ट्रैस को करे कम
वर्कप्रेशर बढ़ने तनाव का स्तर बढ़ जाता है। ऐसे में दिन में दो बार वॉक करने से मांसपेशियों को मज़बूती मिलती है और शरीर में एनर्जी का स्तर बढ़ने लगता है। इससे काम में फोकस करने की क्षमता में सुधार आने लगता है और याददाश्त भी बढ़ जाती है। वे लोग जो स्के शिकार है, उन्हें अवश्य 6-6-6 वॉकिंग रुटीन अपनाना चाहिए।
डायबिटीज़ को करे नियंत्रित
रोज़ाना फॉलो करने से इंसुलिन संवेदनशीलता को बढ़ाकर डायबिटीज़ के स्तर को कम करने में मदद मिलती है। इससे कोशिकाएं ग्लूकोज का बेहतर तरीके से प्रयोग कर पाती हैं। इससे शरीर में इंसुलिन उत्पादन की आवश्यकता कम हो जाती है और डज्ञयबिटीज़ मैनेजमेंटे में मदद मिलती है।