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मां बनना स्त्री होने का सर्टिफिकेट नहीं, मिलिए 3 ऐसी महिलाओं से जिन्होंने ‘मां न बनने’ का फैसला किया

कभी-कभी लगता है कि मां होना इतना ज्यादा ओवररेटेड कर दिया गया है कि एक स्त्री के व्यक्तित्व को उसी से तौला जाने लगता है। जबकि अब महिलाएं ये मान रही हैं कि मां बनना या न बनना किसी भी स्त्री का निजी फैसला है, स्त्रीत्व का सर्टिफिकेट नहीं।
Updated On: 11 Oct 2024, 09:10 pm IST
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motherhood kisi stree ka sampoorn vyaktitva nahi hai
मां बनना ही किसी स्त्री के जीवन का एकमात्र उद्देश्य नहीं है ।

अरुणा ईरानी ने अपने इंटरव्यू में एक बार कहा था कि वे अपने बच्चे को वह संघर्ष नहीं देना चाहतीं, जिसका उन्होंने सामना किया। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से होने के बावजूद उन्होंने ने केवल बॉलीवुड में अपना एक खास मुकाम बनाया, बल्कि अपने छोटे भाई-बहनों को भी पढ़ने और आत्मनिर्भर होने में मदद की। वहीं शबाना आज़मी ने भी अपने बच्चे न पैदा करने का फैसला किया। उनका कहना था कि हम दोनों (शबाना आज़मी-जावेद अख्तर) के बॉन्ड को मजबूत करने के लिए बच्चे को जन्म देने की जरूरत नहीं है। उदाहरण बहुत सारे हैं, और उनके कारण भी अलग-अलग हैं। मगर अब ऐसी बहुत सारी महिलाएं हैं, जो ‘मां बनना’ बहुत जरूरी नहीं (womanhood without motherhood) मानतीं। आइए मिलते हैं ऐसी ही 3 महिलाओं से।

करुणा कंचन : ममता है तो अपने बच्चे तक ही सीमित क्यों रहना 

टेलीविजन पर आने वाले धारावाहिक पुष्पा इम्पॉसिबल से घर-घर में लोकप्रिय हो चुकी करुणा कंचन अपने पेट डॉग्स को ही अपना बच्चा मानती हैं। खास बात ये कि इनमें से किसी को भी उन्होंने खरीदा नहीं है। वे सभी किसी न किसी चोट या उपेक्षा के कारण गलियों में घूम रहे थे। इन लावारिस कुत्तों की उन्होंने अपने घर में अपने बच्चे की तरह देखभाल की।

Pushpa ke kirdar ne mujhe bhi bahut kuchh sikhaya
एक मनुष्य और एक कलाकार के तौर पर पुष्पा ने मुझे बहुत कुछ सिखाया।

करुणा कहती हैं, “यकीनन मां का रुतबा बहुत बड़ा होता है। उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। हम मानते हैं कि एक मां अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर सकती है। पर इसका यह अर्थ नहीं है कि वह सिर्फ अपने बच्चे के लिए ही किया जाए। हमारे आसपास ऐसे बहुत सारे जरूरतमंद बच्चे हैं, जिनकी हम मदद कर सकते हैं। अगर सचमुच हम में मातृत्व है।”

अमिता नीरव : बच्चा निजी निर्णय है सामाजिक जिम्मेदारी नहीं

कमोबेश दुनिया की हर सभ्यता में स्त्री के मातृ-स्वरूप को प्रतिष्ठा दिए जाने के प्रमाण हैं। सभ्यता के ठीक-ठीक विकास से पहले भी कबीलों के संघर्षों में जनसंख्या का सबसे महत योगदान रहा था। उसके बाद के वक्त में दस हजार साल की सभ्यता के इतिहास में निजी संपत्ति के उदय और उत्तराधिकार की अवधारणा ने परिवार की कल्पनाओं को साकार किया। यहीं से स्त्री की नियति का निर्धारण हुआ और यही वो टर्निंग पॉइंट रहा, जहां से स्त्री के मातृ स्वरूप की प्रतिष्ठा हुई।

तब से लेकर आज तक स्त्री के इस रूप की प्रतिष्ठा में रत्ती भर कमी नहीं आई है। वक्त के साथ-साथ इसे कई कथाओं, मिथकों, कहावतों, तर्कों, तथ्यों आदि-आदि से और मजबूत ही किया गया है। एशियाई समाजों में इसमें एक और नई चीज जुड़ी वो है ‘बेटों की माँ’ होने की प्रतिष्ठा। यहां का क्रम यूं है कि सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित ‘बेटों की मां’, फिर ‘बेटे’ की मां आखिर में ‘बेटी’ की मां को सम्मान दिया जाता है। आधुनिक दौर तक आते-आते भी माँ की प्रतिष्ठा, मां होने का महिमामंडन कम नहीं हुआ है।

ek dusre se pyar karne ke liye bachcho ko jabran kyu laya jaye
एक-दूसरे से प्यार करने के लिए क्या वाकई बच्चे होना जरूरी है?

मुझे इस क्रम, इस टैबू से आपत्ति थी। इसलिए मैंने तय किया कि मुझे पंक्ति से खुद काे अलग करना है। हालांकि शादी से पहले यह निश्चित नहीं था कि मैं अपने निर्णय में कितनी सफल हो पाऊंगी। मगर शादी के बाद पति से इस मुद्दे पर बात की, तो उन्होंने भी सहमति दी। आज 27 साल हो चुके हैं हमारी शादी को। इस दौरान परिवार और समाज से अलग-अलग तरह से बच्चे की  अहमियत लोग बताते रहे हैं।

पहले जो कहते थे कि गृहस्थी में प्यार बच्चों से बढ़ता है, वे अब बुढ़ापे की लाठी होने का तर्क देते हैं। मगर हम दोनों का निर्णय नहीं बदला और न ही प्यार में कोई कमी आई। मेरी राय में बच्चा पैदा करना या न करना किसी व्यक्ति का निजी निर्णय है, यह  कोई सामाजिक जिम्मेदारी नहीं है कि हर तीसरा व्यक्ति आपसे पूछा कि आपके कितने बच्चे हैं।

होना यह चाहिए कि यदि आप भावनात्मक औऱ आर्थिक तौर पर बच्चे की परवरिश के लिए तैयार नहीं हैं या फिर आपके रिश्तों में आपको किसी और की जरूरत महसूस नहीं हो रही है, या अभी आपका अपना रिश्ता ही ठीक से बना नहीं है, तो तो पेरैंट हो जाने के विकल्प का चुनाव स्थगित किया जा सकता है। क्योंकि तमाम दबाव, प्रलोभन और असुरक्षा के बावजूद बच्चे की परवरिश माता-पिता का ही दायित्व होगा।

अमृता बेरा : हमने बहुत पहले ही तय कर लिया था कि हमें बच्चे नहीं चाहिए 

कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे को पूरा नहीं कर सकता। इसमें बच्चे भी शामिल हैं। मैं एक ग़ज़ल गायिका, लेखिका और अनुवादक हूं और मेरा अपना जीवन है। मां न बनकर मुझे नहीं लगता कि मुझमें किसी तरह का अधूरापन है। मेरा परिवार का माहौल ऐसा रहा है कि हमें हमेशा से अपने फैसले लेने का अधिकार रहा है और हमने बहुत शुरूआत में ही यह तय कर लिया था कि हमें बच्चों की जरूरत नहीं है।

ye kisi bhi stree ka niji mamla hai
बच्चे पैदा करने है या नहीं, यह किसी भी स्त्री का निजी मामला होना चाहिए।

मेरी बहन के बच्चे, कहा जाए तो मेरे ही घर में बड़े हुए हैं। मैं जितने भी बच्चों से मिलती हूं, वे तुरंत मुझसे घुलमिल जाते हैं और मैं भी स्वाभाविक रूप से उन्हें मातृत्व की भावना के साथ पूरा प्यार उड़ेल पाती हूं। उसके लिए मुझे अपना मां होना ज़रुरी नहीं लगता। प्यार और ममता स्वत: स्फ़ूर्त प्रस्फुटित होने वाली भावना है, जो हर बच्चे के लिए मन में होती है।

क्या प्यार करने के लिए यह जरूरी है कि आपको अपनी कोख से ही बच्चा पैदा करना है? आबादी पहले ही इतनी ज्यादा है कि हम इसे और बढ़ाना नहीं चाहते थे। कई देशों में जहां पहले सिंगल चाइल्ड की योजना जोड़े बना रहे थे, वहीं अब एक भी बच्चा नहीं चाहते।

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लेखक के बारे में
योगिता यादव
योगिता यादव

कंटेंट हेड, हेल्थ शॉट्स हिंदी। वर्ष 2003 से पत्रकारिता में सक्रिय।

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