नमस्कार दोस्तों ! मेरा नाम गीता श्री है। पिछला एक महीना कोरोना से मुकाबला करते हुए बिताया। अब खुद को, अपने आसपास को और इस पूरी दुनिया को एक नई नजर से देख रही हूं। पर अब भी भय से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाई हूं। क्योंकि कोरोना से जंग जीतने के बाद भी एक लंबी लड़ाई है, जो आपके भीतर चलती रहती है। आपके तन और आपके मन में भी। आज उसी लड़ाई के अनुभव आपके साथ साझा कर रही हूं।
कोरोना निगेटिव रिपोर्ट आने तक पूरा माहौल दहशत में! टेस्ट के बाद सन्नाटे में डूबी हुई थी। जाने क्या रिपोर्ट आए। 14 सितंबर तक होम आइसोलेशन में रहने के बाद मुक्ति का अहसास हुआ। मगर भीतर भय बना हुआ था, कहीं दोबारा पॉज़िटिव न आ जाएं। कई केस सुनने में आए, मैंने होम आइसोलेशन ख़त्म होने के एक सप्ताह बाद तक खुद को एकांत में रखा, सबसे दूर रही। बस बालकनी तक आना जाना करती, बाहर बिल्कुल नहीं। लोग मुझे संशय से घूरते और मैं स्वंय भी असहज महसूस करती। भीतर रहना ही बेहतर समझा और रिपोर्ट आने तक एकांतवास में रही।
मेरा बाहरी दुनिया से संपर्क लगभग कट चुका था। एक कमरे में किसी साये की तरह मंडराती रहती। अपने अच्छे और मुक्त दिनों को याद करती और सोचती थी कि बस कुछ दिन और। फिर बाहर उड़ान भर सकूंगी। मुझे मेरे अदृश्य पंख याद आने लगे थे।
वो दिन आया, मैंने पुन: जांच के लिए सैंपल दिया। रिपोर्ट आने से पहले की रात बहुत तनाव भरी थी। अनिद्रा की शिकार वैसे ही थी, उस रात और नींद नहीं। जानें क्या आए? कहीं फिर पॉज़िटिव आया तो? फिर चौदह दिनों का एकांतवास! फिर वही सारी प्रक्रिया और मैं दहशत में डूबती उतरातीं रही रात भर।
क्या किया ??
जैसे इम्तिहान का रिज़ल्ट आने वाला होता है, दिल की हालत कुछ ऐसी थी। मुझे नींद नहीं, मुझे दिलासे की जरुरत थी। कौन दे सकता था? थोड़ी हंसी की जरुरत थी, आंखों की नमी को सोख लें, ऐसी मुस्कान खोज रही थी।
उस रात मैंने मूवी एप पर क्रिसमस मूवी तलाशी और देखने लगी… देखती गई… मुस्कुराती गई… गाल दुखने लगे मुस्कुराते – मुस्कुराते।
मिज़ाज में रुमानियत भर गई। रात भर हल्की रोशनी में सफ़ेद क्रिसमस मनाती रही। बर्फ़ गिरती रही, कभी बर्फीली आंधियां, कभी राजकुमार आता, कभी कोई लड़की पत्रकार “अंबर” जैसी जो मुझे मेरे शुरुआती दिनों की याद दिलाती। मैं पलंग पर पीछे टेक लगा कर जो बैठी … सुबह हो गई। एक के बाद एक फ़िल्में आती गईं… जिसमें थोड़े आंसू, विरह, रोमांस, अलगाव और हैप्पी एंडिंग। साज़िशें भीं, जिन्हें विफल करती हुई नायिकाएं।
उस रात दहशत मुझ पर ज्यादा हावी नहीं हो पायी। भीतर तक बर्फ़ की उजास फैल गई थी। सैंटा से बार-बार मिलती और अपनी विश उछाल देती। रात कुछ यूं कटी !!
जैसे ही निगेटिव रिपोर्ट आई … जैसे सारे बंधन खुल गए हों यकायक ! सबकुछ आसान लगने लगा, बाहर भीतर आने-जाने लगी। घर में बिना मास्क घूमने लगी, सबने गले लगाया, दरों दीवार को छू-छू कर देखा, पौधों को सहलाया, हर चीज़ जी भर देखी, आकाश को निहारा, बाहर के अंधेरे को चखा, हवाओं ने आज कुछ और गुदगुदाया।
मन हुआ ज़ोर से चिल्लाऊं… मैं मुक्त हुई। मैं जीत गई, मृत्यु के भय से बाहर निकल आई हूं।
आवाज़ नहीं निकली! आवाज़ बेदम, अपनी आवाज़ में बहुत स्थिरता महसूस की।
मैं तो इतनी शांति से बात नहीं करती थी। मैं भीतर से इतनी शांत हो गई या आवाज़ में कोई दरार आ गई है?
मैं अपनी ख़ुशियां चहक कर जता क्यों नहीं पा रही? मैंने तो सोचा था, ठुमक कर बताऊंगी सबको। ठुमकते हुए जैसे कमरे में झाड़ू लगाया करती थी, गुनगुनाते रहना और ठुमकते रहना… ये दो स्थायी अदा ठहरी अपनी। बढ़ती उम्र का कोई असर नहीं इन पर। पर लग रहा है कि अब असर पड़ गया है।
मुझे नहीं पता कि मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं या नहीं। सिर्फ़ भाप, गर्म पानी और काढ़ा पीने से मुक्ति मिली है, विटामिन से नहीं। बिना एसी के चौदह दिन काटे, अब एसी की इजाज़त मिली। इतने दिनों में शरीर गर्म हवा में सोने का आदी हो गया था, तो अब एसी की हवा चुभने लगी और पंखा भाने लगा। ठंडी चीज़ें पसंद नहीं आईं। स्वाद लौटा, मगर खाओ तो कुछ स्वाद न चढ़े। बस खाना है, खा लिया। पौष्टिकता के नाम पर बहुत कुछ झेलना पड़ता है।
चौदह से बीस दिन जो एकांत में गुज़ारे, संशय की स्याह छायाओं से मुठभेड़ करते रहे। हर पल अपनी सांसों पर नज़र रखते रहे। ऑक्सीजन का लेबल चेक करते रहे… खिड़की के बाहर से गुजरने वाली हवा को नाकों में ज़ोर – ज़ोर से भरते रहे…!
बाहर के दृश्य ग़ायब रहे। सोशल मीडिया पर साज़िशें , बद्दुआएं दिखाई देती रहीं। उन सबने झकझोर कर रख दिया।
जैसे अभी डॉक्टर ने बताया कि ये कमजोरी एक दो-महीने और रहेगी। आप ख़ूब नींद लें, तनाव न लें, सकारात्मक रहें। आपने बहुत बड़ी जंग जीती है, आप कोरोना वारियर हैं। अब आपको कोई नहीं हरा सकता।
जीत – हार में शामिल पहले भी नहीं रही कभी, ज़िंदगी विजेता घोषित हो गई है।
और मैं …
साइड इफ़ेक्टस से जूझ रही हूं। अच्छा खाना, सोचना और वही पुराना आनंद भाव वापस लाना या पाना … अवसाद से बचने के लिए जरुरी है। हाल ही में खबरें पढ़ीं कि अवसाद में जा रहे कुछ लोग। हमें खुद ही बचना है, अपने को बचाना है। हमें अपनी जरुरत सबसे ज़्यादा है।
हमें ज़िंदगी के प्यार में फिर से पड़ जाना चाहिए, इससे ज़्यादा रुमानी कुछ भी नहीं।
ये सबसे बड़ा साइड इफ़ेक्ट है।
यह भी पढ़ें – 11 साल की उम्र में हुई थी यौन शोषण की शिकार, अब भी उस डर से लड़ रही हूं : ये है मेरी कहानी
डिस्क्लेमर: हेल्थ शॉट्स पर, हम आपके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सटीक, भरोसेमंद और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके बावजूद, वेबसाइट पर प्रस्तुत सामग्री केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है। इसे विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। अपनी विशेष स्वास्थ्य स्थिति और चिंताओं के लिए हमेशा एक योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से व्यक्तिगत सलाह लें।