हम एक ऐसे युग में हैं, जहां महिलाओं की बढ़ती संख्या पुराने रिकॉर्ड तोड़ रही है और वे अपने सपनों को फॉलो कर रही है। ऐसे में अगर आपकी यात्रा भी शुरू हो गई है, तो वहां जाने के लिए आपको एक लंबा रास्ता तय करना है। कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां आज भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व चौंकाने वाला है जैसे कि न्यूरोसर्जरी।
चिकित्सा की यह शाखा हमें 100 वर्ष पीछे ले जाती है, क्योंकि उस समय विश्व स्तर पर विशेषज्ञों का एक छोटा सा समुदाय था, लगभग 50,000 विशेषज्ञ। भारत की बात करें तो यहां केवल 3,700 न्यूरोसर्जन हैं। विश्व स्तर पर, यह अनुमान है कि 20 में से 1 महिला न्यूरोसर्जन है, जो समग्रता में 1% से भी कम है। भारत की कहानी भी इससे अलग नहीं है।
इस क्षेत्र में महिलाओं के लिए इतनी कठिनाइयां होन के बावजूद, डा. श्रद्धा महेश्वरी ने अपने दृढ़ संकल्प को नहीं छोड़ा। वे मुंबई की तीसरी महिला न्यूरोसर्जन हैं, और आज देश में एक अच्छी रैंक पर हैं। अपने जुनून और दृढ़ता के जरिए उन्होंने कई अन्य महिलाओं को इस रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया है।
हेल्थ शॉट्स के साथ एक विशेष बातचीत में, उन्होंने अपनी यात्रा के बारे में हम सभी को बताया। साथ ही यह भी बताया कि इस क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम क्यों है, और कैसे 2020 सभी के लिए सीखने का वर्ष रहा है, जिसमें चिकित्सा क्षेत्र भी शामिल है।
डॉ. माहेश्वरी हमेशा से डॉक्टर बनने की ख्वाहिश रखती थीं, हालांकि न्यूरोसर्जरी पहले से उनके दिमाग में नहीं थी। इसे किस्मत का आघात कहें, कि वह एक अखबार में न्यूरोसर्जरी के कोर्स को लेकर सोच में पड़ गईं। शुरू में थोड़ा हिचकिचाने के बाद, उन्होंने इसके लिए जाने का फैसला किया। वह इस बारे में बहुत कम जानती थी।
वे कहती हैं, “हालांकि मैं सलेक्ट हो गई थी, लेकिन मैं अभी न्यूरोसर्जरी कोर्स को करने को लेकर अनिश्चित थी। बहुत सारे वरिष्ठ डॉक्टरों ने सलाह दी कि यह शाखा महिलाओं के लिए नहीं है। लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे प्रोत्साहित किया, जब मैंने इसके लिए जाने का फैसला किया। जब मैनें इस पाठ्यक्रम का विकल्प चुना, तब भी मेरे पास कुछ बेहतरीन शिक्षक थे, जो न्यूरोसर्जरी को लेकर काफी उत्हासित थे।
उनसे मुझे बहुत मदद मिली। लेकिन मैने नोटिस किया कि मुझे अपनी योग्यता को साबित करने के लिए पुरूषों की तुलना में अधिक कठिन काम करना पड़ा। उस समय मुझे लगा कि यह लिंग पक्षपात है या वे स्वाभाविक रूप से पुरुषों के साथ काम करने में अधिक सहज थे।
कुछ वर्षों के बाद ही उन्हें एहसास हुआ कि आसपास शायद ही कोई महिला न्यूरोसर्जन थी। मुंबई में तीसरी महिला न्यूरोसर्जन के रूप में, अपार अवसर थे, लेकिन यह यात्रा चुनौतियों से भरी थी।
डा. महेश्वरी कहती हैं, कि मैनें कई बड़े-बड़े अस्पतालों में काम किया है, जिनमें एक कमरा तक नहीं होता था, जिसमें एक महिला जा कर आराम कर सके। हालांकि कोई भी व्यक्ति अपने काम के दौरान, अपरिचित वातावरण या अनुपयुक्त काम की स्थिति का सामना कर सकता है। वास्तव में मुझे सबसे मुश्किल जो लगा वह यह था कि आसपास की महिलाएं, किसी भी न्यूरोसर्जन का समर्थन नहीं करती थीं। एक महिला को न्यूरोसर्जन के रूप में या उनके बॉस के रूप में स्वीकार करने में बहुत प्रतिरोध था।
लैंगिक भेदभाव सिर्फ कॉलेजियम तक ही सीमित नहीं था, बल्कि यह मरीजों में भी था। कई बार, लोग उनके पास आए और पूछा, “तुम एक महिला हो, क्या तुम सर्जरी कर पाओगी?” हालांकि, इन सभी स्थितियों ने डॉ. माहेश्वरी को असहज और असम्बद्ध बना दिया था, लेकिन अपने क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन की खुशी ने उनका उत्साह बनाए रखा।
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कस्टमाइज़ करेंइसके तुरंत बाद, उन्हें सरकार द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेज में एक न्यूरोसर्जरी विभाग विकसित करने का अवसर मिला। जिसे कई अन्य लोग अस्वीकार कर चुके थे। डॉ. महेश्वरी ने इसे स्वीकार करने का फैसला किया। वह निश्चित रूप से सोचती हैं कि यह उनकी प्रोफेशनल लाइफ का सबसे अच्छा निर्णय था।
डॉ. माहेश्वरी ने महसूस किया कि महिलाओं के न्यूरोसर्जरी न करने के कई कारण हैं। ऑपरेशन काफी लंबे होते हैं, और अनियमित घंटों में किए जाते हैं। क्योंकि मुख्य रूप से ज्यादातर मामले आपातकालीन होते हैं। इसका मतलब यह है कि महिलाओं को अपने पारिवारिक जीवन से समझौता करना पड़ता है, और अधिकांश महिलाएं इसके साथ सहज नहीं हैं।
दूसरी बात यह कि डा. महेश्वरी कहती हैं, एक न्यूरोसर्जन को अपने मस्तिष्क और रीढ़ का लगातार इस्तेमाल करना होता है और महिलाओं को शारीरिक रूप से कमजोर माना जाता है। इसलिए इन ऑपरेशनों को करना उनके लिए एक चुनौती माना जाता है।
हालांकि चिकित्सा विज्ञान की इस शाखा को अभी भी और बहुत मजबूत होने की आवश्यकता है, लेकिन वह मानती है कि चीजें थोड़ी बदलने लगी हैं। किसी के लिए आज सर्जरी करना कम बोझिल है। वह यह भी महसूस करती हैं कि धीरे-धीरे और लगातार, अधिक महिलाएं इस क्षेत्र में आ रहीं हैं।
2020 संकट और परिवर्तन का वर्ष रहा है। कोविड -19 के प्रकोप के कारण हम में से अधिकांश लोगों के जीवन ने एक बड़ा मोड़ लिया है। डॉ. माहेश्वरी कहती हैं कि इसने अधिकांश उद्योगों को प्रभावित किया है, लेकिन इन चुनौतियों का सामना करने वाला मेडिकल क्षेत्र पहला था।
मामलों की बढ़ती संख्या के साथ तालमेल रखने और चिकित्सा प्रणाली को बेहतर बनाने की कोशिश में, हम हर रोज, एक निश्चित समय में कई चुनौतियों से निपट रहे थे। 50% से अधिक न्यूरोसर्जिकल कार्य आपातकाल के तहत आते हैं। इसलिए हमारी सेवाएं कभी भी रुकी नहीं हैं। चाहे वे सकारात्मक या नकारात्मक थे, हमने उन रोगियों की सर्जरी की, जिन्हें इसकी आवश्यकता थी। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में उन्होंने कोरोनोवायरस का भी सामना किया।
डॉ. माहेश्वरी को लगता है कि चुनौतियों के बावजूद महिलाएं इस क्षेत्र के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
महिलाएं मल्टीटास्किंग और नाजुक चीजों को संभालने में बेहतर हैं। यह दोनों ही न्यूरोसर्जरी की जरूरत हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से महिलाएं इस शाखा में रहने के लिए परफेक्ट हैं। समय तेजी से बदल रहा है और आज महिलाएं न्यूरोसर्जरी सहित हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहीं हैं। मैं चाहूंगी कि प्रत्येक महिला न्यूरोसर्जन को कम से कम एक और महिला को न्यूरोसर्जन बनने की सलाह दे।
मेरा दृढ़ता से मानना है कि केवल एक महिला ही महिला की सबसे बड़ी ताकत हो सकती है। हर महिला को यह याद रखना चाहिए।
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