थेरापयूटिक आर्ट लाइफ कोच, ट्रांसफॉर्मेशन कोच, थिएटर एक्टिविस्ट, एक्टर, पेंटर और ऑथर हैं गीतिका गोयल। गीतिका गोयल मानती हैं थिएटर एक थेरेपी के समान है, जो व्यक्ति के अवसाद (Depression) और चिंता (Anxiety) को दूर कर देता है। एक व्यक्ति के तौर पर यह निखार देता है। जीवन को समझने (Life Lessons) और खुद को इमोशनली बिल्ड अप (Emotionally build up) करने के लिए जीवन में एक बार सभी को थिएटर जरूर करना चाहिए। एक व्यक्ति जब अपने खुद से बाहर निकलकर पूरे विश्वास के साथ एक किरदार को निभाता है। जो उससे बिलकुल अलग है, तो उस समय वह खुद को भूल जाता है। उस समय उसके निजी जीवन की परेशानियां, दर्द(Life Pain), डिप्रेशन सब उससे दूर हो जाते हैं। इस तरह थिएटर एक थेरपी का काम करता है। थिएटर थेरेपिस्ट के तौर पर लोकप्रिय गीतिका ने किस तरह इस क्षेत्र में खुद को स्थापित किया, किन कठिनाइयों से जूझा और बुलंदियों को (Geetika goyal inspirational life story) छुआ। इन सभी के बारे में हेल्थशॉट्स की उनसे हुई बातचीत में जानते हैं।
गीतिका उस समय मात्र 3 साल की थीं, जब उनकी मां पीएचडी (PhD) कर रही थीं। उनके पापा भी लेखन और अध्यापन में व्यस्त रहते थे। वो दोनों जब भी अपना काम करते, गीतिका के हाथों में काग़ज़ और पेन्सिल थमा देते थे। इसलिए जब से उन्होंने होश सम्भाला, खुद को ड्राइंग और पेंटिंग करते हुए पाया। गीतिका बताती हैं, ‘रेखाओं और रंगों से रिश्ता बहुत जल्दी बन गया था। सीखने के बाद मैंने सिखाना भी शुरू कर दिया। तब एक मेंटर ( mentor) से ज़्यादा एक कोच (coach) की तरह मुझे सिखाना सहज रूप से आ गया।’ कोच बनने के लिए उन्हें कोई ख़ास प्रयास नहीं करना पड़ा। गीतिका के पास हर परिवेश से सीखने वाले लोग आने लगे। तब लोगों की बनाई पेंटिंग, उनकी रेखाओं और रंगों के प्रयोग से वे उनकी मनस्थिति समझने लग गईँ। कोच के काम को पुख़्ता करने के लिए उन्होंने 5 साल पहले थेरापयूटिक आर्ट लाइफ कोच (Therapeutic Art Life Coach) का सर्टिफिकेट भी ले लिया। वे एक लाइफ़ कोच के तौर पर अलग अलग कॉर्पोरेट हाउस में आर्ट और थिएटर तकनीक का इस्तेमाल करती हैं।
कुछ महिलाओं के साथ मिलकर गीतिका गोयल ने 2013 में एक थिएटर ग्रुप ‘पतंग’ शुरू किया। पतंग बिना किसी प्रकार की चिंता के उड़ सकती है। यह हवा के रुख़ को जानकर उसके साथ आगे बढ़ना जानती है। उसे सिर्फ सहयोग के लिए धागा या डोरी चाहिए। गीतिका के थिएटर ने आम महिलाओं के लिए डोरी का काम किया। पिछले 10 सालों में एक बड़ी संख्या में कामकाजी महिलाएं और होम-मेकर्ज़ उनके साथ जुड़ गईं।
अलग-अलग परिवेश, परिवार, भाषाओं, विचारों वाली इन महिलाओं को एक डोरी बांधे हुए थी। उनकी कुछ अलग करने की चाह। कुछ ऐसा काम जो उनके रोज़मर्रा के कामों से अलग हो। वे खुद की पहचान बना सकें। गीतिका खुश होकर कहती हैं, ‘मेरी मां भी इस ग्रुप का हिस्सा हैं। वे रिटायर होने के बाद 65 की उम्र में थिएटर से जुड़ीं। रिटायर होने के बाद उन्हें ऊर्जावान बनाये रखने और एक नई पहचान देने में थिएटर ने अहम भूमिका निभाई।
गीतिका के थिएटर ग्रुप की खासियत है कि इस ग्रुप से जुड़े सभी लोगों को ऐसे लोगों का साथ मिला, जो बिना किसी जजमेंट के उनकी बात सुनते हैं। कोरोना के समय में भी ग्रुप के सदस्य ऑनलाइन लगातार मिलते रहे। उन लोगों ने मिलकर 2 ऑनलाइन शॉर्ट फिल्में भी बनाई।
‘बालकनी’ और ‘ऐ ज़िंदगी’। अपने-अपने घरों में फिल्म को शूट करके, एडिट करके बाद में सभी दृश्यों को जोड़ा गया और फिल्म तैयार हुई। कोरोना काल में ऑनलाइन फिल्म बनाने का उन लोगों का अनुभव बहुत रिलैक्सिंग था।
गीतिका कहती हैं, ‘मैंने व्यक्तिगत रूप से महसूस किया कि थिएटर ने मुझे अंदर से और अधिक मज़बूत बनाया है। इसने मुझे अपनी बात को बेहतर तरीक़े से कहना सिखाया। मेरे विचारों को और भी स्पष्ट किया। मैंने खुद पर अप्लाई कर जो सीखा, उसे ही दूसरे लोगों को सिखाया। एक कोच और आंत्रप्रेनयोर के तौर पर मैं थिएटर की ही मदद से दूसरों को डिप्रेशन से मुक्त करती हूं।
गीतिका गोयल उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर बिजनौर से हैं। उनके मां-पापा दोनों लेखक हैं। उनकी 200 से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इसलिए उनका बचपन साहित्य की छाँव में बीता। उन दोनों ने उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया। गीतिका बताती हैं, ‘मां ने हमें मर्यादा तो सिखाई, पर हम दोनों बहनों को उन्होंने उन सामाजिक रीति-रिवाजों से ऊपर रखा, जो एक लड़की पर बंधन लगाने की चेष्टा करते हैं। नानाजी पद्मश्री काका हाथरसी जी ने हमेशा मेरा उत्साहवर्धन किया। वे हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते।’
गीतिका स्कूल में नाटकों में भाग लेतीं और अभिनय करतीं। स्टेज पर होने वाले कवि-सम्मेलनों में वे श्री कुंवर बेचैन बनकर उनके गीत गातीं। वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में स्कूल से लेकर कॉलेज तक उन्होंने खूब हिस्सा भी लिया और इनाम भी जीते। बचपन से उन्हें थिएटर करने का मन था। क़रीब 15 साल पहले जब थिएटर कलाकारों को उन्हें क़रीब से जानने का अवसर मिला, तब उन्होंने इसे करने का ठाना। उसी समय अपनी तरह सोचने वाली महिलाओं और मांओं को जोड़कर थिएटर करने का संकल्प लिया। लेखन का जीन परिवार से ही मिला। गीतिका बचपन से कविताएं लिख रही हैं। 22 साल पहले बच्चों के लिए लिखना शुरू किया। वे बताती हैं, मेरी बच्चों के लिए 5 किताबें और कविताओं की 2 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।
गीतिका को परिवार का भी भरपूर सहयोग मिला। वे कहती हैं, ‘जिस काम में मन लगता है, वह सिर्फ काम नहीं प्रेरणा बनकर रह जाता है। जब परिवार का भरपूर सहयोग मिलता है और आपकी टीम लगन से काम करती है, तो काम के दौरान कई सारे मज़ेदार अनुभव भी मिलते हैं।
मैं इसका श्रेय अपने माता-पिता, जीवनसाथी अंकुर और बच्चों को देना चाहती हूं। ये सभी मेरे दोस्त बनकर हर कदम पर मुझे प्रोत्साहित करते हैं और मेरे साथ डिस्कसन में भी हिस्सा लेते हैं।’
थिएटर पर आधारित बहुत सारी ऐक्टिविटीज़ होती हैं। इसके सहारे बहुत सारे ऐसे अवसर हाथ लगते हैं, जिससे व्यक्ति अपने मन के उस कोने तक पहुंच पाता है, जो अनछुआ रह गया था। कुछ ऐक्टिविटीज़ में व्यक्ति वे सभी बात अपने साथी कलाकारों से साझा कर पाते हैं, जिन्हें चाहते हुए भी कभी किसी से शेयर नहीं कर पाए। इससे व्यक्ति को एक हल्कापन महसूस होता है। साथी कलाकारों के अनुभवों से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है।