जिंदगी ने सिखाया बदलाव को स्वीकार करना- ये है मिर्गी पर मानसी की जीत की कहानी

दिमाग की सभी मांसपेशियों का जकड़ जाना और मेरा खुद पर से नियंत्रण चला जाना, यह सब इतना अचानक और भयावह था कि मैं समझ ही नहीं पाती थी।
Mansi ne kiya epilapsy ka himmat se samna
एपिलेप्सी पर ये है मानसी की जीत की कहानी। चित्र : मानसी
Updated On: 8 Nov 2023, 12:01 pm IST
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हैलो, मेरा नाम मानसी है, उम्र 31 वर्ष है और मैं दिल्ली में रहती हूं। मैं एक ऐसी लड़की हूं जिसने मिर्गी पर विजय पाई। लगातार आने वाले मिर्गी के दौरे और बुरे सपनों के दौर से गुजरने के सालों के बाद, मैंने आप सभी के साथ अपने आज़माइश के पलों को साझा करने का फैसला किया है।

मैं एक खुशनुमा और चुलबुली लड़की थी। जिसे अपने परिवार से भरपूर प्यार और सहयोग मिला था। भाई-बहनों में सबसे बड़ी होने के कारण मुझे उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास बचपन से ही था। 

उस वक़्त मेरी उम्र लगभग 13 साल रही होगी । जब हम सब बच्चे मिलकर कार्टून शो देख रहे थे। उस समय हम सब को बहुत मज़ा आ रहा था। मुझे याद है, जब मैं कार्टून देखकर हस्स रही थी की अचानक मुझे लगा की टेलीविज़न मुझे अपनी ओर खींच रहा है। जैसे मैं असहाय सी उसकी ओर खींचती जा रही हूं। 

मिर्गी के बाद का शुरुआती झटका

अगली बात जो मुझे याद है, जब मैंने अपनी आंखें खोली तो, मैं अपने परिवार वालों और एक पड़ोसन से घिरी बिस्तर पर लेटी थी, वह पड़ोसन नर्स थी। मेरी बहन ने मुझे बताया कि मैं टीवी देखते हुए बेहोश हो गई थी और मेरे मुँह से झाग निकल रहा था।

मानसी ने धीरे-धीरे एक बिन बुलाए मेहमान से दोस्ती कर ली। चित्र सौजन्य: मानसी

उसी नर्स ने पता लगाया था कि मुझे मिर्गी का दौरा आया था। पूरे परिवार के लिए यह एक बड़ा झटका था, क्योंकि हमने पहले कभी ऐसा कुछ अनुभव नहीं किया था। इस अनुभव ने हमारे लिए शोध करने का द्वार खोल दिया। हमने सीखा कि मिर्गी का मतलब मस्तिष्क में एक विद्युत असंतुलन है। जहां न्यूरॉन्स का एक समूह एक ही समय में गोलीबारी करना शुरू कर देता है और यह आपके शरीर को भ्रमित करता है कि किस मांसपेशी का उपयोग करना है और किसका नही।

दिमाग में सभी मांसपेशियों का जकड़ जाना और मेरा अपना आपा खो देना, यह सब इतना अचानक और इतना भयावह होता था कि ब्यान करना भी मुश्किल सा लगता है। जब हमला खत्म हो जाता, तो शरीर खाली हो जाता और मैं ऊर्जा से वंचित महसूस करती थी।

रोग कि पुष्टि के बाद की ज़िन्दगी

जब इस बात की पुष्टि हुई कि मुझे मिर्गी है, तब मुझे बहुत से डॉक्टरों को बदलना पड़ा, जब तक के मैं सही डॉक्टर तक नहीं पहुंची, उनके द्वारा निर्धारित अधिकांश दवाओं ने मेरे ऊपर कोई असर नहीं किया।

दवाओं के गलत होने से मुझपर कई गंभीर दुष्प्रभाव हुए, कौन जानता था कि सही दवा ढूंढना वास्तव में एक अड़चन होगी। एक घटना, जो मुझे याद है, मैं 9वीं कक्षा में थी और क्षणिक पागलपन के दौरों से मुकाबला कर रही थी 

मुझे एहसास हुआ कि मैं दूसरे बच्चों की तरह कुछ याद रखने में उतनी सक्षम नहीं थी और मुझे इस बारे में बुरा लगा कि यह केवल मेरे साथ हो रहा था। इस घटना ने मुझे अपने चिकित्सक को एक बार फिर से बदलने के लिए मजबूर किया। लेकिन इस बार, इसने मेरे पक्ष में काम किया।

12वीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते मैं बेहतर महसूस करने लगी थी। मैंने अब डॉक्टर के पास जाना भी छोड़ दिया था। मैंने खुद से ही ये विश्वास कर लिया की में अब पूरी तरह से ठीक हो गई हूं। बस यही सोच कर मैंने अपनी दवा लेना भी बंद कर दिया था। हालांकि कहीं न कहीं मैं यह अच्छे से जानती थी की मेरा यह निर्णय ठीक नहीं है और यह सब मेरी कंडीशन और भी ज्यादा खराब कर देगा। 

मेरी स्वीकृति

यह इंजीनियरिंग कॉलेज का दूसरा साल था। जब एक दिन, नींद में अचानक मुझे मिर्गी का दौरा पड़ा। यह पहली बार था जब मैं नींद में इस दौरे का शिकार हुई और इस घटना ने मुझे सच में हैरान कर दिया था।

ऐसा तब हुआ था तब मैं अपना एंट्रेंस एग्जाम दे रही थी और इस घटना तुरंत बाद मुझे अपनी बीमारी का एहसास हुआ। मैं अपना एग्ज़ाम लिख रही थी कि अचानक मुझे अपने करीब कुछ गिरने की आवाज़ सुनाई दी। वह एक लड़की थी जो फर्श पर गिर गई थी और गिरने की वजह से उस के सर से खून निकल रहा था। उसके मुंह से झाग निकल रही थी और वो बुरी तरह कांप रही थी।

जबकि मैं यह अच्छे से समझ सकती थी की वो लड़की कैसा महसूस कर रही है और उसे हुआ क्या है। फिर भी मुझमें इतनी हिम्मत नही थी की मैं सबको कह सकूं की घबराने की ज़रूरत नही है। यह कोई बड़ी समस्या नहीं है इसलिए इसे शांति से हैंडल करें। जब उसे मेडिकल केयर में ले गए और हम लोगों का एग्जाम भी खत्म हो गया, मैं वापिस अपने कमरे में आई और मैंने सोचा कि अपने इस अनुभव के बारे में कुछ लिखूं।  

मुझे आश्चर्य हुआ ! क्योंकि मैंने अपनी भावनाओं से पूरी डायरी भर दी थी। खासकर अपने माता पिता पर आदतन आरोप लगाना कि वो मुझे लेकर हमेशा इतने ओवर प्रोटेक्टिव क्यों रहे। माता पिता के साथ मेरा खुद पर आरोप लगाना भी जारी था, मैंने खुद को दोष लगाया, की मैं दूसरे बच्चों कि तरह और अपने दोस्तों कि तरह नार्मल लाइफ क्यों नहीं जी सकती ?   

इस घटना ने मुझे आईना दिखा दिया था। अब में समझ गई थी की मेरे करीबियों को कैसा महसूस होता होगा जब वो मुझे इस हालत में देखते होंगे। बस उसी पल से मेरा चीज़ों को देखने का नज़रिया पूरी तरह बदल गया। अपनी पुरानी ज़िंदगी से ही मुझे एक नई सोच एक नई ऊर्जा मिल गई।   

अब समय था मिर्गी के साथ आगे बढ़ने का

अब भी और बल्कि आज भी मैं दवाएं ले रही हूं जिसके साथ निर्धारित नियमित जीवनशैली का अनुसरण कर रही हूं। पर मैं खुश हूं, संतुष्ट हूं और मैंने खुद को अपनाना सीख लिया है ठीक वैसी जैसी में हूं। मैं अब अपनी बीमारी से लड़ नही रही बल्कि देखा जाए तो वह कण्ट्रोल जो उस बीमारी ने मुझपर साधा था, उसी कण्ट्रोल को अब मैंने अपने हाथों में ले लिया है।    

मिर्गी के साथ आगे बढ़ते हुए, मानसी ने इसे एक विजेता की तरह स्वीकार किया! चित्र सौजन्य: मानसी

भीड़भाड़ और ब्राइट रोशनी को अवॉयड करती हूं, अपनी दवाएं समय पर लेती हूं। जब भी मौका मिलता है जहां तक संभव हो मिर्गी पर लोगों को जागरूक करती हूं। बस इसी प्रकार मैंने जीना सीख लिया है। जानती हूं की पूरी तरह से इसे ठीक नही कर पाउंगी, यह मेरे साथ रहेगा मेरी ज़िंदगी के पूरे सफर में मेरा साथ निभाएगा, पर अब मैं शांत हूं। 

मिर्गी हो या कोई और बिमारी, यदि हम शांति के साथ, वह जैसा है उसे अपना लेते हैं। तभी हम उसे बेहतर तरीके से हैंडल कर सकतें हैं। उन्मीद करती हूं, आप सभी तक अपने तजुर्बों के ज़रिए बेहतर सन्देश को पंहुचा पाई हूं। उन सभी तक जो ठीक वैसा महसूस करते हैं, उनसे कहना चाहती हूं यह दुनिया का अंत नहीं है। यह शुरुआत है आपके नए तजुर्बों की, शरुआत हैं आपके आम से खास हो जाने की। 

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ये बेमिसाल और प्रेरक कहानियां हमारी रीडर्स की हैं, जिन्‍हें वे स्‍वयं अपने जैसी अन्‍य रीडर्स के साथ शेयर कर रहीं हैं। अपनी हिम्‍मत के साथ यूं  ही आगे बढ़तीं रहें  और दूसरों के लिए मिसाल बनें। शुभकामनाएं! ...और पढ़ें

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