सेल्फ एग्जामिनेशन ने की ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने में मेरी मदद, ये है कैंसर से मेरी लड़ाई

महज 34 वर्ष की उम्र में स्वाति ने की ब्रेस्ट कैंसर से जंग। जानिए उनके हौसले और जीत की कहानी।
ये है ब्रेस्‍ट कैंसर से स्‍वाति की लड़ाई की कहानी।
ये है ब्रेस्‍ट कैंसर से स्‍वाति की लड़ाई की कहानी।
टीम हेल्‍थ शॉट्स Published: 28 Nov 2020, 20:16 pm IST
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मेरा नाम स्वाति सुरम्या है और मैं बैंगलोर की रहने वाली हूं। पेशे से मैं कंटेंट राइटर हूं और एक तीन साल के बच्चे की मां भी हूं। मैं 34 साल की थी जब मुझे पता चला कि मैं ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित हूं। ये बात मेरे लिए किसी सदमे से कम नहीं थी क्योंकि मैं एक्टिव थी, फिट थी और मेरी उम्र भी बहुत ज्‍यादा नहीं थी।

इस तरह मेरा ब्रेस्ट कैंसर डायग्नोस हुआ

मैं अपने पड़ोसियों से ऐसे ही बातचीत कर रही थी जब मुझे पता चला उनकी सास को ब्रेस्ट कैंसर हो गया है। ये समस्या तो किसी को भी हो सकती थी। इसलिए मैंने तय किया कि मैं भी अपने ब्रेस्ट का निरीक्षण करूंगी।

जब मैंने अपने ब्रेस्ट का निरीक्षण किया तो पाया कि मेरे बाएं ब्रेस्ट में एक गांठ है। मैंने तुरन्त ही अपनी डॉक्टर से बात की। डॉक्टर ने बताया कि ये गांठ महज ट्यूमर है और सर्जरी से निकाल सकते हैं। सर्जरी के बाद बायोप्सी हुई, जिसमें पता चला कि मुझे कैंसर है।

मेरा परिवार मेरी ताकत बना

उस समय मेरे माता पिता हमेशा मेरे सपोर्ट के लिए मौजूद होते थे। सर्जरी के वक्त मेरी बेटी की देखभाल के लिए वो मेरे साथ ही रहने लगे। हम सभी बहुत हैरान हुए थे लेकिन मैं खुद को यही समझाती थी कि मुझे मजबूत बनना होगा। मैं कमजोर पड़ी तो पूरे परिवार का क्या होगा।

मेरे माता-पिता ने तय किया कि वे मेरा पूरा ख्याल रखेंगे। मुझे याद है मेरी बेटी को स्कूल से लेने जाना, मेरे लिए अलग खाना बनाना क्योंकि मेरी कीमोथेरेपी चल रही थी- मेरे पेरेंट्स ने ही सारा ख्याल रखा। कीमोथेरेपी के दौरान लोगों का 10-12 किलो वजन कम हो जाता है, लेकिन मेरा इतने अच्छे से ख्याल रखा गया कि मेरा सिर्फ 2 किलो वजन कम हुआ।

मेरा परिवार ही मेरी ताकत है। चित्र: स्‍वाति

मेरे पति हमेशा मेरे साथ डॉक्टर के पास जाते थे। कीमो के दौरान होने वाले मूड स्विंग भी वो झेलते थे और कभी शिकायत नहीं करते थे। जीवन में मुझे जो सपोर्ट चाहिए था, उनसे मिला।
मेरा ट्रीटमेंट और उसके परिणाम

जरा सी भी देर होती, तो बहुत देर हो जाती। मेरी दूसरी सर्जरी कैंसर के डॉक्टर यानी  ऑन्कोलॉजिस्ट के अंडर हुई। वह सर्जरी दर्दनाक थी क्योंकि मेरा 40 प्रतिशत ब्रेस्ट निकाल दिया गया था और उसे दोबारा बनाया जा रहा था। लगभग 25 दिन तक मेरे पूरे शरीर में ट्यूब्स पड़े थे। यही नहीं, मुझे इन्फेक्शन हो गया था जिससे चीजें बदतर हो गईं और मेरी बेटी मेरे लिए हमेशा रोती रहती थी।

मेरी बीमारी का मेरी बेटी पर भी प्रभाव पड़ा

उस वक्त मेरी बच्ची तीन साल की थी और उसके लिए कुछ भी समझना बहुत मुश्किल था। वह स्कूल जाती थी तो वापस आने की जिद करने लगती थी, हर वक्त रोती रहती थी और हमें बहुत समस्या होती थी।

नन्‍हीं बेटी पर भी पड़ा मेरी बीमारी का असर। चित्र: स्‍वा‍ति सुरम्‍या
नन्‍हीं बेटी पर भी पड़ा मेरी बीमारी का असर। चित्र: स्‍वा‍ति सुरम्‍या

मेरे मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ा था। दर्द बर्दाश्त से बाहर होने लगा था और मुझसे और सहा नहीं जा रहा था। मैं हर रात भगवान से ये खत्म होने की मांग करती थी। लेकिन सुबह अपनी बेटी का चेहरा देख मुझे जीने और लड़ने का साहस मिलता था।

मेरे इलाज के बाद…

इस साल मार्च में मेरा इलाज पूरा हुआ है। मैंने अपने भाई के साथ कुछ ट्रिप्स US की प्लान की थीं लेकिन उसके बाद ही कोविड-19 हो गया। लेकिन मैंने इस दौरान एक अच्छा लाइफ स्टाइल बना रखा है। मैं बिल्कुल चीनी नहीं खाती हूं और बाहर का खाना एकदम बन्द कर रखा है। मैं सिर्फ घर का बना खाना खाती हूं।

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मैंने क्या सीखा?

जीवन में छोटी छोटी खुशियों का आंनद लेना चाहिए

सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैंने सीखी वह यही थी कि जो होता है किसी कारण से ही होता है। मुझे कैंसर हुआ क्योंकि भगवान मुझे ये समझाना चाह रहे थे कि मुझे अपनी जिंदगी जीना शुरू कर देना है। अब मैं अपना और अपनों का थोड़ा ज्यादा ख्याल रखती हूं।

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