भारतीय समाज में जब पूर्वाग्रहों (Bias) की बात आती है, तो उनमें जेंडर (Gender) और जाति (Cast) दो बड़े पूर्वाग्रह हैं। जिनके कारण समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग सदियों तक हाशिये पर रहा। दलित (Dalit) जाति की औरतों के लिए शिक्षा और तरक्की के दरवाजे लंबे समय तक बंद ही रहे। पर यह 2022 का समय है, जहां जाति और जेंडर जैसे तमाम पूर्वाग्रह धराशायी हो चुके हैं। लड़कियों ने हर क्षेत्र में आगे बढ़कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। राजस्थान (Rajsthan) की ऐसी ही एक आरपीएस ऑफिसर हैं, प्रेम धनदेव (RPS Prem Dhande) । सोशल मीडिया से लेकर आम जन तक, उनके प्रशंसकों की संख्या लाखों में हैं। आइए जानते हैं इंजीनियरिंग, एमबीए डिग्री वाली इस आरपीएस ऑफिसर प्रेम धनदेव के बारे में।
प्रेम धनदेव (Prem dhande) के व्यक्तित्व में जो आत्मविश्वास नजर आता है, उसका आधार शिक्षा ही है। सात भाई-बहनों के परिवार से होने के बावजूद उनके माता-पिता ने बचपन से ही शिक्षा को खास अहमियत दी। यही वजह है कि वे जब मात्र 6 साल की थीं, तभी उन्हें हॉस्टल भेज दिया गया था। पाली जिले के विद्यावाड़ी स्कूल से ही उन्होंने दसवीं तक शिक्षा हासिल की। इसके बाद इन्होंने जोधपुर से इंजीनियरिंग की। मगर उनकी पढ़ाई का सिलसिला यहीं नहीं रुका। उन्होंने मार्केटिंग और एचआर में एमबीए भी की।
वे कहती हैं, “अपने सभी भाई-बहनों में अगर तुलना करूं तो मुझे पढ़ाई में सबसे कम दिलचस्पी थी। उन दिनों सबसे आसान समझा जाता था इंजीनियरिंग में दाखिला होना। तो मैंने तय किया कि इंजीनियरिंग ही की जाए। हालांकि इंजीनियरिंग करवाने का फैसला पापा का था, पर उसमें आईटी स्ट्रीम को चुनना मेरा अपना निर्णय रहा।”
“हम जब कॉलेज में होते हैं, तो बहुत बार कुछ ऐसा भी कर लेते हैं, जो ग्रुप के बाकी बच्चे कर रहे होते हैं। उन्हीं के साथ मैंने भी एमबीए करने का फैसला किया। एमबीए करने के बाद कॉलेज प्लेसमेंट से ही मुझे येस बैंक और रिलायंस फ्रेश दोनों की तरफ से ऑफर मिला। जिसमें मैंने रिलायंस में जॉब करना स्वीकार किया। उसके बाद मैक्स लाइफ इंश्योरेंस में नौकरी की और इसी के बाद मेरी शादी भी हो गई। उस समय मेरे पति जयपुर में थे, तो मैं भी शादी के बाद जयपुर चली गई।”
जयपुर जाकर प्रेम धनदेव ने एक रियल एस्टेट कंपनी ज्वॉइन की। पर कुछ चीजें आपकी डेस्टिनी तय करती है। वे कहती हैं, “उस समय मेरे दीदी-जीजाजी का एक्सीडेंट हो गया। और उस एक्सीडेंट में हमने जीजाजी को खो दिया। हालांकि बहन को भी काफी गंभीर चोंटें आईं थीं। पर जीजाजी चाहते थे कि दीदी प्रशासनिक सेवाओं में जाएं। और उनकी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए दीदी ने राजस्थान प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।”
उनके इस निश्चय में प्रेम धनदेव उनके साथ थीं, बड़ी बहन को कोचिंग ले जाना, पढ़ने में उनकी मदद करने की जिम्मेदारी प्रेम ने अपने ऊपर ली। बड़ी बहन का सहयोग करते हुए उन्होंने भी आरएएस का फॉर्म भरा, परीक्षा दी और क्वालीफाई हो गईं। इससे पहले कि इंटरव्यू की डेट्स आतीं, जेसलमेर में जिला परिषद के चुनाव हुए। इन दोनों बहनों ने चुनाव लड़ने का फैसला किया और दोनों जीत गईं।
जब इंटरव्यू कॉल आया तो इनकी बड़ी बहन ने राजनीति में ही रहने का फैसला किया, जबकि प्रेम धनदेव ने जिला परिषद से इस्तीफा देकर पुलिस सर्विस में आने का फैसला किया।
राजस्थान पुलिस सेवा के लिए चयन होना प्रेम धनदेव के लिए किसी सपने के पूरा होने से कम नहीं था। पर इस सपने को पूरा होने में इतना समय लग गया कि वे तब तक एक बेटे की मां बन चुकीं थीं। वर्ष 2013 में उन्होंने परीक्षा पास की थी जबकि इंटरव्यू कॉल 2015 में आया। तब वे एक सोलह महीने के बेटे की मां थीं। हालांकि उनके लिए यह समय काफी चुनौतीपूर्ण था, पर उन्हें वर्क लाइफ बैलेंस करते हुए ड्यूटी ज्वॉइन करने का निर्णय लिया।
इसे संयोग कहें या दुर्योग, कि उनकी ज्वॉइनिंग के साथ ही राजस्थान में डबल मर्डर की एक सनसनीखेज घटना घटी और वे तुरंत मौके पर पहुंचीं। इसके मामले में उन्हें दिन-रात अपनी ड्यूटी के प्रति समर्पित रहना था। जबकि घर पर एक छोटा बच्चा उनका इंतजार कर रहा था।
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कस्टमाइज़ करेंवे कहती हैं, “हम बाहर निकल कर तभी काम कर सकते हैं, जब हमें घर पर सहयोग करने वाला कोई हो। फिर चाहें वे हमारे परिवार के सदस्य हों या फिर हमारी घरेलू सहायिकाएं। सौभाग्य से मुझे सभी का बहुत सहयोग मिला। मैं अगर अपनी ड्यूटी को पूरा समय दे पाती हूं, तो इसका सहयोग मेरे परिवार और मेरी घरेलू सहायिका को ही जाता है।”
मई 2020 में एक साथ 55 लोग कोरोना पॉजिटिव हो गए थे। जब उन्हें वहां से निकाला गया, तब मैं वहीं थी। उस समय एक तरह का डर आ गया था कि मैं तो संक्रमित हो भी सकती हैं, पर कहीं मेरा छह साल का बेटा इससे संक्रमित न हो जाएं।
हुआ भी यही, मैं और मेरा बेटा दोनों कोविड पॉजिटिव हो गए। मेरे पति और मेरी हाउस हेल्प भी पॉजिटिव हो गए। उस दौरान मेरे पति ने बहुत सपोर्ट किया। पर उसके बाद वह डर भी जाता रहा। जब आप समाज के लिए काम करने निकलते हैं, तो आपको ऐसी चुनौतियों के लिए तैयार होना पड़ता है।
औरतें जब घर से निकलकर सार्वजनिक जीवन में आती हैं, तो वहां भी वे उसे कुछ बेहतर तरीके से करने की कोशिश करती हैं। यही वजह है कि शिक्षा, सेवा, मेडिकल और कॉरपोरेट में भी अब स्त्रियों को विशेष तवज्जो दी जा रही है। कोविड-19 महामारी के दौर में जब पहला लॉकडाउन लगा, तब राजस्थान कोरोनावायरस का हॉटस्पॉट बन चुका था। इसे कंट्रोल करने के लिए कई तरह की पाबंदियां लगाईं गईं।
पर यहां भी प्रेम धनदेव अपने सामाजिक दायित्व को नहीं भूलीं। एक मां होने के नाते वे जानतीं थीं कि लॉकडाउन की ये पाबंदियां उन महिलाओं के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं, जो नव प्रसूता हैं या गर्भवती हैं। उनकी सहायता के लिए प्रेम धनदेव ने हैलो मॉमी ग्रुप बनाया। वहीं ग्रामीण महिलाओं तक मदद पहुंचाने के लिए एक और ग्रुप बनाया।
प्रेम बताती हैं, “मंजू मैम के निर्देशन में सौम्या मैम के साथ हमने आवाज़ ग्रुप बनाया। उसमें आशा सयोगिनियों को शामिल कर गांवों में गर्भवती स्त्रियों तक सहयोग पहुंचाया। कोविड के समय में पुलिस का मल्टी लेवल वर्किंग थीं। हम सब को इस पर गर्व है।
हालांकि अब तो वहां सिर्फ गुड मॉर्निंग और गुड नाइट के मैसेज ही आते हैं। पर कोरोनावायरस महामारी के समय ग्रुप की महिलाएं एक-दूसरे को भावनात्मक सपोर्ट भी दिया करती थीं। औरतें एक-दूसरे की मदद में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं, उन्हें कहना नहीं पड़ता। बस जरूरत होती है उन्हें एक-दूसरे से जोड़ने की।”
मैं जब इस वर्दी को पहनती हूं तो मेंटली, फिजिकली आप एक अलग तरह का उत्साह महसूस करते हैं। न आप थकते हैं न आपको तनाव होता है। आप वहां सिर्फ समाज के लिए होते हैं।
एक औरत होने के नाते मुझे भी अपनी स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं।
पीरियड्स के दिनों में हमें भी एक-दूसरे के सहयोग की जरूरत होती है। पर वहीं जब कोई महिला अधिकारी सामने होती है, तो एक पीड़ित स्त्री ज्यादा सहज होकर बात कर पाती है। पुरुष अधिकारी से बात करते हुए जो हिचक सामान्य औरतों में होती है, वह किसी लेडी ऑफिसर से बात करते हुए नहीं होती।
प्रेगनेंसी और पीरियड्स वे स्वास्थ्य स्थितियां हैं, जब हमें लगता है कि हां, हम औरतें हैं। और हमारी कुछ मुश्किलें भी हैं। वरना वर्दी पहन कर हम सब एक ही जैसे होते हैं।
“मैं अगर अपनी बात करूं तो मैं किसी भी पक्ष पर कभी भेदभाव नहीं कर पाती। चाहें स्त्री हों या पुरुष, वे किसी भी वर्ग से हों, मैं निष्पक्ष होकर उनके लिए काम करती हूं। वर्दी पहनने के बाद यही आपकी जिम्मेदारी होती है, कि आप सभी के लिए सदैव तत्पर रहें।”
“हमारी बनावट ही ऐसी है कि हम पुरुषों से ज्यादा भावुक और कनैक्ट होते हैं। हालांकि अपवाद हर जगह हैं। कुछ महिलाएं ज्यादा प्रैक्टिकल होती हैं और पुरुष ज्यादा भावुक होते हैं।
इसलिए मुझे लगता है कि अब बहुत सारे पूर्वाग्रह टूट रहे हैं। यह हर व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह जॉब में आने के बाद अपनी जिम्मेदारी को कैसे निभाए। हम सभी को अपने आप को साबित करना होता है, चाहें वह पुरुष हों या स्त्रियां। नौकरी और प्रोन्नति में आरक्षण व्यवस्था होने के कारण अब औरतों का हक उतनी आसानी से नहीं मारा जा सकता।”
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