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मैंने चाइल्ड फ्री रहने का फैसला किया और लोगों ने मुझे ट्रोल किया, पढ़िए यूपी की एक असाधारण लड़की की कहानी

चाइल्ड फ्री या एंटीनेटलिज्म फिलॉसफी यूं ही रातों रात नहीं जन्म गई। जो महिलाएं इसका समर्थन कर रही हैं, वे जानती हैं कि समाज में बहुत कुछ ऐसा है जो बच्चों के अनुकूल नहीं है। पत्रकार और सोशल वर्कर शशि कुशवाहा ने जब बच्चे पैदा न करने का फैसला किया तो उन्हें सोशल मीडिया पर ही ट्रोलिंग झेलनी पड़ी।
Updated On: 23 Oct 2024, 06:08 pm IST
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shashi kushwaha ko family hi nahi social media se bhi virodh ka samna karna pada
चाइल्ड फ्री रहने के मुद्दे पर शशि कुशवाहा को परिवार ही नहीं सोशल मीडिया पर भी विराेध सहना पड़ा। चित्र : शशि कुशवाहा

पिछले दिनों जब नवरात्रि पर मातृत्व की महान शक्तियों का उत्सव मनाया जा रहा था, मैंने उन महिलाओं को खोजा जो मानती हैं कि स्त्रीत्व केवल मातृत्व तक ही सीमित नहीं है। बल्कि इसका स्पेक्ट्रम और बहुत बढ़ा है। हेल्थ शॉट्स के फीमेल फाइटर कॉलम के लिए मैंने ऐसी ही तीन महिलाओं  से बात की, जिन्होंने अपने खुद के बच्चे पैदा न करने का फैसला किया। तीनों के पास ही अपने इस निर्णय के अपने ठाेस कारण थे। इसी दौरान मुझे शशि कुशवाहा मिलीं। जो न केवल चाइल्ड फ्री अर्थात एंटीनेटलिज्म के बारे में जागरुकता फैला रही हैं, बल्कि स्त्री मुद्दों और अन्य टैबूज के खिलाफ भी पुरजोर आवाज़ उठा रही हैं।

कौन हैं शशि कुशवाहा 

मेरा नाम शशि कुशवाहा है। उम्र 32 साल है। मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के एक गांव में हुआ था। बचपन गांव में ही बीता और शुरुआती शिक्षा गांव के स्कूल से ही हुई। बचपन में पढ़ने-लिखने में तेज थी। इसलिए मेरे पेरेंट्स को मुझसे बहुत उम्मीदें थीं। टीनएज होते ही पापा ने गांव से दूर जिले के पास कुरारा कस्बे में मकान बनवाया और हमें वहीं रहकर आगे की पढ़ाई करने के लिए शिफ्ट कर दिया। कुरारा से ही मैंने अपना ग्रेजुएशन (बीएससी) कंप्लीट किया। इसके बाद सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए कुछ समय कानपुर में रही। फिर वापस घर आ गई।

और बढ़ने लगा शादी का प्रेशर

इसी बीच मेरी शादी के तमाम रिश्ते आने लगे।‌ लेकिन मैं अभी शादी नहीं करना चाहती थी अरेंज मैरिज तो कभी नहीं। मैं पहले आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना चाहती थी। हमारे समाज में उस समय अधिकतर लड़कियों की 20-21 उम्र होते ही शादी कर दी जाती थी, मेरे बचपन की सभी सहेलियों की शादी हो गई। मुझ पर भी शादी करने का प्रेशर था। लेकिन मैं जिद पर अड़ी रही कि अभी शादी नहीं करनी पहले मुझे अपने पैरों खड़ा होना है, अपनी खुद की पहचान बनानी है। पति के पैसों और उनकी पहचान के भरोसे नहीं रहना।

लखनऊ ने बदल दी जिंदगी की राह 

इसी बीच मेरी लाइफ का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट आता है जब मेरा पॉलिटेक्निक की प्रतियोगी परीक्षा का रिजल्ट आया। मैंने परीक्षा क्वालीफाई कर ली और मास कम्युनिकेशन (जर्नलिज्म) कोर्स के लिए मुझे लखनऊ में सरकारी कॉलेज मिल गया। बता दूं हमारे इलाके में तब लोग मास कम्यूनिकेशन के बारे में जानते तक नहीं थे।

Lucknow aakar shashi ke sapno ko nayi disha mili
लखनऊ आकर शशि को न केवल जीवन की नई दिशा मिली , बल्कि जीवन साथी भी मिला। चित्र : शशि कुशवाहा

लखनऊ आते ही मेरी लाइफ बदलने लगी, मैं आजाद महसूस करती थी। मुझमें आत्मविश्वास होने लगा कि मैं अब अपनी लाइफ में वो सब कर सकती हूं जो मैं चाहती हूं। मास कम्युनिकेशन से पीजी कंप्लीट होते ही मेरी जॉब लखनऊ में ही एक बड़े टीवी मीडिया संस्थान में लग गई। इसके बाद मैंने कई मीडिया संस्थानों में काम किया।

इसी बीच लखनऊ में ही मुझे सोशल वर्क में कार्यरत और काफी लोकप्रिय एक नव युवक से प्यार हो जाता है और पांच साल बाद हम शादी के बंधन में बंध जाते हैं। शादी बाद मैंने जॉब करने के साथ-साथ मास्टर ऑफ सोशल वर्क (MSW) से पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री भी हासिल की।

संस्कारी लड़कियां मोबाइल नहीं चलातीं 

टीन एज तक मैं काफी संकोची और तथाकथित संस्कारी लड़की थी। उस समय मेरे पास मोबाइल नहीं था न ही इंटरनेट। मैं लोगों से बहुत कम बात करती थी क्योंकि किसी पर मुझे इतना भरोसा नहीं था कि वे मेरी बातें समझेंगे। मेरे अपने कोई ऐसे दोस्त नहीं थे, जिनसे मैं अपने मन की बातें और मेरी सोच बता सकती थी। मैं अपनी डायरी में अपने मन की बातें लिखा करती थी। और कुछ दिनों बाद उन डायरियों को नष्ट कर देती थी कि कहीं कोई पढ़ न ले और ग़लत समझकर मजाक बनाए।

सोशल मीडिया से मिला आत्मविश्वास

लखनऊ में मास कम्युनिकेशन के सेकंड ईयर में मैंने स्मार्ट फोन खरीदा। फिर फेसबुक में प्रोफाइल बनाकर अपने विचारों को शेयर करने लगी। धीरे-धीरे काफी लोग मेरे विचारों का समर्थन करने लगे और जुड़ने लगे तो मुझे और अधिक आत्मविश्वास होने लगा। मैं इंटरनेट पर खूब सर्फिंग करती थी।

शुरू से मुझे सामाजिक, पारंपरिक रीति-रिवाजों से आपत्ति होती थी। मैं रूढ़िवाद के सख्त खिलाफ थी, मुझे घुटन महसूस होती थी उन कुप्रथाओं और रिवाजों से जिनमें लैंगिक भेदभाव हो, अंधविश्वास हो और जो बस बिना सोचे-समझे बस धर्म ,संस्कृति और परंपरा के नाम पर बस निभाए जा रहे हों। मैं बचपन में कभी-कभी इसे लेकर मम्मी पापा से सवाल करती थी, लेकिन उनके जवाब से संतुष्ट नहीं होती थी।

सोशल टैबूज से मुझे चिड़ है

मुझे हमेशा से लगता था समाज में कुछ तो गड़बड़ है। हालांकि मेरे पापा कई मामलों में काफी जागरूक हैं। वे भूत-प्रेत, आत्मा, टोना-टोटका, तंत्र मंत्र आदि को अंधविश्वास कहते थे और उनके खिलाफ थे। वे लोगों को इन अंधविश्वासों के प्रति जागरूक करते थे। हमें बचपन में अपने अनुभवों और कहानियों के जरिए समझाते थे, बहादुरी के किस्से भी सुनाते थे। इसलिए मैं शुरू से ऐसे अंधविश्वास के खिलाफ रही।

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शशि जमीन पर और सोशल मीडिया पर भी तमाम टैबूज का विरोध करती हैं। चित्र : शशि कुशवाहा

पूजा-पाठ में शुरू से रुचि नहीं थी क्योंकि मुझे कर्मकांड बिल्कुल अतार्किक लगते थे। हालांकि मम्मी थोड़ा-बहुत पूजा-पाठ, व्रत आदि करती हैं। सोशल मीडिया पर धीरे-धीरे मुझे मेरी सोच के लोग मिलने लगे और जुड़ने लगे। मेरा आत्मविश्वास और मजबूत होता गया। अब मैं खुलकर लोगों से कह सकती थी कि मैं नास्तिक हूं। मैं अब पहले से ज्यादा आत्मविश्वास, खुश और फ्री माइंड महसूस करने लगी।

चाइल्ड फ्री रहने के फैसले का पति ने भी विरोध किया 

शादी से पहले मुझे चाइल्ड फ्री और एंटीनेटलिज्म के बारे में कुछ नहीं पता था। लेकिन मैं जनसंख्या वृद्धि से होने वाले नुकसानों के बारे में अवेयर थी और लोगों को भी अवेयर करती थी। तब मैं एक से ज्यादा बच्चा पैदा करने के विरुद्ध थी। इसी दौरान मैंने बच्चों की वजह से शादीशुदा महिलाओं की तमाम समस्याओं के बारे में देखा और सुना।

वहीं आधुनिक दौर में बच्चों के संघर्ष और दुनिया में उत्पन्न तमाम समस्याओं के बारे में गहराई से समझने की कोशिश कर रही थी। इसी बीच मुझे महसूस हुआ अब एक भी बच्चा पैदा करना उचित नहीं हो सकता। इंटरनेट पर इस बारे में रिसर्च करने पता चला इस सोच को चाइल्ड फ्री और एंटीनेटलिज्म कहा जाता है। चाइल्ड फ्री व एंटीनेटलिज्म फिलॉसफी मुझे बेहद महत्वपूर्ण लगी। मैंने तय कर लिया कि मैं कभी बच्चे पैदा नहीं करूंगी।

क्यों मैंने किया चाइल्ड फ्री रहने का फैसला 

अब तक सोशल मीडिया पर मैंने किसी को चाइल्ड फ्री और एंटीनेटलिज्म के बारे में खुलकर बात करते नहीं देखा था। मैं इस बारे में फेसबुक पर खुलकर लिखने लगी, तो मेरे घर वालों को पता चल गया। मेरे कभी एक भी बच्चा पैदा न करने के फैसले की बात सुनकर सब हैरान थे और बेहद नाराज़ भी।

मेरे मम्मी-पापा, पति और ससुराली जनों ने मुझे बहुत समझाने की कोशिश की कि कम से कम एक बच्चा तो कर लो। लेकिन मैं अपनी जिद पर अड़ी रही और अब तक हूं और रहूंगी चाहे कुछ भी हो जाए..। शादी के बाद जागरूक होना अपने अधिकारों के साथ जीना अपराध तो नहीं है न।

मैंने सबको अपने तर्कों से समझाया कि कैसे अब एक भी बच्चा पैदा करना अनैतिक है। मैं अपने बच्चे को इस असुरक्षित दुनिया में नहीं पैदा करना चाहती। हमारा भारत पहले ही भीषण जनसंख्या से होने वाली समस्याओं से जूझ रहा है। जनसंख्या वृद्धि से जंगलों की कटाई करनी पड़ रही है, पृथ्वी जलवायु संकट से गुजर रहा है।

वहीं तमाम तरह की बीमारियां, महामारी, हादसे, गरीबी, हत्या, लूट,रेप, सामाजिक कुरीतियों से पूरी दुनिया जूझ रही है। अनाथालय अनाथ बच्चों से भरे हैं। ऐसे में बच्चे पैदा करना सबसे बड़ा अपराध होगा। हम खुद यहां सुरक्षित नहीं, किसी के भी साथ कभी भी कुछ भी हो सकता है। ऐसे में हम अपना बच्चा पैदा कर उसकी भी ज़िंदगी संघर्षों में मरने के लिए कैसे झोंक सकते हैं अगर हम सच में बच्चों की परवाह करते हैं।

फिर शुरू हुआ ट्रोलिंग का सिलसिला

मैं ये सब तर्क देती गई। वहीं मैं बच्चों की वजह से महिलाओं को होने वाली दिक्कतों के बारे में भी लिखती रही। फिलहाल फैमिली अब मुझ पर बच्चा पैदा करने का प्रेशर नहीं बनाती।

मैं लगातार फेसबुक पर इस मुद्दे पर पोस्ट भी लिखती रही, लोगों ने तरह-तरह के सवाल किए। जैसे – जब बच्चे नहीं करने थे तो शादी क्यों की? किसी ने कहा तुम्हारे मां-बाप भी तुम्हारे जैसा सोचते तो तुम न होती। किसी ने कहा तुम मर जाओ आदि ऐसे तमाम बचकाने कुतर्क और सवाल सुनने को मिले।

सभी सवालों के जवाब अब तक पोस्ट के माध्यम से दे चुकी हूं। अपने यूट्यूब चैनल पर भी इस इस मुद्दे पर कुछ वीडियोज बनाए। मैंने फेसबुक पर नाजन्म क्रांति/Antinatalism नाम से एक ग्रुप भी क्रिएट किया।

रूढ़िवादी लोगों को बर्दाश्त नहीं होता कि कोई लड़की जीवनभर चाइल्ड फ्री रहने की बात कैसे कर सकती है। सोशल मीडिया पर रूढ़िवादी लोगों ने मेरी बहुत बुरी तरह ट्रोलिंग की। इस हद तक कि कोई अन्य लड़की होती तो शायद हार मान ली होती, डिप्रेशन में चली गई होती। लेकिन मैं अब तक डटी हूं।

हालांकि बहुत से लोग मुझसे बहुत प्रभावित भी हुए। तमाम लड़कियों और महिलाओं ने मेरा समर्थन किया। प्रभावित होकर कई लड़कियों ने भी चाइल्ड फ्री रहने का फैसला लिया है। इस मुद्दे पर एक किताब लिखने का मेरा प्लान है।

हां मैं फेमिनिस्ट हूं और कई मुद्दों पर बात करती हूं 

संविधान ने 74 साल पहले कह दिया था स्त्री और पुरुष को समान अधिकार मिलने चाहिए, लेकिन पितृसत्तात्मक समाज आज तक इसे स्वीकार नहीं कर पाया, न ही समानता किसे कहते हैं और समानता कैसे आती है ये समझ पाया। जन्म से लेकर मृत्यु तक स्त्रियों को कहीं न कहीं जेंडर के आधार पर भेदभाव का सामना करना ही पड़ रहा है।

फेमिनिज्म का उद्देश्य पितृसत्तात्मक व्यवस्था द्वारा स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना है। कुछ लोग फेमिनिज्म का मतलब मातृसत्ता लाना समझते हैं लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। पितृसत्ता गलत है तो मातृसत्ता भी सही नहीं हो सकती। फेमिनिज्म समता और समानता की बात करता है।

सोशल मीडिया पर वीगनिज्म पर एक्टिविज्म करती हूं, लखनऊ में अन्य वीगन एक्टिविस्ट के साथ मैंने ऑफलाइन एक्टिविज्म भी किया। लोगों से हमारी अपील है जानवरों के प्रति संवेदनशील बनें उन्हें अपने लालच व स्वार्थ के लिए कैद कर मत रखें। आजादी पर सबका अधिकार होना चाहिए।

फेमिनिस्ट, एंटीनेटलिस्ट, वीगन, एथीस्ट होने के साथ ही मैं जातिवाद, रूढ़िवाद, रंगभेद, बॉडी शेमिंग जैसी बुराइयों के खिलाफ भी आवाज उठाती हूं। मैं ऐसा समाज देखना चाहती हूं जो शोषण मुक्त हो। हर इंसान, हर पशु-पक्षी को अपना जीवन अपने तरीके से जीने की आजादी हो बस वो किसी और की आजादी न छीने, किसी को नुकसान न पहुंचाए।

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लेखक के बारे में
योगिता यादव
योगिता यादव

कंटेंट हेड, हेल्थ शॉट्स हिंदी। वर्ष 2003 से पत्रकारिता में सक्रिय।

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