सेक्सुअल एब्यूज, ट्रॉमा और आत्महत्या का प्रयास : उन्नति के जीवन का सच
मैं एक अच्छे परिवार में पली बढ़ी हूं जहां मुझे बहुत प्यार मिला है। बचपन बाकी बच्चों की तरह ही बीता- हंसते खेलते, खुशनुमा बचपन। मेरे माता-पिता बहुत प्यार करते थे। इसलिए बचपन में जीवन किसी परी कथा से कम नहीं था। लेकिन मेरी यह परी कथा का अंत मेरे 11 साल की उम्र में ही हो गया जब मैं सेक्सुअल एब्यूज का शिकार हुई। इस हादसे के बाद लगभग दस साल तक मैं इस सदमे से बाहर नहीं निकल पाई थी।
मैं उस वक्त सिर्फ 11 वर्ष की थी इसलिए मुझे यह समझ ही नहीं आया कि मेरे साथ जो हुआ वह कितना भयानक है।
आज भी वह समय याद करके मैं सहम जाती हूं। लगभग नौ साल पहले, घर की एक शादी में मेरे साथ सेक्सुअल एब्यूज हुआ था। मैं होटल के एक कमरे में सोई हुई थी जब मेरे कमरे में वह व्यक्ति घुसा, मेरे साथ सेक्सुअल एब्यूज किया। मेरे लिए कुछ भी कर पाना नामुमकिन था। मुझे अच्छे से याद है कितना अंधेरा था कमरे में, मुझे अंत तक एहसास नहीं हुआ था कि मेरे अलावा भी उस कमरे में कोई है।
जब उस व्यक्ति ने मेरे साथ जबरदस्ती की, न मैं खुद को छुड़ा कर भाग सकी न उसे रोक पाई। उस दर्द में तड़पने के सिवाय मेरे बस में कुछ नहीं था।
हालांकि मैंने उसी वक्त अपने माता-पिता को सारी बात बता दी, लेकिन उन्होंने इस बात को दबा दिया। वे नहीं चाहते थे कि यह बात बाहर आए क्योंकि उन्हें डर था इससे अंत में उंगलियां मुझ पर ही उठेंगी। लेकिन मेरे अंदर यह सदमा हमेशा के लिए बैठ गया।
बचपन में हुए यौन शोषण के कारण उन्नति सोनी लंबे समय तक पीटीएसडी की शिकार रहीं। चित्र: शटरस्टॉक
मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन वह रात मेरे दिमाग से निकलती नहीं थी। मैं खुद को संभालने के लिए बहुत छोटी थी। मैं हर समय आलस और थकान अनुभव करने लगी। ब्रश करने जैसे छोटे-छोटे काम भी मुझे मेहनत लगने लगे और मैं सब कामों से बचने लगी। मैं न बाहर निकलती थी, न किसी से मिलती जुलती थी। जो काम पहले मुझे खुशी देते थे, मैंने वह तक करने बंद कर दिए।
इसी प्रकार साल गुजरते गए जहां मैंने खुश रहना ही छोड़ दिया था। 2016 में मालूम पड़ा कि मैं डिप्रेशन, एंग्जायटी और PTSD से गुजर रही थी।
पिछले एक दशक में मैंने कई बार आत्महत्या की कोशिश की, जिसका कारण यही था कि मैं जीवन से परेशान होती जा रही थी। आत्महत्या के ये सभी असफल प्रयास एक तरह से मेरी मदद की पुकार थे। मैं निराश, दुखी और अकेली थी और मुझमें अपने डर का सामना करने की हिम्मत नहीं थी। मैं शादियों के नाम तक से डरने लगी थी।
मेरे माता-पिता ने कोई सकारात्मक प्रयास नहीं किया, जो मुझे जीवन के प्रति और उदासीन बनाता रहा। मैं किसी पर भरोसा नहीं करती थी और मेरे पास अपना कहने के लिए कोई नहीं था। बार-बार वह दृश्य मेरी आंखों के सामने आ जाता था और मैं बुरी तरह टूट जाती थी।
लगभग एक महीने पहले मैंने परेशान होकर कुछ नींद की गोलियां लीं, सामान्य डोज से काफी अधिक, और उसकी फोटो अपने दोस्तों को भेज दी। मैं चाहती थी उनमें से कोई मुझे रोक ले। मैं मरना नहीं चाहती थी, मैं सिर्फ अपनाया जाना चाहती थी, अपने दर्द से बाहर निकलना चाहती थी। लेकिन किसी ने भी उस फोटो को देख कर कोई रेस्पॉन्स नहीं किया। मुझे महसूस होने लगा कि मैं उन पर बोझ हूं।
किसी ने मुझे रोकने की कोशिश नहीं की और मैंने उन पिल्स को खा लिया। अगले दिन मेरे माता-पिता ने मुझे खाली स्लीपिंग पिल की शीशी के साथ बेहोश पाया। मुझे तुरन्त अस्पताल ले जाया गया।
मेरे आत्महत्या के प्रयास के बाद मेरे माता-पिता को समझ आया कि मैं वाकई कितनी परेशान थी। मेरी समस्या की गंभीरता समझने के बाद मेरे पेरन्ट्स मुझे रांची में एक मनोचिकित्सक के पास ले गए।
मुझे थेरेपी लेते हुए एक महीना हो चुका है और फिलहाल मैं एन्टी डिप्रेसेंट्स ले रही हूं। हालांकि अभी मेरी थेरेपी को एक ही महीना हुआ है, लेकिन मुझे अभी से ही काफी बेहतर लग रहा है। मुझे पता है कि मुझे पूरी तरह ठीक होने में अभी समय लगेगा। खुद से प्यार करना थोड़ा मुश्किल होगा मगर सबसे जरूरी है पहला कदम, जो मैंने उठा लिया है। मैंने योग और मेडिटेशन भी शुरू किया है और हर दिन डायरी भी लिखती हूं।
मेरी थेरेपिस्ट ने मेरी बहुत सहायता की है। अब भी कभी-कभी आत्मघाती विचार आते हैं, लेकिन मैं समझ चुकी हूं कि जीवन कितना अनमोल है।
अब कभी भी दुखी होती हूं तो अपने माता-पिता और कुछ दोस्तों से बात करती हूं जिससे मुझे एहसास होता है कि मैं भी मायने रखती हूं।
आज मेरे जीवन का एक ही मकसद है- मेरे जैसे लोगों को इंसाफ दिलाना। हमारे समाज में गुनहगार बिना किसी शर्म के खुले घूमते हैं और मेरे जैसे सर्वाइवर आजीवन सदमा झेलते हैं। मैं अपनी कहानी सुनाकर अपने जैसी लड़कियों को प्रेरणा देना चाहती हूं।
मुझे अब किसी से शिकायत नहीं है कि वे मेरे लिए खड़े क्यों नहीं हुए। मैंने यही सीखा है कि आपको कभी भी मदद मांगने में झिझकना नहीं चाहिए और सबसे पहले खुद की मदद करना सीखें। कभी भी इस तरह के सदमे से अकेले लड़ने के बजाय अपनों के साथ लड़ें। जब आपके साथ कोई होता है जिस पर आप भरोसा कर सकें, तो हर लड़ाई आसान हो जाती है। मेरी यही कोशिश है कि मैं दूसरों का सहारा बन सकूं।
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