कोई बीमारी नहीं है ‘मेनोपॉज़ ‘, महिलाओं को सेल्फ केयर और सोशल सर्कल की सलाह दे रहीं हैं नीरजा बिरला

स्त्री देह के अपने संघर्ष हैं। समाज का नजरिया, व्यवहार और रूढ़ियां इन चुनौतियों को और भी ज्यादा बढ़ा देती हैं। इसके कारण पीरियड से लेकर मेनोपॉज तक हर पड़ाव पर उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
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मेनोपॉज़ को पीरियड्स से ज्यादा बड़ा 'टैबू' मानती है नीरजा बिरला। चित्र-इंस्टाग्राम
टीम हेल्‍थ शॉट्स Updated: 7 Nov 2023, 17:12 pm IST
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घर और बाहर के जीवन में अपने कौशल और सूझबूझ से दुनिया के सामने अपना लोहा मनवाने वाली महिलाओं का जीवन भी केक वॉक नहीं होता। चांद से लेकर मंगल ग्रह तक के मिशन में महत्वपूर्ण योगदान करने वाली महिलाओं को निजी स्वास्थ्य मुद्दों पर ही एक अलग तरह के भेदभाव और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पीरियड से लेकर मेनोपॉज तक के बारे में हमारे समाज में कई तरह के टैबूज मौजूद हैं। इन्हीं टैबूज पर बात कर रहीं हैं एजुकेशनिस्ट, मेंटल हेल्थ एडवोकेट और ट्रेवलर नीरजा बिड़ला (Neerja Birla)।

पीरियड्स और मेनोपॉज जैसे मुद्दों पर सामाजिक और खुले तौर पर बात करना अब एक ऐसी जरूरत है, जिसे दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही महिलाओं से संबंधित इन मुद्दों पर सहज हो जाने कि सलाह देते हुए मेंटल हेल्थ एडवोकेट और भारतीय उद्योगपति कुमार मंगलम बिरला की पत्नी नीरजा बिरला कहती हैं, “जब डिनर टेबल पर पूरा परिवार एक साथ बैठे, तो तमाम विषयों के साथ इस मुद्दे पर भी चर्चा आसानी से ही होनी चाहिए।”

महिलाओं से संबंधित इन मुद्दों पर हेल्थशॉटस के साथ एक विशेष बातचीत में 53 वर्षीय नीरजा बिरला बताती हैं, “हमारे घर में पीरियड्स और मेंस्ट्युरेशन पर की जाने वाली बातों में किसी प्रकार का पर्दा नहीं होता। इस तरह का माहौल भारत के सिर्फ एक घर में नहीं बल्कि पूरे देश में होना चाहिए।”

मासिक धर्म पर करना पड़ता था सामाजिक मानदंडों का सामना

वहीं, इस मुद्दे पर नीरजा आगे कहतीं हैं कि. “जब वे बड़ी हो रही थी, तब माहौल ऐसा नहीं था। अधिकांश भारतीय घरों की अधिकांश लड़कियों की तरह, उन्हें भी मासिक धर्म से जुड़े तमाम सामाजिक मानदंडों और मिथकों का सामना करना पड़ा था ।”

नीरजा कहतीं हैं कि “ज्यादातर घरों में कुछ प्रोटोकॉल होते थे जैसे कि पीरियड्स के दौरान मंदिर नहीं जाना या रसोई में नहीं जाना। मेरे साथ भी जब ऐसा ही करने को कहा गया तो, धीरे-धीरे मैंने इन सभी मुद्दों पर तर्क कर बहस करना शुरू कर दिया क्योंकि मैं इससे सहमत नहीं हो रही थी।” अपने साथ होने वाले इसी भेदभाव के बाद नीरजा ने ठान लिया कि “उनके साथ हुए इस अनुचित व्यवहार को वे भविष्य में नहीं दोहराएंगी , और साथ ही लंबे समय से चले आ रहे इस ‘सोशल टैबू’ को तोड़ेंगी।

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नीरजा बिरला ने पीरियड्स के दौरान अपने साथ हुए भेदभाव के बारे में भी बताया। चित्र-इंस्टाग्राम

कोई बीमारी नहीं है मेनोपॉज़

विश्व स्वास्थ्य संगठन मेनोपॉज़ एक महिला के रिप्रोडक्टिव इयर्स के अंत के रूप में वर्णित करता है। मेनोपॉज़ आमतौर पर 45 से 55 वर्ष की उम्र के बीच की महिलाओं में होता है, लेकिन कम उम्र की महिलाएं भी इससे गुजर सकती हैं।

इसमें रात को पसीना, वैजाइनल ड्राइनेस, अनियमित नींद, यूरिन संबंधी समस्याएं, मूड स्विंग, डाई आइज़, सिरदर्द और बहुत अधिक लक्षण दिखाई पड़ते है। लेकिन इतने सारे लक्षण दिखने के बाद भी महिलाओं समस्या बयान नहीं करती और शान्ति से इसे सेहती रहती है।

पीरियड्स से ज्यादा बड़ा टैबू होते हैं मेनोपॉज़

नीरजा बताती हैं कि उनके दो बेटियां और एक बेटा है। वहीं, जब उनकी बेटियां बड़ी हो रहीं थी तो उन्होंने अपनी बेटियों को समाज के इस ‘टैबू’ से लड़ने की प्रेरणा दी और बताया कि पीरियड्स एक आम और साधारण प्रक्रिया है, जिसमें किसी को भी शर्मसार होने की आवश्यकता नहीं है।

इसके साथ ही 53 वर्षीय नीरजा बिरला मानती हैं कि भारतीय समाज में पीरियड्स से बड़ा टैबू मेनोपॉज़ होता है। वे कहती है कि, कोई भी महिला मुझे यह कहती हुई नहीं दिखती की मुझे अब पीरियड्स नहीं आते और उनके साथ इंटिमेट हेल्थ में होने वाली तमाम स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में भी वे ज्यादा बात नहीं करती, जो एक बहुत बड़ी समस्या है।

मेंटल हेल्थ प्रभावित करता है मेनोपॉज़

मेनोपॉज़ को मेंटल हेल्थ से जोड़ते हुए नीरजा बताती हैं कि जब मेनोपॉज़ के कारण हॉर्मोनल बदलाव आते हैं तो वे मानसिक स्वास्थ्य पर सीधे तौर पर प्रभाव डालते है। अगर समय रहते इससे होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते है। इसके कारण अकेलेपन और डिप्रेशन जैसी समस्याएं शुरू हो जाती हैं।

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नीरजा बिरला के अनुसार मेंटल हेल्थ को भी प्रभावित करता है मेनोपॉज़। चित्र-अडोबीस्टॉक

नीरजा कहती है कि मेनोपॉज़ भी उस समय होता है जब आपके बच्चे बड़े हो रहे होते हैं, और उन्हें भावनात्मक और शारीरिक रूप से आपकी कम आवश्यकता होने लगती है। महिलाओं के लिए, इससे जीवन में शून्यता पैदा होने लगती है। यह एक बहुत बड़ा शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होता है, और आपको नई दिनचर्या और अपेक्षाओं का आदी होने में समय लगता है। ‘

महिलाओं को सेल्फ केयर करना जरूरी

नीरजा बिरला कहती हैं की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करना उनके जीवन का एक अहम हिस्सा रहा है और वे कहती है कि सभी महिलाओं को अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए अच्छी देखभाल करना बहुत जरूरी है। अपने फिटनेस मंत्रा बताते हुए नीरजा कहती है कि 50 वर्ष की आयु में भी फिट रहने के लिए वे इन तमाम टिप्स को अपनाती है।

1 व्यायाम करें

नीरजा बतातीं हैं कि महिलाओं को स्वस्थ रहने के लिए फिट रहना बहुत आवश्यक है। व्यायाम करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में निखार आता है और तमाम समस्याओं से भी राहत मिलती है।

2 परिवार के साथ समय बिताएं

मेनोपॉज़ के वक़्त आपका मानसिक स्वास्थ्य बहुत उथल-पुथल भरा रहता है और भावनात्मक रूप से आप बहुत कमज़ोर होती है। इस मामले में नीरजा कहती है कि ऐसे समय आपके परिवार से ज्यादा सपोर्टिव और कोई नहीं हो सकता, इसलिए अपने परिवार के साथ समय बताएं।

3 सोशल सर्कल भी है आवश्यक

नीरजा कहतीं हैं कि परिवार के बाद आपके दोस्त ही आपकी तमाम समस्याओं को सकते हैं। इसलिए ऐसे समय में यदि आप खुद को अकेला पाती हैं तो, अपना सोशल सर्किल बढ़ाएं और अपने दोस्तों और सगे-संबंधियों से वार्तालाप करें।

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