मेरे भाई ने आत्महत्या की थी और मैं नहीं चाहती कि यह किसी और के साथ हो

किसी अपने की मौत से होने वाली क्षति का सामना करना, खासतौर से जब वह आत्महत्या हो, वाकई जिंदगी की कुछ बहुत मुश्किल चीजों में से एक है।
राशि ने अपने करीबी द्वारा आत्‍महत्‍या किए जाने के दुख को झेला है। चित्र: राशि ठकरान

मेरा नाम राशि ठकरान है, उम्र 22 साल है और मैं एक इंजीनियर ग्रेजुएट हूं। साथ ही मैं मेंटल हेल्थन पर जागरुकता फैलाने में जुटी हूं। फिलहाल बेंगलुरु में परिवार के साथ रहती हूं।

मैंने अपने परिवार में किसी की आत्महत्या के नुकसान को झेला है। जो दर्द मैंने झेला आज वही आप सबके साथ आज बांटने जा रही हूं।

मेरा बचपन बहुत खूबसूरत बीता। पापा इंडियन एयर फ़ोर्स में थे, जिसकी वजह से हमे अलग-अलग शहरों में जाने का मौका मिला। वैसे मेरी मम्मी भी एयर फ़ोर्स में ही थीं, लेकिन मेरा और मेरे छोटे भाई राघव का ख्याल रखने के लिए उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी।

हमेशा से हमारी फैमिली आपस में बहुत क्लोज रही। मैं उनसे सब कुछ शेयर कर सकती थी। खासकर अपने भाई से तो मेरा रिश्ता बहुत ही प्यारा था। हमारा बर्थडे भी एक ही महीने में आता था, बल्कि दोनों के बर्थडे में सिर्फ चार दिनों का ही फर्क था। बचपन की सबसे अच्छी याद जो मेरे दिमाग में अभी भी ताज़ा है, वो है हमारा बर्थडे सेलिब्रेशन।

मम्मी दोनों का जन्मदिन एक ही साथ मनाया करतीं थीं। जिसके लिए हम दोनों बहुत उत्साहित रहते थे। कंबाइंड बर्थडे पार्टी का मतलब होता था, दो केक, बहुत सारे गिफ्ट्स, बहुत ज्यादा फ्रेंड्स और दुगना मजा। जब भी अपने बचपन की कोई बात याद करती हूं, तो उसमें इन पार्टीज का जिक्र ज़रूर होता है।

हमारी कंबाइंड बर्थडे पार्टी मेरे बचपन की सबसे सुंदर यादों में से है। चित्र: राशि ठकरान

पर 2018 दिसम्बर में परिस्थितियां एकदम बदल गई…

अपने परिवार के साथ मुंबई में मैं नया साल सेलिब्रेट कर रही थी। हम सब ने बहुत मज़े किये और एन्जॉय किया। मेरे पास आज भी इवेंट के बहुत सारे वीडियो हैं। खासकर जिनमें राघव मेरे साथ नाच रहा है। राघव वही इंसान है, जिसने इवेंट के ठीक छह दिन बाद अपनी जान दे दी।

वो सिर्फ 18 साल का था, जब उसने अपनी जान लेने का फैसला कर लिया और आत्महत्या कर ली थी। राघव का यह फैसला बहुत चौंकाने वाला था, क्योंकि हम में से कोई भी इसके लिए तैयार ही नहीं था। यह विश्वास करने वाली चीज बिल्कुल भी नहीं थी। हमें यकीन हो ही नहीं रहा था। मुझे आज भी याद है रात के 9:00 बजे थे, जब दरवाजे की घंटी बजी मेरे पापा चिल्ला रहे थे, राघव चला गया….. वह चला गया……. !

मुझे याद है जब मैं भागकर हॉस्पिटल पहुंची मैंने डॉक्टर्स को उम्मीद छोड़ते हुए और हार मानते हुए देखा। मुझे यह भी याद है कि उसका एक खत जो मुझे मिला था। मैं शॉक में थी… मैं इतनी परेशान थी, हैरान थी कि पहली बार खत पढ़ने के बाद मैं कुछ रिएक्ट ही नहीं कर पाई थी।

वो समय बहुत अजीब था, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मुझे क्‍या करना है। चित्र: शटरस्‍टॉक

बस बार-बार मैं अपनी मां को फोन मिला रही थी। जो उस समय बेंगलुरु में थी, मैं अपने आंसू रोकते हुए उनसे बात कर रही थी। मैं नहीं चाहती थी कि उन्हें इस घटना का पता चले, जब तक कि वह घर वापस नहीं आ जाती। मुझे उस दिन पूरी तरह टूटा हुआ, सुन्न और लाइफ लैस फील हो रहा था। अब हमारी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाने वाली थी।

हमें इस बात का अभी तक पता ही नहीं चला कि राघव ने ऐसा क्यों किया। लेकिन इस बात को लेकर हम काफी श्योर थे कि यह उसके एग्जाम से जुड़ा हुआ तो नहीं था, क्योंकि वह एक ब्रिलियंट स्टूडेंट था। पढ़ाई को लेकर वो किसी भी तरीके से परेशान कभी नहीं रहा था। लेकिन अब हम यह जान गए थे कि वह उदास था, परेशान था और यह बात वह हमसे और अपने बेस्ट फ्रेंड से छुपाने में कामयाब भी हो गया था।

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हम जानते हैं कि वह लंबे समय से संघर्ष कर रहा था। लेकिन वह खुद भी कभी नहीं समझ सका कि उसे क्या चीज परेशान कर रही थी। वह तब भी दुख में था जब उसके पास सब कुछ था। जब यह बात राघव खुद नहीं समझ सका तो दूसरों से इसे समझने की कैसे उम्मीद कर सकता था?

उसका ना होना हमसे सहन नही हो रहा था

उसके जाने के बाद का समय बहुत कठिन था। मुझे नींद नहीं आती थी, एंग्जायटी होती थी, दुख होता था और यह सब कुछ मैं एक साथ अनुभव कर रही थी। उसके जाने के बाद मैं रातों को सो नहीं पाती थी, मैं अपनी पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पा रही थी, मैं रोती ही जा रही थी और मेरे आंसू रुकते ही नहीं थे।

यह वह समय था जब मुझे आधी रात को गंभीर पैनिक अटैक हुआ। मैं हिल नहीं सकती थी, रो नहीं सकती थी मैं बस अपनी मम्मी के बगल में बैठकर चिल्ला रही थी। मैंने उनसे कहा कि अब बस बहुत हुआ, मैं अब और नहीं सह सकती। अब मैं ठीक होना चाहती हूं।

मेरे माता-पिता ने मुझे मनोचिकित्सक के पास ले जाने का फैसला किया

मेरे डॉक्टरों ने मेरे साथ मिलकर सिचुएशन को संभालने की कोशिश की। थेरेपी सेशंस लिए और जरूरी दवाइयों का भी सहारा लिया। इस तरह मैं वापस अपने आप तक पहुंच पाई। मम्मी ने आध्यात्मिकता को अपनाया और मेरे पापा ने इस बुरी स्थिति में दो महिलाओं को सहारा दिया।

एक और चीज जिसने मेरे दुख से निकलने में मेरी मदद की वह था मेरा दुख के बारे में बात करना। मैंने अपने भाई के बारे में बात करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया। इस पर बात की, कि हमारे साथ क्या हुआ। मैंने अपनी मेंटल हेल्थ और स्ट्रगल के बारे में बात की। इसके बाद दूसरे लोग भी सामने आकर अपनी कहानी हमारे साथ शेयर करने लगे और इस तरह हमने एक ऑनलाइन सपोर्ट सिस्टम बना लिया।

मुझे एक उद्देश्य मिला …

मैंने एक फ्लैगशिप प्रोग्राम के लिए अप्लाई किया जिसका नाम था change.org जिसे नाम दिया ‘She Creates Change’. मैं सेलेक्ट हो गई थी और उनके प्लेटफार्म पर मैंने अपनी एक पेटिशन डाली। जिसमें भारत सरकार से राष्ट्रीय स्तर पर एक हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत करने के लिए अनुरोध किया जो सुसाइड प्रीवेंशन के लिए था।

मेरी याचिका की प्रतिक्रिया अद्भुत थी। इसे दो लाख से अधिक हस्ताक्षर मिले थे। जिसका मतलब था कि परिस्थिति कितनी खराब है, लोग इस बात को समझते हैं।

मैंने महसूस किया कि मुझे साइकोलॉजी पढ़नी चाहिए। ताकि मैं आत्महत्या की रोकथाम के लिए ज्यादा सजग होकर काम कर सकूं। मैंने अपना एक ब्लॉग शुरू किया जिसका नाम है ‘ऑल अबाउट मेंटल हेल्थ’ (All about mental health) जहां हम मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण से जुड़ी हुई बातें करते हैं।

इस मुद्दे पर बात करना बहुत जरूरी है। चित्र: राशि ठकरान

अब तक का सफर मेरे लिए एक रोलर कॉस्टर राइड की तरह रहा है। जिंदगी मेरे और मेरे परिवार वालों के लिए पूरी तरह से बदल चुकी है। मैंने महसूस किया कि जब आप ट्रेजेडी का सामना करते हैं तब आप कितने फ्लैक्सिबल और स्ट्रांग हो जाते हैं। निश्चित रूप से मुझे अपने परिवार की इम्पोर्टेंस का पता चला। मैंने एहसास किया कि मैंने अपने परिवार को और उनकी ज़रूरतों को कितना हल्के में लिया था।

मैं आपसे कहना चाहती हूं कि दुःख का मतलब सिर्फ रोना ही नहीं है। कभी-कभी राघव के बारे में बात करते-करते मैं मुस्कुराने लगती हूं और कभी-कभी ऐसे भी दिन आते हैं जब मेरे लिए अपने बिस्तर से उठना भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन मेरे लिए… मेरे पास मेरे परिवार का पूरा सपोर्ट है। मेरे दोस्तों का पूरा साथ है। उन्होंने मुझे अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से बाहर निकाला है।

मुझे यह स्वीकार करने में कभी कोई शर्म नहीं आती कि मैं अब भी दवाएं खाती हूं और थेरेपी के लिए जाती हूं। मानसिक स्वास्थ्य उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि शारीरिक स्वास्थ्य। क्या आपका दिमाग आपके शरीर का हिस्सा नहीं है? मुझे यह चीज हैरान कर देती है जब लोग इन दोनों के बीच में फर्क करने की कोशिश करते हैं।

अंत में मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूं, उन सभी लोगों से जो मुझसे कहीं भी जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। आप पागल नहीं है…… आप बेवकूफ नहीं है…… आप ओवर-रियेक्ट भी नही करते….. सबसे महत्वपूर्ण बात याद रखिए कि आप अब अकेले नहीं हैं।

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ये बेमिसाल और प्रेरक कहानियां हमारी रीडर्स की हैं, जिन्‍हें वे स्‍वयं अपने जैसी अन्‍य रीडर्स के साथ शेयर कर रहीं हैं। अपनी हिम्‍मत के साथ यूं  ही आगे बढ़तीं रहें  और दूसरों के लिए मिसाल बनें। शुभकामनाएं! ...और पढ़ें

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