एक समय जब ज़्यादातर भारतीय महिलाओं को घर में ही रहने का दबाव था, विशेष रूप से इस्लाम में और आतंकवाद जम्मू में चरम पर था, तब शाहिदा गांगुली ने जम्मू-कश्मीर पुलिस में शामिल होने का फैसला किया। हालांकि यह राह आसान नहीं थी।
शुरू से साहसी प्रवृति की शाहिदा ने हर चुनौती को स्वीकार किया। आज जब वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (Covid-19) ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है, तब ए.सीपी शाहिदा ने एक कोरोना वॉरियर की तरह योग प्रशिक्षक का कार्य भी बखूबी संभाल रखा है।
पुंछ में जन्मी और पली-बढ़ी, छह भाई-बहनों के परिवार में शाहिदा सबसे छोटी थी, मगर उनके सपने बहुत बड़े थे। जब वे चार साल की थी तभी उनके पिता का देहांत हो गया और घर चलाने की सारी ज़िम्मेदारी उनकी मां पर आ गयी। उस समय सामाजिक रूढ़ियों और पारिवारिक ढांचे की वजह से शाहिदा की मां काम पर नहीं जा सकीं और घर का सारा कार्यभार भाई के कंधों पर आ गया।
ए.सीपी शाहिदा कहती हैं कि ‘’कई कठिनाइयों के बावजूद, मेरी मां ने तय किया कि हम सभी अपनी पढ़ाई पूरी करें।’’
‘’हमारे घर में औरतें हिजाब पहनकर रहती थी और उनको कभी बाहर काम – काज करने नहीं दिया जाता था। उस वक़्त महिलाओं के लिए टीचर बनना ही एक मात्र प्रोफेशन हुआ करता था, परंतु शुरुआत से ही मैं लीक से हटकर कुछ करना चाहती थी। पारिवारिक हालात कुछ ठीक नहीं रहते थे। इसके बावजूद मेरे सपने कभी किसी आर्थिक स्थिति के मोहताज नहीं बने।’’
पुंछ डिग्री कॉलेज से गणित में स्नातक करने के बाद भी उनके सामने कई आर्थिक समस्याएं आईं, इसलिए उन्होंने बच्चों को टयूशन पढ़ाना, रेडियो स्टेशन में भी उद्घोषक का कार्य किया।
इसी बीच वे अपने भाई के साथ शिफ्ट हो गयी थी, जहां उन्होंने खाना बनाना भी सीखा। हालांकि खाना बनाना कभी भी उनकी प्राथमिकता नहीं थी और वह काफी असहज महसूस करती थी।
इसी दौरान अचानक उन्होंने पुलिस भर्ती का फॉर्म देखा और किसी को बिना बताये भर दिया। घर में इस तरह का माहौल नहीं था कि वो अपनी इच्छा सबके सामने ज़ाहिर कर सकें।
वे कहती हैं कि ‘’मैंने सारे इंटरव्यू भी छुपकर दिए, मगर मेरी मां को हमेशा से पता था, वो रमजान के दिनों में सुबह – सुबह ग्राउंड में मुझे दौड़ाने ले जाती थीं।’’
इस तरह धीरे – धीरे वे अपनी मंजिल की ओर बढ़ती गईं और आज वे दिल्ली में ए.सीपी के पद पर कार्यरत हैं। बेहद परिश्रमी, साहसी और कभी न हार मानने वाली शाहिदा परवीन गांगुली के नाम कई कीर्तिमान दर्ज हैं।
2020 में उन्हें महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी द्वारा ड्रीम अचीवर्स पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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कस्टमाइज़ करेंपिछले वर्ष कोरोना महामारी के दौरान वो भी संक्रमित हो गईं। मगर रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होने के कारण और 20 सालों से नियमित योगाभ्यास करने के कारण उन पर इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा। कोरोना से पीड़ित होने के दौरान भी उन्होंने सूर्या नमस्कार करना कभी नहीं छोड़ा।
उनका कहना है कि ‘यह प्राणायाम ही है जिसने मुझे कोविड – 19 से लड़ने की शारीरिक और मानसिक क्षमता दी है।’
यही वो समय था जब उन्हें यह अहसास हुआ कि योग मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कितना महत्वपूर्ण है। तभी उन्होंने अन्य लोगों को भी योग के बारे में जागरूक करने का बीड़ा उठाया।
अपनी पुलिस ट्रेनिंग के दौरान भी वे कई महिलाओं को योग के बारे में शिक्षित करती थीं। परन्तु योग के बारे में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए उन्होंने भीम राव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से योग विषय में परास्नातक किया।
आज शाहिदा, अपनी ड्यूटी के बाद, हर शाम को रोज़ 6 बजे ऑनलाइन योग की कक्षा लेती हैं, जिसमें वे निशुल्क योगाभ्यास और प्राणायाम सिखाती हैं। उनका मानना है कि यदि हम योग अपना लें तो, कोई बीमारी हमें छू भी नहीं सकती है।
रेस्पिरेटरी सिस्टम को मज़बूत रखने के लिए सबसे ज़रूरी है प्राणायाम और उससे भी ज्यादा ज़रूरी है प्राणायाम को सही तरह से करना। जिसमें – कपालभाति, उज्जायी प्राणायाम, नाड़ी शोधन प्राणायाम, भस्त्रिका और भ्रामरी शामिल हैं।
ए.सीपी शाहिदा सभी महिलाओं को खुद को शारीरिक तौर पर फिट रहने की सलाह देती हैं और उनका मानना है कि सिर्फ ब्रीदिंग एक्सरसाइज करना ही काफी नहीं है, बल्कि योगासन और प्राणायाम दोनों को अपने जीवन का अंग बना लेना चाहिए।
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