कहते हैं कि जब कुछ लक्ष्य हासिल करने की ललक हो, तो व्यक्ति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर हर बाधा को पार कर जाता है। इस बात को सही ठहराती हैं कोरल वुमन उमा मणि। उमा मणि को छोटी उम्र से ही चित्रकारी करना बहुत पसंद था। उस जमाने में उमा के दादा-दादी को चित्रकारी करना कागज और रंगीन पेंसिले बर्बाद करना लगता था। वे उन्हें चित्रकारी करने से मना कर देते। उन्हें सिर्फ पढ़ाई और शादी पर ध्यान देने को कहा जाता। 49 साल की उम्र में जब उन्होंने तैराकी और गोताखोरी सीखने का संकल्प लिया, तो रिश्तेदारों ने टिप्पणी की, “यह आपकी दादी बनने की उम्र है।” इस बार उमा ने आगे बढ़ने का फैसला कर लिया था। वे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती गईं। 59 साल की उम्र में उमा मणि को भारत की ‘कोरल वुमन’ की उपाधि दी गई है। वे अपनी कला के प्रति अब जुनूनी बन गई हैं। वे समुद्र के अंदर मूंगा चट्टानों के बारे में चिंतित होती हैं और लोगों को समुद्र संरक्षण के प्रति जागरुक करती हैं।
वे बच्चों जैसी उत्साह से भरपूर हैं। तमिलनाडु के डिंडीगुल में हेल्थ शॉट्स से हुई बातचीत में खिलखिलाकर हंसते हुए वे कहती हैं, “मुझे मैडम मत कहें। मैं आपसे छोटी हूं! 45 साल की उम्र में मेरा पुनर्जन्म हुआ है। इसलिए ईमानदारी से कहूं तो मैं सिर्फ 14 साल की हूं।” वे स्वभाव से हल्की-फुल्की हैं, लेकिन उनके दिल में एक बड़े मिशन को पूरा करने का जज्बा है। वे मूंगा चट्टानों, समुद्री जीवन और जलवायु परिवर्तन की स्थिति के बारे में चिंतित होकर कहती हैं, “वास्तव में समुद्र एक महासागर है। समुद्र को उस आघात से बचाने के लिए हमें कई हाथों और दिमाग की ज़रूरत है।”
45 साल की उम्र में ड्राइंग और पेंटिंग के प्रति अपने प्यार को फिर से तलाशने से पहले उमा मणि एक संतुष्ट गृहिणी थीं। वे खाना बनाती थीं, कपड़े धोती थीं, साफ-सफाई करती थीं। वे सब्जी लाने बाजार जाती थीं, लोगों से बात करती थीं और कभी-कभी योग की शिक्षा या अंग्रेजी की ट्यूशन भी देती थीं। एक बार जब उन्होंने दोबारा पेंटिंग करना शुरू किया, तो उनकी जिंदगी ही बदल गई।
बचपन में उमा मणि बगीचों, पौधों और फूलों को चित्रित किया करती थीं। जब वह 39 वर्ष की थीं, तब उन्होंने अपने पति के साथ भारत में चेन्नई के हरे-भरे वातावरण से अपना ठिकाना मालदीव के नीले पानी में स्थानांतरित कर लिया। पानी ने उन्हें आकर्षित करता था, लेकिन वे तैरना नहीं जानती थीं। उन्होंने फूलों पर पेंटिंग बनाना जारी रखा।
एक दिन उन्हें मूंगा चट्टानों पर एक वृत्तचित्र देखने का अवसर मिला। उन्होंने मूंगा चट्टानों पर आधारित पेंटिंग बनानी शुरू की। वे बताती हैं, “चार-चार वर्षों से मैं बिना मूंगों के वास्तविक रूप को देखे इन पर चित्र बना रही थी। 2014 में एक प्रदर्शनी के दौरान किसी ने मुझसे कहा, ‘आपको पानी के अंदर मूंगा चट्टान देखनी चाहिए और फिर पेंटिंग करनी चाहिए। मुझे लगा कि अब मेरे लिए तैराकी और गोताखोरी सीखने का सही समय आ गया है।”
वह क्षण निर्णायक मोड़ बन गया। बढ़ती उम्र और जेंडर डिस्क्रिमिनेशन पर रिश्तेदारों के लगातार बड़बोलेपन से विचलित हुए बिना, उमा मणि ने पूर्वाग्रह को तोड़ने का फैसला किया।
उमा मणि मालदीव में डाइविंग कोर्स के लिए साइन अप करने गई थीं। वहां पानी के भीतर किसी भी आपातकालीन स्थिति को आसानी से नेविगेट करने के लिए उन्हें पहले स्वीमिंग सीखने के लिए कहा गया। उन्हें चेन्नई जाना पड़ा, जहां उन्होंने तैरना सीखा। वे बताती हैं, “लोग सोचते थे कि मैं पागल हो गई हूं। वे कहते, ‘इस उम्र में तुम्हें दादी बनना है। मत जाओ और अपने हाथ पैर मत तोड़ो! चेन्नई की सभी बुजुर्ग महिलाएं पूछतीं , ‘आप ऐसा क्यों करना चाहती हैं?’ मैंने कहा, ‘मैं बस यही चाहती हूं।’ निस्संदेह, उनके पास कई प्रश्न थे। लेकिन उमा ने उनके किसी प्रश्न का जवाब नहीं दिया।
उसके लगभग एक दशक बाद वह पहली बार उस बात पर खुलकर हंसती हैं, जब उनके डाइविंग कोच ने उन्हें कूदने के लिए कहा था। वह नाव के किनारे पर थी। वे तब तक नहीं कूद सकीं, जब तक उन्होंने खुद को आश्वस्त नहीं कर लिया। उन्होंने अपने-आप से कहा, “मैं इतनी दूर आ गई हूं…। मुझे कूदना है।”
उस पहली डाइव ने उनके दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ी। मूंगा चट्टानों के मूवमेंट, रंग और भव्यता से मंत्रमुग्ध होकर वे खुद से सवाल करने लगी, “मैंने पहले खुद को इस खूबसूरत अनुभव से वंचित क्यों रखा?” आज, एक 32 वर्षीय बेटे की मां अपने संकल्प और पति और बेटे के समर्थन के लिए आभारी है। वह कहती हैं, “इससे मुझे यह एहसास भी हुआ कि मैंने यह किया…। मैंने जोखिम उठाया। ” वे अब इस बात पर ज़ोर दे रही हैं कि “गोता लगाना चलने से आसान है।”
तब से आज तक वे कम से कम 25 बार पानी के भीतर गोता लगा चुकी हैं। हर बार वह अपनी कला के माध्यम से मूंगा चट्टान संरक्षण के बारे में बहुत ज्यादा बताने केलिए प्रेरित होती हैं। उमा एक डाइविंग लॉग रखती हैं, जिसमें वह स्थान, समय और प्रत्येक गोता के अनुभव के बारे में विस्तार से लिखती हैं।
अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें
कस्टमाइज़ करें2018 में, उनके जीवन की कहानी पर ‘कोरल वुमन’ नामक एक वृत्तचित्र बना। फिल्म निर्माता प्रिया थुवासेरी को एक गृहिणी की प्रेरक कहानी मिली, जिसे मूंगों से प्यार हो गया। उमा ने आगे के सफर में अपनी कला के माध्यम से समुद्री जीवन और तटीय समुदायों पर जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना शुरू कर दिया। उमा मणि के निरंतर प्रयासों के कारण सोनी बीबीसी अर्थ ने उन्हें ‘अर्थ चैंपियन’ के रूप में मान्यता दी है।
पीछे मुड़कर देखते हुए वह कहती हैं, ”इस यात्रा ने अपना अलग फ्लो ले लिया है। मैंने शुरुआत पेंटिंग और गोताखोरी से की थी। लेकिन जब मुझे पानी के नीचे प्रवाल भित्तियों और समुद्र के प्रदूषण की समस्या का एहसास हुआ – तभी मैंने अलग ढंग से सोचना शुरू किया। एक खुशहाल मूंगा चट्टान से एक उदास मूंगा चट्टान तक का मेरा दृष्टिकोण मुझे परेशान करने लगा।
अब मैं प्रदर्शनियों के दौरान, कॉलेजों और संगठनों में लोगों से बात करती हूं। उन्हें मैं बताती हूं कि हमलोग समुद्र में कचरा और प्लास्टिक के रूप में कार्बन फुटप्रिंट छोड़ रहे हैं। उनसे समुद्र का वातावरण और जीव पीड़ित हो रहे हैं। यह आपदा जलवायु परिवर्तन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। हर व्यक्ति को समुद्र की सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी के बारे में जागरूक होना चाहिए।”
लगभग 60 की उम्र में भी गोता लगाने के लिए उमा मणि खुद को फिजिकली एक्टिव रखती हैं। वह एक मशहूर हस्ती की तरह अपनी फिटनेस के बारे में कहती है: “सक्रिय रहना मेरा फिटनेस मंत्र है।” सच कहा जाए तो, वह केवल वही करती है, जो अतीत में ज्यादातर महिलाएं करती थीं – बहुत सारा घरेलू काम। वे अपने काम के लिए किसी हेल्पर या निजी वाहन पर निर्भर नहीं रहती हैं। वे पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करती हैं। वे यह सुनिश्चित करती हैं कि वे हर दिन पैदल चलकर मंदिर जाएं और अपने चार प्यारे कुत्तों के साथ अपने पैरों पर खड़ी रहें।
वे जानकारी देती हैं, “मुझे एहसास हुआ कि अचानक अगर मैं गोता लगाने जाना चाहूं तो अपनी पीठ पर 20 किलो वजन ले जाना संभव नहीं है! इसलिए मुझे हर दिन अपने शरीर पर काम करना पड़ता है। मैं व्यायाम करती हूं। मैं योग करती हूं, टहलती हूं और सकारात्मक बनी रहती हूं। मैं अपने खाने को लेकर सतर्क रहती हूं। मैं रात 9 बजे तक सो जाती हूं। मेरे पति हमेशा कहते हैं, ‘अपना जीवन अच्छे से जीना आपकी पसंद है। इसलिए मैंने उचित दिनचर्या का चुनाव कर लिया।”
यह भी पढ़ें :- योग और मेडिटेशन से कंट्रोल की एपिलेप्सी, मिलिए कांटा लगा गर्ल शेफाली जरीवाला से