30 वर्षीय अरीबा खान ऊर्जा से भरपूर उन युवाओं में से हैं, जो दूसरों की खुशी को ही अपना मिशन बना लेते हैं। अरीबा उन लोगों के लिए काम कर रही हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों (Ariba khan for mental health) से जूझ रहे हैं। एक सेफ स्पेस, जहां पर लोग बिना पहचान उजागर किए अपने विचारों को प्रकट कर सकते हैं। असल में यही उनका सबसे बड़ा व्यवसायिक कौशल है, जहां उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-आधारित मेंटल हेल्थ ऐप बनाया है।
आईआईटी-रूड़की और आईआईएम-बेंगलुरु की इस पूर्व छात्र ने को-फाउंडर पीयूष गुप्ता के साथ जंपिंग माइंड्स को एक ऐसा स्थान बनाया, जहां लोग अपनी पहचान उजागर किए बिना समान स्थिति में रहने वाले लोगों के साथ चैट कर सकें।
हेल्थ शॉट्स को अरीबा खान बताती हैं, “हम सभी को एक सिक्योर स्पेस की जरूरत होती है। जहां आप उन चुनौतियों के बारे में बात कर सकें, जिनका आप सामना कर रही हैं। यह आवश्यक नहीं है कि क्लिनिकल स्ट्रेस ही हो, लेकिन हम सभी किसी न किसी तरह के स्ट्रेस से सामना कर रहे हैं।
यह एक बैड ब्रेकअप, वर्कप्लेस पर काम का दबाव, परिवार के साथ तालमेल बिठाना भी हो सकता है। इसलिए हमने एक ऐसा डिजिटल स्पेस बनाने के बारे में सोचा, जहां आप ऐसे लोगों से जुड़ती हैं, जो समान तनाव से गुजरे हैं या गुजर रहे हैं। वे अपने अनुभव साझा करते हैं और भावनाओं को व्यक्त करते हैं।”
पिछले कुछ वर्षों में ग्लोबल सेलिब्रिटीज ने मेंटल हेल्थ पर खुल कर बात की है। इससे रास्ते खुले हैं, पर अब भी एक लंबी दूरी तय करनी है। मेंटल हेल्थ स्टिग्मा के कारण खान ने जम्पिंग माइंड्स को एक ऐसी ही जगह बनाने का फैसला लिया।
दिल्ली निवासी एक यूजर बताते हैं, “हमेशा एक निर्णय कारक होता है। भले ही उनका मंच तकनीक के बारे में है, लेकिन ह्यूमन इंटरैक्शन केंद्र में है। खान कहती हैं, “यह मंच लोगों को अपननी भावनाओं को व्यक्त करने, तनाव मुक्त होने और समाधान खोजने में मदद करता है।”
सिर्फ पांच साल पहले, तनाव के बारे में बात करना और काम के दौरान थकान महसूस करना अकल्पनीय लगता था। लेकिन कोविड-19 महामारी ने लोगों को अपने मानसिक स्वास्थ्य को अधिक गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित किया है।
खान कहती हैं, “विशेष रूप से जेन-जेड अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक है। उनकी अपनी आकांक्षाएं हैं और वे संतुलित और सुखी जीवन जीना चाहती हैं। इसलिए मैं कहूंगी कि युवा पीढ़ी मानसिकता में बदलाव और कल्याण की ओर सकारात्मक बदलाव का नेतृत्व कर रही है।
फिर भी मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षित स्थान को लेकर एक स्टिग्मा अभी भी है। जिसके कारण लोग अपनी कहानी साझा करने में शर्म या दोषी महसूस करते हैं। इसकी बजाय लोगों को इस बारे में सशक्त महसूस करना चाहिए कि उनकी तरह कई अन्य लोग भी इस स्थिति से गुजर रहे हैं।”
जो लोग इस कहावत में विश्वास रखते हैं- “सब ठीक है, ठीक नहीं होने का परिचायक है। खान उन सभी आम स्वास्थ्य समस्याओं की रूपरेखा तैयार करती हैं, जिनसे इन दिनों 20-30 आयु वर्ग के युवा गुजर रहे हैं।
चाहे आप काम पर या पारिवारिक जीवन में तनावग्रस्त हों, यह सीधे आपके पारस्परिक संबंधों को प्रभावित करता है। लोग इस बात को लेकर तनाव में रहते हैं कि रिश्ते कैसे बनाए रखे जाएं।
लोगों को समय-समय पर डिजिटल डिटॉक्स की आवश्यकता होती है! “चिंता सोशल मीडिया का प्रभाव है। हर समय फिल्टर के साथ पूर्ण होने की जरूरत दिखाई पड़ती है। सोशल एंग्जाइटी और सामाजिक तुलना स्थिति को और बिगाड़ देते हैं।
खान बताती हैं, लोग सोचते रहते हैं, शायद मैं पर्याप्त नहीं हूं’, मैं इतना काम कर रही हूं, लेकिन मैं उस स्तर तक नहीं पहुंची हूं।’ ऐसी सामाजिक चिंता कोविड के बाद के युग में बहुत प्रमुख हो गई है।’
यही वह उम्र है जब नए बने प्रोफेशनल साथी और कॉलेज के छात्र अपने शरीर और वरीयताओं के बारे में जागरुक होते हैं। इसलिए लोगों के मन में यौन स्वास्थ्य के बारे में बहुत सारे प्रश्न होते हैं।
करियर के माइलस्टोन तक पहुंचने की इच्छा लोगों पर अनुचित दबाव और तनाव पैदा करती है। वे इस तरह की चीजों पर बहुत अधिक सोच-विचार करते हैं, ‘क्या हम सही काम कर रहे हैं? क्या हम सही लोगों के साथ काम कर रहे हैं?’ विचारों को अपने तक ही सीमित रखने की बजाय इन बातों के बारे में दूसरों से बात करना जरूरी है। यह आपमें मान्यता मिलने की भावना स्थापित करेगी।
वह बताती हैं, “हम 21 वीं सदी की महिलाएं हैं। हम हमेशा आगे रही हैं और रहना चाहती हैं। चाहे वह निजी जीवन में हो या पेशेवर जीवन में। लेकिन उस दिन अपने लिए समय निकालना बहुत जरूरी है जब आप अकेली हों, किसी खास पल में जी रही हों।”
खान ने आश्वासन दिया कि हर दिन कुछ मिनटों के लिए भी ऐसा करने से लोगों को अधिक प्रोडक्टिव बनने में मदद मिलती है। साथ ही आपको रोजमर्रा की हलचल के सकारात्मक परिणामों की अधिक सराहना मिलेगी।
शोध कहते हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में तनाव का स्तर अधिक होता है! “समाज ने महिलाओं को अपने आस-पास के सभी लोगों को खुश रखने का आदि बना दिया है। चाहे वह सहकर्मी हों, दोस्त हो, परिवार हों। लेकिन कभी-कभी गलतियां करना, बुरा या नीचा महसूस करना भी सही होता है।
हम सोच सकते हैं कि हम सुपरवुमन हैं, लेकिन हैं तो हम इंसान ही! हमें अपने आप से हर समय परिपूर्ण होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अपूर्ण होने में ही सच्ची सुंदरता है।
अपने विचार अपने तक न रखें। अगर आप तनाव में हैं, तो इस बारे में बात करें। “इसके बारे में शर्मिंदा न हों। एक बार जब आप इस बोझ को अपने सिर से उतारना करना शुरू करती हैं, तो यह छोटा हो जाता है। और यदि आप इसे किसी समूह के साथ करती हैं, तो आपको जादू दिखाई देगा!”
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