बच्चों के लिए सरकारी नौकरी से वीआरएस ले चुकी कानपुर निवासी 46 साल की मीरा को अपने बालों से बहुत बहुत प्यार था। हो भी क्यों न? ज़िन्दगी के चालीस बसंत देखने के बावजूद उनके बाल ऐसे थे कि किसी को भी रश्क हो जाए। अपने लुक के साथ एक्सपेरिमेंट करना, ढेर सारे कपड़े खरीदना और प्रेजेंटेबल रहना मीरा को बहुत पसंद था। इसके बावजूद बालों के लिए यह उनका प्यार ही था कि उन्होंने बाल कभी बहुत छोटे नहीं कटवाए। बाल उनका आत्मविश्वास बढ़ाते थे।
बात साल 2021 की है, मीरा की तबियत ज़रा बिगड़ने लगी थी। पीरियड्स इर्रेगुलर हो गए। पेट के निचले हिस्से में दर्द रहने लगा था। जब हालात किसी तरह कंट्रोल न हुए तब जीवनसाथी के साथ वह डॉक्टर के पास पहुंची। डॉक्टर ने पूरे डायग्नोसिस के बाद सिस्ट बताया, इलाज शुरू हुआ और वह ठीक हो गईं। अब सब कुछ ठीक हो जाना था। ज़िन्दगी को वापस नॉर्मल होना था, पर ऐसा हुआ नहीं।
मीरा का पेट फूलने लगा,सांस लेने में दिक्कत होने लगी, महसूस होता जैसे कि पेट में फ्लूइड भरा हो, दो तीन दिन में दिक्कत बढ़ने के बाद डाॅक्टर का रूख किया। हर समय ऐसा महसूस होता जैसे सीने पर किसी ने मनों बोझ रख दिया हो। स्थिति जब किसी तरह कंट्रोल नहीं हुई तो मीरा ने फिर से डॉक्टर का रुख किया। तमाम टेस्ट्स, रिपोर्ट्स के बीच मीरा को यह लगने लगा था कि कुछ तो ऐसा ज़रूर हुआ है जो आम नहीं है। फिर पता चला थर्ड स्टेज ओवेरियन कैंसर का।
“ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है , मुर्दादिल भी क्या खाक जिया करते हैं?” दुष्यंत कुमार की लिखी इस बात को मीरा ने अपने जीवन का मूल मंत्र ही बना लिया, जब उन्हें यह पता चला कि ज़िन्दगी उनके साथ आंखमिचौली खेलने को आतुर है।
इस बारे में बात करते हुए मीरा कहती हैं, “अपने पिता को मैंने कैंसर से लड़ते और हारते देखा है। उनकी परेशानी और तकलीफें मुझे याद थीं। इसलिए, मैंने अपने आपको मेंटली (Cancer effect on mental health) तैयार करना शुरू किया। मैंने इस बात पर से अपना भरोसा कभी नहीं डिगने दिया कि जो होगा अच्छा होगा। मेरे साथ कभी कुछ बुरा होगा ही नहीं। मेरी यह विल पावर (Will power) मेरी सबसे बड़ी ताकत बनी।
कानपुर शहर के एक प्रतिष्ठित डर्मेटोलॉजिस्ट की पत्नी और कैंसर से जंग जीत चुकी मीरा सिंह बताती हैं, “मेरा परिवार और मेरे दोस्त मेरी सबसे बड़ी स्ट्रेंथ और ताकत बने। मुझे कभी किसी ने यह एहसास ही नहीं होने दिया कि मैं बीमार हूं। घर ही नहीं सोशल मीडिया के दोस्त भी लगातार मेरा मनोबल बनाए रखने में मेरी मदद करते रहे और दुनिया में बची हुई अच्छाई पर मेरा यकीन और गहराता गया। जो लोग नकारत्मक व्यवहार करते मैं और मेरा परिवार उनसे दूरी बनाने में पल भर देर नहीं करते।
मेरा बेटा बड़ा हो चुका है पर बेटी महज़ 14 साल की है। अपनी ज़िन्दगी के लिए जब भी ज़रा भी निराशा घेरती तो वह मेरी इकलौती चिंता बनती। पर उसका धैर्य मुझे दूसरे ही पल नाउम्म्मीदी के भंवर से निकाल लाता। मैंने उसकी आंखों को सिर्फ उस दिन नम पाया, जिस दिन उसे मेरी इस बीमारी का पता चला और उसके बाद वह कभी पल भर को भी कमज़ोर नहीं पड़ी।
परिस्थिति कोई भी हो पार्टनर का सपोर्ट हर उतार-चढ़ाव में बहुत मैटर करता है। इस जानलेवा बीमारी ने हमारे रिश्ते को ज़रा और मज़बूत ही बनाया। पार्टनर ने न सिर्फ बीमारी के कारण मेरे शरीर में आए बदलावों के साथ मुझे खुले दिल से स्वीकारा, बल्कि मुझे भी उनके लिए सहज बनाए रखा।
मीरा बताती हैं, “बालों का झड़ना किसी भी कैंसर पेशेंट के लिए सबसे बुरा अनुभव होता है। बिना बालों के होना सबके बीच सबसे अलग दिखाई देता है। जिससे पेशेंट को लेकर लोगों की नज़र में सहानुभूति खुद- ब- खुद आ जाती है। लोगों की नज़रों में दिखने वाली यह सहानुभूति किसी भी कैंसर पेशेंट के मनोबल पर असर डाल सकती है। मुझे लगता है कि या तो बालों का न होना नॉर्मलाइज़ हो जाना चाहिए या साइंस को इतनी तरक्की करनी चाहिए कि कीमोथेरेपी के दौरान बाल न झड़ें।
अपनी बात करूं तो मुझे अपने बालों की ख़ूबसूरती पर नाज़ था। मैंने कभी अपने बाल बहुत छोटे नहीं कटवाए थे, पर जब बीमारी का पता चला तो मैं जानती थी कि अब मेरे बाल नहीं रहेंगे। मैं इस स्थिति के लिए काफी हद तक तैयार थी। जब कीमो (chemotherapy) की बात आई, तो मैंने ढेर सारे स्कार्फ और कैप्स ऑनलाइन खरीदे क्योंकि बाहर जाना अलाउड नहीं था।
साथ ही तब ही यह तैयारी भी कर ली कि जब बाल आने लगेंगे, तो अपने छोटे बालों के साथ मुझे कौन-कौन से एक्सपेरिमेंट्स करने हैं। जो जैसा है, उसे उसी तरह स्वीकार कर उसमें ज़िन्दगी तलाशना, इसी ने मेरे जीने की इच्छा को कभी नहीं मिटने दिया। मेरी इस सकारात्मकता का ही असर था यह शायद की मेरी बॉडी पर दवाओं ने भी पॉज़िटिव रेस्पॉन्स दिया।
“बाबू मोशाय ज़िन्दगी लम्बी नहीं बड़ी होनी चाहिए”, राजेश खन्ना की बड़ी फैन और कैंसर को अपने हौसलों से पस्त कर चुकी मीरा ज़ोर का ठहाका लगाते हुए बताती हैं, “मैं बहुत रोमेंटिक किस्म की हूं। इसका श्रेय राजेश खन्ना की फिल्मों को जाता है। मेरी सर्जरी मुम्बई में हुई थी। सर्जरी के लिए एडमिट होने से एक घंटे पहले मैं समन्दर की लहरों से खेल रही थी। मेरा परिवार मेरे पास था। मैं जानती थी कुछ भी हो सकता है। साथ ही यह भी कि जो भी होगा अच्छे के लिए होगा। बस इसलिए मैं अपनी ज़िन्दगी को जी भर के जी लेना चाहती थी।
मैंने अपने भीतर जीवन को जीने की ललक कभी कम न होने दी। ऑपरेशन से पहले मैंने खूब सारी शॉपिंग की, ज़िन्दगी से किसी अफ़सोस के साथ रुखसती नहीं चाहती थी मैं। ऑपरेशन थिएटर में जाते हुए भाई और मेरा परिवार मेरे साथ था। ये सब लोग मेरी अब तक की ज़िन्दगी का असल हासिल थे और इनका प्यार मेरी कमाई। इसी पूंजी के साथ मैंने मौत पर फतह हासिल करी। आज मेरी सर्जरी को छः महीने से ऊपर हो चुके हैं। उम्मीद है ज़िन्दगी के दिए इस दूसरे मौके को मैं सही मायने में जी सकूं और अपनी ज़िन्दगी के हर रंग में खुशियों को शामिल कर सकूं।
यह ज़िन्दगी बेहद खूबसूरत है और बस एक ही बार मिलती है, इसे जी भर के जीना चाहिए। मैं 46 साल की हूं और अब मैं अपनी सारी ख्वाहिशें पूरी करना चाहती हूं। मैंने डांस सीखना शुरू किया है, खुद से इस वादे के साथ कि आने वाली राखी पर हर बार की तरह मैं डीजे की धुनों पर थिरकने से हिचकूंगी नहीं।
अमृता प्रीतम का लिखा मुझे हमेशा से लुभाता है, तो उनकी किताबों को भी अब समय देती हूं। परिवार के लिए कुकिंग का समय तो मैं बीमारी के दौरान भी निकाल लेती थी। जिसने मेरी सहजता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अब भी चाहे कुछ भी हो दाल और सब्जी तो मैं खुद ही बनाती हूं। यह परिवार के लिए मेरी फिक्र और केयर का तरीका है।
मैं अपने परिवार के साथ अपनी सेहत का भी खास ध्यान रखती हूं, क्योंकि मैंने हमेशा से इस बात को माना है कि अपने शरीर का ख्याल रखूंगी तभी तो अपने साथ-साथ अपनों के लिए जी सकूंगी। सुबह के नाश्ते में ढेर सारी सब्जियां उत्तपम या इडली में रात को ढेर सारी सब्जियों वाली दलिया मेरी रोज की डाइट का हिस्सा हैं। मैं चाहती हूं कि हर इंसान यह समझे कि यह ज़िन्दगी कुदरत का दिया अनमोल उपहार है। जिसकी क़द्र हम सब को सही तरीके से करनी चाहिए। अपना और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना ही असल मायने में खुद से प्यार करना है।
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