कोरोना वायरस लगातार म्यूटेट कर रहा है। जिसके चलते कई और चुनौतियां खड़ी हो रहीं हैं। पर व्यक्ति की जिजीविषा के सामने कोई भी वायरस ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकता। भले ही वह अपने प्रारूप में कितना ही परिवर्तन कर ले। कोरोना को हराने वाली वंदना राग और उनकी बेटी नीलाशी ने यह साबित कर दिया है। आइए जानते हैं उनके अनुभव उन्हीं की जुबानी।
नमस्कार मेरा नाम वंदना राग है और उम्र पचास पार कर गई है। मैं दिल्ली के एक पॉश इलाके में रहती हूं। हमने बहुत सख्ती से लॉकडाउन का पालन किया। पर जैसे ही अनलॉक 1.0 शुरु हुआ लोगों की आवाजाही कुछ बढ़ गई। हालांकि अब भी हम घर के अंदर ही थे, कहीं बाहर नहीं जा रहे थे। पर अब सब्जी वालों, ठेले वालों ने आना शुरू कर दिया था। पर फिर भी मैं ठीक-ठीक नहीं कह सकती कि यह खतरनाक संक्रमण मेरे घर में किस रास्ते से दाखिल हुआ।
अल्टीमेटली मुझे बुखार हुआ और लक्षण कुछ-कुछ कोरोना जैसे दिखने लगे। मेरे पति दूर भोपाल में हैं। घर में बस हम तीन जन हैं मैं, मेरी 24 वर्षीय बेटी और मेरा 20 वर्षीय बेटा। जब टेस्ट करवाया तो मैं कोविड-19 (Covid-19) पॉज़िटिव थी। टेस्ट की रिपोर्ट आते ही मैंने खुद को एक अलग कमरे में क्वारंटीन कर लिया। पर कुछ दिन बाद बेटी को भी बुखार हुआ, तो उसका टेस्ट करवाना भी जरूरी हो गया।
बेटी का टेस्ट भी कोविड-19 पॉज़िटिव आया। अब घर के दो अलग-अलग कमरों में हम दोनों क्वारंटीन थे। बेटे को ब्रेड, अंडा या मैगी बनानी तो आती थी पर उसके अलावा उसे खाना बनाना नहीं आता था। संक्रमण की चैन तोड़ने के लिए यह जरूरी था कि हमारे संपर्क में कोई न आए, इसलिए हमने हाउस हेल्प को भी घर आने से मना कर दिया।
ऐसे में कुछ दोस्त आए, जिन्होंने हमारे खाने-पीने का ख्याल रखा। पर डिस्टेंसिंग हम लगातार मेंटेन किए हुए थे।
मैं आज आपके साथ वे जरूरी बिंदु शेयर करना चाहती हूं, जो कोरोना वायरस से जूझते हुए हमने महसूस किए। यह किसी भी व्यक्ति के लिए कोरोना से लड़ाई में काम आ सकते हैं :
दोस्तों, परिवार और अपनों का प्यार सबसे बड़ी ताकत है। कोई भी बीमारी इतनी मोहब्बत की ताकत के आगे टिक नहीं सकती!
यह नहीं कहूंगी मैंने इस बीमारी को हराया, (यह संयोग है) क्योंकि कई लोग जो मुझसे अधिक ताकतवर और मज़बूत थे, इसे हरा नहीं पाये! यह विचित्र बीमारी है, इसका कोई फार्मूला नहीं और यही इसका दुःखद और पेचीदा पहलू है!
आप सब स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें। अपना ध्यान रखें।