“उस वक्त आप कैसा महसूस करती थीं?”
“मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि मैं बस सोती रहूं, बिस्तर से उठना मेरे लिए काफी मुश्किल हुआ करता था।“
एक दशक पहले तक मेंटल इलनेस के बारे में बात करना काफी मुश्किल भरा था। हालांकि अब कुछ महिलाओं ने इस बारे में चुप्पी तोड़ी है और अपने दर्दनाक अनुभवों को साझा करना शुरू किया है। समाज में अब भी मानसिक रोग को ‘असामान्य मुद्दा’ माना जाता है या इसे ‘अमीरों के चोंचले’ मान लिया जाता है। – पर इन महिलाओं ने इस मुद्दे पर खुलकर बात की।
आइए मिलते हैं उन महिलाओं से जिन्होंने भारत में बदल दी मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों की नजर-
उन्होंने सिर्फ फल्मों में ही चुनौतीपूर्ण किरदार नहीं किए हैं, बल्कि अपनी असल जिंदगी में भी चुनौती स्वीकार कर उन्होंने यह साबित कर दिया है कि वे सचमुच किसी नायिका से कम नहीं हैं।
अवसाद के दौरान अपने व्यक्तिगत संघर्ष के बारे में वे कहती हैं, “मेरी अवसाद की स्थिति को अगर कोई शब्द पूरी तरह बयां कर सकता है, तो वह है स्ट्रगल। हां, उस समय मेरा हर पल एक स्ट्रगल था। हर बार मैं खुद को हारा हुआ पाती थी।” वे आगे कहती हैं कि अवसाद असल में एक मेडिकल कंडीशन है, जिस पर किसी के लिए भी काबू पाना आसान नहीं है। फिर चाहें उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कैसी भी हो।
ऐसा देश जहां लोग अक्सर अपनी भावनाओं के बारे में बात करते हुए भी एक-दूसरे से सहज नहीं रह पाते, वहां एक सेलिब्रिटी का अपने मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के बारे में खुल कर बात करना और उससे आगे बढ़कर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुझ रहे लोगों के लिए लव लिव लाफ जैसा संगठन बना देना वाकई सराहनीय है।
एक दुर्घटना में अपने पिता और बहन दोनों को खोने के बाद हमारे अगले मेंटल हेल्थ वारियर ने अपना लक्ष्य हासिल किया।
मानस फाउंडेशन की संस्थापक के रूप में उन्होंने एक मेंटल हेल्थ केयर फाउंडेशन की परिकल्पना की जो अस्पतालों के दायरे से बाहर जाकर काम करती है। जल्द ही, उन्होंंने अपने घर में एक परामर्श केंद्र शुरू किया। इसके साथ ही उन बच्चों के लिए एक प्ले स्कूल शुरू किया, जिन्हें व्यवहारगत दिक्कतें थीं।
अपने सतत प्रयासों की बदौलत मोनिका कुमार को एडलगिव सोशल इनोवेशन सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्माान उपेक्षित वर्ग की महिलाओं के लिए किए गए उनके साइको सोशल रिहेबिलिटेशन और केयर के लिए दिया गया। वे वास्तविक बदलाव का एक ऐसा प्रतीक बन गईं हैं, जो लगातार हम सबको प्रेरणा दे रहा है।
चेन्नई की सड़कों पर एक मानसिक रूप से बीमार महिला को देखने के अनुभव ने वंदना गोपीकुमार और उनकी दोस्त वैष्णवी जयकर को मानसिक रूप से बीमार महिलाओं के लिए एक आश्रय बनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
गहन शोध के बाद वंदना ने यह महसूस किया कि गरीबी, मानसिक स्वास्थ्य समस्या और बेघर होने के बीच गहरा संबंध है। यह सब देखने के बाद उन्होंने मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के लिए रेस्क्यू, केयर, पुनर्वास, व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं कानूनी सहायता देने वाली एक पूरी श्रृंखला विकसित की।
वंदना गोपीकुमार ने वास्तव में यह साबित कर दिया है कि महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। मेंटल हेल्थ केयर में उनके सतत प्रयासों के परिणामस्वबरूप उन्हें वर्ष 2012 में आउटस्टेंडिंग अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।
कलाकार, फिल्म निर्माता, एक्टिविस्ट और रेड डोर की संस्थापक सहित कई भूमिकाएं संभाल रहीं हमारी अगली मेंटल हेल्थ वारियर रेशमा वल्लियप्पन वाल रेश के नाम से भी जानी जाती हैं।
सिज़ोफ्रेनिया से ग्रस्त होने के बाद उन्होंने एक डॉक्यूमेंटरी बनाई ‘ए ड्रॉप ऑफ सनशाइन’। जिसमें उन्होंने अपनी पूरी यात्रा को बयां किया है कि कैसे उन्होंने दवाओं के बगैर वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति जैसे व्यायाम, मेडिटेशन और आध्यात्मिकता आदि से खुद को वापस सामान्य जीवन जीने के लिए प्रेरित किया।
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कस्टमाइज़ करेंअपनी पुस्तक, ‘फॉलन, स्टैंडिंग: माई लाइफ इन द सिज़ोफ्रेनिस्ट’ के रूप में, उन्होंने ड्रग्स के प्रभाव के कारण किए गए अपने आत्महत्या के प्रयासों पर भी बेहद बेबाकी से लिखा है। उन्होंने LGBTQ समुदाय के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई। जो बाद में सीआरईए (CREA) के यूनाइटेड अगेंस्ट 377 पर की विशेष श्रृंखला का भी हिस्सा बनी।
जिस तरह से उन्होंने अपने आप को और अपनी कला को इस समुदाय के कल्याण के प्रति समर्पित कर दिया है, हम उन्हें सलाम करते हैं। वह मुद्दे जिन पर बात करना अब तक मुश्किल हुआ करता था, अब हम उन पर खुल कर बात कर पाते हैं। इसका श्रेय रेशमा जैसे वॉरियर्स को ही जाता है।
वह सचमुच अदम्य साहस की एक जीती जागती मिसाल हैं। सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर और योगिनी, जो अपने बलात्कार, शोषण और अवसाद के जटिल अनुभवों पर बहुत बेबाकी से बात करती हैं।
समाज में व्याप्त इस स्टिगमा से लड़ने के लिए उन्होंने जिस अदम्य साहस का परिचय दिया, वह उनकी आवाज में साफ महसूस होता है।
बलात्कार, एंग्जायटी, अवसाद और मेंटल इलनेस से जुड़े अपने अनुभवों का उपयोग वे उस समुदाय के कल्याण के लिए करती हैं, जो अब भी इनसे बाहर आने के लिए संघर्ष कर रहा है।
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