पितृ सत्तात्मक कंडीशनिंग है कि स्त्रियां शादी के बाद अपनी आईटी फाइल भी पति को थमा देती हैं : फाइनेंशियल गैप पर बात कर रहीं हैं नेहा नागर

बचत में महिलाओं का जवाब नहीं। बहुत कम पैसे में से भी वे कुछ न कुछ बनाने का हुनर जानती हैं। मगर उन्हें केवल यहीं तक सीमित कर दिया जाता है, जबकि प्रोपर्टी से लेकर इनवेस्टमेंट तक के तमाम निर्णय पुरुष लेते हैं।
Neha Nagar financial gap ko bridge karne ki koshish kar rahi hain
नेहा नागर अपने सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों की वित्तीय समझ बढ़ा रहीं हैं। चित्र : Insta/Nehanagar
योगिता यादव Updated: 28 Mar 2023, 03:38 pm IST
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हमारे देश की वित्त मंत्री एक स्त्री हैं। इसके बावजूद भारतीय स्त्रियों में वित्तीय साक्षरता दर मात्र 24 फीसदी है। वित्तीय मामलों के बारे में ये नासमझी सिर्फ महिलाओं में ही नहीं पुरुषों में भी मौजूद है। केवल 27 फीसदी पुरुष ही आर्थिक मामलों की न्यूनतम समझ रखते हैं। जबकि भारत में पढ़ी-लिखी आबादी का आंकड़ा 77 फीसदी के पार है। हालांकि यहां भी महिलाओं और पुरुषों के अनुपात में अंतर है। साक्षारता और वित्तीय साक्षरता के बीच मौजूद इस खाई को पाटने के उद्देश्य से नेहा नागर (Finance influencer Neha Nagar) ने सोशल मीडिया को माध्यम बनाया।

वे ऐसी मनोरंजक रील और पोस्ट अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर पोस्ट करती हैं, जिससे लोग आसान भाषा में वित्तीय समझ विकसित कर सकें। उनका कंटेंट कितना जरूरी है इसका अंदाजा उनके मिलियन फाॅलोअर्स को देखकर ही लगाया जा सकता है। हेल्थ शॉट्स के इस विशेष साक्षात्कार में आइए नेहा नागर से जुड़कर जानते हैं उनकी इस मुहिम के बारे में।

कभी नट्टू काका का आधार पैन से लिंक करवाना हो, तो कभी टूटे हुए मोबाइल फोन को वारंटी में रिपेयर करवाना, नेहा नागर बहुत ही मनोरंजक तरीके से अपने दर्शकों को उनके आर्थिक अधिकारों के बारे में जागरुक कर रहीं हैं। कब और कैसे हुई इस यात्रा की शुरुआत आइए जानते हैं खुद वित्त विशेषज्ञ और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर नेहा नागर से।

टैक्स फर्म से सोशल मीडिया कंटेंट तक

इस यात्रा की शुरुआत कैसे हुई इस बारे में विस्तार से बात करते हुए नेहा बताती हैं, “मैंने चार्टर्ड अकाउंटेंसी का कोर्स किया था, लेकिन फाइनल एग्जाम क्लियर नहीं हो पाया। टेक्सेशन, ऑडिट वगैरह वित्तीय मामलों के बारे में मैं काफी कुछ पढ़ चुकी थी। पर यह सब काम नहीं आया, तो मैंने एमबीए करने का फैसला किया। एमबीए करने के बाद मुझे जो प्लेसमेंट मिली वह वेल्थ मैनेजमेंट की थी। जहां करोड़ों की वेल्थ मैनेज की जाती थी, पर इनमें सभी बड़े बिजनसे पर्सन थे।

वहां से मुझे आइडिया आया कि खुद का कोई बिजनेस शुरू किया जाए। बिजनेस होगा तो ही वेल्दी होंगे। हालांकि सीए करते वक्त भी यही सोचा था कि नौकरी तो नहीं करनी है। पर वहां नौकरी करने के बाद यह सोच और मजबूत हो गई कि अब नौकरी की बजाए खुद का कुछ काम करना है।

Social media par finance se judi sari jankari maujood hai
वे बताती हैं कि सोशल मीडिया पर सारी जानकार मौजूद है, आपको बस उसे अपनी प्राथमिकता में शामिल करना है। चित्र : Insta/NehaNagar

अब खुद का क्या किया जाए, यह सवाल जब मन में आया तो सोचा कि मैं वेल्थ मैनेजमेंट से ज्यादा टेक्सेशन की समझ और अनुभव रखती हूं। इस तरह मैंने अपनी टेक्सेशन कंपनी की शुरूआत की। वह 2019 का समय था, हम काफी कुछ इंटरनेट पर करना सीख चुके थे। मैंने तय किया कि पहले ऑनलाइन ही अपनी फर्म स्थापित करूंगी, उसके बाद उसमें एक्सपेंशन करूंगी। इस तरह मेरी टेक्सेशन कंपनी की शुरुआत हुई।

फिर हुई कोरोना की दस्तक

हमने इसे शुरू किया ही था कि अगले ही साल कोरोना आ गया। ये हम सभी के लिए एक संघर्षपूर्ण दौर था। क्लाइंट्स परेशान थे कि उन्हें कैसे मदद मिल पाए। इस तरह मैं सोशल मीडिया पर आई। हालांकि उद्देश्य अपनी कंपनी का प्रमोशन करना था। पर मैंने यह महसूस किया कि सोशल मीडिया पर सब तरह का कंटेंट है, पर फाइनेंस से संबंधित कोई कंटेंट नहीं है।

मैं जिस बैकग्राउंड से थी, मुझे लगता था कि इतना तो लोगों को मालूम ही होगा। दो-तीन वीडियो ही बनाए थे कि कंटेंट वायरल हो गया, उसके बाद कमेंट सेक्शन में जो सवाल और टिप्पणियां आईं, उससे मुझे अंदाजा हुआ कि हमारे समाज में वित्तीय साक्षरता का कितना बड़ा गैप है। उन्हें देखकर बहुत सारे लोगों को लाभ हुआ। उनकी प्रतिक्रियाओं ने मुझे और कंटेंट बनाने के लिए प्रेरित किया।

सबसे बड़ा उपभोक्ता वर्ग स्त्रियां हैं, फिर भी नहीं ले पातीं वित्तीय निर्णय

ये एक बहुत बड़ा सच है। सेविंग्स में महिलाओं का जवाब नहीं। नोटबंदी के समय भी सबसे ज्यादा पैसा महिलाओं के पास से निकल कर आया। बहुत कम पैसे में से भी वे कुछ न कुछ बनाने का हुनर जानती हैं। पर वे अभी तक केवल बजटिंग तक ही सीमित हैं। इसके अलावा जो निर्णय लिए जाते हैं वह पुरुषों के द्वारा लिए जाते हैं। मैं खुद गांव से हूं, वहां मैंने देखा है कि प्रोपर्टी, बैंकिंग, फाइनेंस के सारे मामले उनके भाई, पिता या पति ही संभालते हैं।

ज्यादातर लड़कियां यह सोचती हैं कि यह मेरा काम नहीं है। यह तो भैया या पापा कर लेंगे। घर में यह माहौल ही नहीं है कि उन्हें आर्थिक मामलों पर चर्चा में शामिल किया जाए। उन्हें यह अहसास ही नहीं करवाया गया कि यह उनका भी काम है। इस तरह लड़कियों काे आत्मविश्वास भी कमजोर हुआ और उन्हें यह लगने लगा कि वह इसे नहीं कर पाएंगी।

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कुछ समय पहले राजस्थान एक फाइनेंस फेस्ट आयोजित किया गया था, जहां आसपास के गांवों से महिलाएं आईं थीं। पढ़ी लिखी होने के बावजूद बहुत सारी लड़कियों की आर्थिक साक्षरता न्यूनतम थी। मैं इसके लिए उन्हें भी जिम्मेदार ठहराऊंगी, क्योंकि यूट्यूब पर फ्री सब कुछ मौजूद है, वह भी आपकी अपनी भाषा में। आपको बस प्राथमिकता में उसे लाने की जरूरत है।

दूसरा कारण जो लड़कियां बताती हैं वह है पैसे की कमी। जबकि आज बहुत सारी महिलाएं नौकरीपेशा हैं। तीसरा कारण कि महिलाओं के पास वित्तीय मामलों की निगरानी के लिए समय नहीं है। वक्त का इश्यू समझा जा सकता है, क्योंकि उन पर बहुत सारी जिम्मेदारियां लाद दी गईं हैं। इन सबके बीच वे अर्थ प्रबंधन को पिछली पंक्ति में डाल देती हैं। मगर पैसे का कारण मुझे समझ नहीं आता। सौ पांच सौ रुपये महीना तो कोई भी महिला बचा सकती है और इसे इनवेस्ट कर सकती है।

इन तीनों का ही समाधान है, कि आप ज्यादा से ज्यादा लिटरेट हो सकें। हो सकता है कि शुरुआत में आपको कुछ समझ न आए, पर कुछ समय के बाद आपको यह सब समझ आने लगेगा और आप आत्मविश्वास के साथ अपने फाइनेंस को मैनेज कर पाएंगी।

पितृसत्तात्मक सोशल कंडीशनिंग की देन है वित्त प्रबंधन से खुद को अलग रखना

हां अभी तक यही है। मैं खुद ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूं। जहां महिलाओं की राय को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता। पूरे समाज में यह बहुत गहरे से धंसा हुआ है। जब मैं वेल्थ मैनेजमेंट के लिए क्लाइंट के पास जाती थी, तो एक महिला और युवा होने के नाते वे लोग मुझे बहुत हल्के में लेते थे। ये भेदभाव बिजनेस क्लास में भी है। आप देखिए टॉप मैनेजमेंट में सिर्फ 20 फीसदी ही महिलाएं हैं। वहां तक पहुंचने की यात्रा को कुछ महिलाएं तो रास्ते में ही छोड़ जाती हैं। कभी प्रेगनेंसी, कभी परिवार, शादी और फिर वर्क कल्चर ऐसा बना दिया गया है कि उन्हें सब कुछ छोड़कर परिवार में ही बिजी हो जाना पड़ता है।

जब कोई पुरुष काम छोड़ता है तो उस से कई सवाल किए जाते हैं। मगर जब कोई महिला काम छोड़ती है, तो उससे सवाल किए जाने की बजाए उसे सराहा जाता है। घर और बाहर लगभग एक जैसा ही माहौल है। न उन्हें गंभीरता से लिया जाता है और न ही उन्हें अवेयर किया जाता है।

उन पर कंट्रोल बनाए रखने के लिए उन्हें वित्तीय मामलों से दूर रखा गया। पर अब हमारे पास इंटरनेट है। अब आपको कोई इससे दूर नहीं रख सकता। अगर आप मेकअप और आउटफिट के लिए सोशल मीडिया देख सकती हैं, तो फाइनेंस के लिए क्यों नहीं।

फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स के बीच एक स्त्री होने की चुनौततियां

युवा और स्त्री हाने के नाते पहले पहल आपको गंभीरता से नहीं लिया जाता। मगर जब आप लगातार कोशिश करती हैं, तो आपको भी वैसे ही समझा जाने लगता है जैसे अन्य पुरुष विशेषज्ञों को।

वेल्थ मैनेजमेंट में सिर्फ 20 फीसदी महिलाएं हैं। जबकि जब इसके लिए पढ़ाई की शुरुआत होती है, तो वहां एनरोलमेंट का अनुपात 50:50 है। पहली प्लेसमेंट तक पहुंचते यह घट कर 40 तक हो जाता है। जैसे जैसे कॅरियर आगे बढ़ता है वह पिछड़ती जाती हैं। टॉप मैनेजमेंट पर महिलाओं की संख्या बहुत कम है।

स्टार्ट अप इंडिया या स्टैंड अप इंडिया में महिलाओं को प्राथमिकता दी जा रही है। सरकार पहल कर रही है, पर निजी कारणों से अब भी वे पिछड़ रहीं हैं। वे उन सुविधाओं का भी लाभ नहीं ले पातीं, जो उन्हें मिल रहीं हैं।

हर इवेंट में मुझे एक या दो महिलाएं ही दिखती हैं। नई तकनीक में तो और भी कम। जूनियर लेवल पर बहुत सारी महिलाएं हैं। सीनियर तक पहुंचते, फिर वही संख्या कम होने लगती है। इसमें बदलाव जरूरी है। अगर आप टॉप 10 फाइनेंस इंफ्लुएंसर निकालेंगे, तो एक या दो महिलाएं ही दिखेंगी।

क्या इसके लिए सरकारी पहल की जरूरत है, जैसे अगर रजिस्ट्री में महिलाओं के लिए छूट नहीं होती, तो इतनी सारी महिलाएं अपने मकान की मालकिन नहीं होती।

इस गैप को कैसे कम किया जा सकता है?

यह वास्तव में एजुकेशन का भी मामला है। वह ग्रेजुएशन तक ही खुद को संतुष्ट मान लेती हैं। बहुत सारी महिलाएं यह भी नहीं जानती कि स्टैंप ड्यूटी में उन्हें छूट मिलती है। होम लोन पर भी महिलाओं को छूट मिलती है। वे एक्स्ट्रा डिडक्शन भी क्लेम कर सकती हैं। हो सकता है कि आपके घर के पुरुष आपके नाम का लाभ ले रहे हों, पर आपको यह पता ही नहीं है। यह जागरुकता का अंतर है। आपने खूब मेहनत की है, पर यहां आकर आपने सब कुछ छोड़ दिया।

शादी होते ही महिलाएं अपने आर्थिक अधिकारों का पूरी तरह सरेंडर कर देती हैं। उन्हें लगता है कि अब यह उनका काम नहीं है। जबकि हर स्त्री के लिए यह जरूरी है कि वह अपना बैंक अकाउंट अलग से ऑपरेट करें। सेविंग्स अलग हों। वह नहीं कि जो परिवार में चल रहा है, उसी में हिस्सा डाल दिया।

दूसरा अपने अधिकारेां के बारे में जागरुक हों और तीसरा आपको अपनी आर्थिक योजनाएं बनानी चाहिए, भले ही आपके साथ पिता, पति और परिवार का सहयोग हो।

Neha girls ko financialy educate hone ki salah deti hain
नेहा लड़कियों को आर्थिक साक्षरता बढ़ाने की सलाह देती हैं। चित्र: Insta/Nehanagar

आपको एसआईपी में इन्वेस्ट करना चाहिए। इसके लिए न ज्यादा हैवी नॉलेज की जरूरत है और न ही ज्यादा राशि की। आपको बस भारत की टॉप 10 कंपनियों में इन्वेस्ट करना है। सौ या पांच सौ रुपये से भी आप इन्वेस्टमेंट की शुरुआत कर सकती हैं। इस उद्देश्य के साथ कि आपको आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना है। जब आप दस-बीस साल बाद देखेंगी, तो आपका पैसा डबल हो चुका होगा। यहां आपको 14 प्रतिशत तक का लाभ होता है। जबकि एफडी में आपको सिर्फ 6 या 7 फीसदी का लाभ दिया जा रहा है।

जब आप आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगी, तो ही आप अपने रिश्तों को ज्यादा बेहतर तरीके से एन्जाॅय कर पाएंगी और उन्हें निभा पाएंगी।

डर को कैसे हैंडल किया जाए?

कुछ बाज़ार के भी तकाजे हैं कि महिलाएं पैसो के मामले में रिस्क लेने से डरती हैं। इतने सारे फ्रॉड और एक विज्ञापन में तेजी से बोल दी गई एक पंक्ति, “म्युचुअल फंड बाजार जोखिम के अधीन”, ये बहुत डराने वाला वाक्य है।

नेहा कहती हैं, “हालांकि रिस्क सब जगह है। आपका बैंक अकाउंट भी इससे बचा हुआ नहीं है। आप शायद नहीं जानती कि जब कोई बैंक डूबता है, तो आपको सिर्फ 5 लाख रुपया ही मिलता है। एफडी में भी रिस्क है। इस रिस्क से डरने की जरूरत नहीं है, इस रिस्क को समझने की जरूरत है। आपको समझ आएगा कि लॉन्ग टर्म में चार्ट हमेशा ऊपर जा रहा है। अपने डॉक्यूमेंट्स को अच्छी तरह पढ़ें, बाज़ार को समझें और निवेश करें।”

हेल्थ शॉट्स के युवा पाठकों के लिए अपने पैसे को मैनेज करने के 5 क्विक टिप्स 

ज्यादातर लोग पहले फेज में ही उलझ कर रह जाते हैं। पैसा आया और तुरंत खर्चा। इस पर लगाम लगाने की जरूरत है, कि क्या आपकी जरूरत है और क्या आप गैरजरूर चीजों में फिजूल खर्च कर रहे हैं। अपने पैसे को सही तरह से संभालने के लिए पहला, अपने आपको जानिए, दूसरा बजटिंग कीजिए। बजटिंग के लिए 50-30-20 का फॉर्मूला लगाइए। यानी जितना भी आप कमा रहे हैं, उसका पचास फीसदी खर्च पर, तीस फीसदी अपनी ख्वाहिशों पर और 20 सेविंग में डालिए।

तीसरे स्टेप में आपको अपने गोल समझने और उन्हें प्लान करना है। आपको कितने साल बाद घर खरीदना है, गाड़ी खरीदना है या आप बच्चों की पढ़ाई के लिए सेविंग कर रहीं है, उसे प्लान कीजिए। चौथा, बाज़ार को थोड़ा बहुत समझिए, ज्यादा शोध करने की जरूरत नहीं है। थोड़ी-बहुत समझ से भी आप बेहतर सेविंग कर पाएंगी। और पांचवां अपने वित्तीय निर्णय स्वयं लीजिए।

नई सदी की स्त्रियों के लिए एक फाइनेंस इंफ्लुएंसर का संदेश 

बंदिशें बहुत हैं, कंट्रेाल करने की कोशिश की जाती है, पर अब हमें खुद अपना चार्ज लेना पड़ेगा। खुद को जागरुक करना होगा। इस बार कम से कम यह प्रण लें कि आप खुद को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएंगी।

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(नेहा नागर को हेल्थ शॉट्स शी स्लेज अवॉर्ड सोशल मीडिया स्टार विद अ कॉज कैटेगरी में नामित किया गया है। उन्हें वोट करने और उनकी जैसी और भी प्रेरक स्त्रियों के बारे में जानने के लिए इस लिंक पर क्लि करें – शी स्लेज अवॉर्ड्स)

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कंटेंट हेड, हेल्थ शॉट्स हिंदी। वर्ष 2003 से पत्रकारिता में सक्रिय। ...और पढ़ें

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