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नए जमाने के मम्मी–पापा मना रहे हैं बेटियों की लोहड़ी, त्योहारों में गिर रही है लैंगिक भेदभाव की दीवार

समय के साथ सोच और विचार में आने वाले बदलाव के चलते अब लड़के के समान लड़की के जन्म पर भी लोगों के चेहरों पर खुशी नज़र आती है और वो बेटों के समान बेटियों की भी लोहड़ी मनाते है। अब त्योहारों में भी जेंडर इक्वेलिटी नज़र आने लगी है।
कुछ परिवारों की पहल ने समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया है। इसके चलते अब त्योहारों में भी जेंडर इक्वेलिटी नज़र आने लगी है।
Published On: 13 Jan 2025, 07:45 pm IST

एक वक्त था जब बेटे के जन्म के बाद घर में ढोल–नगाड़ों से उसका स्वागत किया जाता था और पहली लोहड़ी पर गांव भर में उसके आगमन की मिठाई बांटी जाती थी। मगर अब वक्त करवट ले चुका है और ये सौभाग्य घर में नन्हे कदमों से आगमन करने वाली बच्चियों को भी प्राप्त हो रहा है। अब लड़की के जन्म पर भी लोगों के चेहरों पर खुशी नज़र आती है और वो बेटों के समान बेटियों की भी लोहड़ी मनाते है। इस मौके पर जहां लोहड़ी का प्रसाद बांटा जाता है, तो भगड़ा और गिददा के बगैर ये त्योहार अधूरा सा लगता है। चलिए मिलते हैं ऐसे तीन परिवारों से जहां लड़कों की बजाय मनाई जा रही है लड़कियों की लोहड़ी (Gender equality on Lohri)

नए आने वाली की खुशी है लोहड़ी

पंजाब में सदियों से लोहड़ी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन अलाव के चारों ओर चक्कर लगाकर माथा टेका जाता है और मूंगफली व रेवड़ी का प्रसाद बांटा जाता है। इसके बाद नाच गाकर इस दिन को पूरे उत्साह से मनाया जाता है। आमतौर पर ये पर्व नवविवाहित जोड़े और लड़के के जन्म पर ही सेलिब्रेट किया जाता था। मगर दिनों दिन लोगों की मानसिकता में बदलाव आने से बेटियों के जन्म की भी खुशी मनाई जाने लगी है। मिलते है ऐसी तीन बच्चियों से जिनके जन्म पर परिवार में उतनी ही खुशी का माहौल है, जितना आमतौर पर बेटों पर जन्म पर देखने को मिलता है।

पंजाब में सदियों से लोहड़ी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। चित्र : अडोबी स्टॉक

जेंडर इक्वेलिटी है ज़रूरी (Gender equality on Lohri)

अक्सर लड़कियांं के जन्म के बाद परिवार में मायूसी का माहौल देखा जाता है। दरअसल बेटों को पाने की चाह लड़कियों के जन्म की खुशी में बाधा बनने लगती है। हांलाकि लड़कियां भी लड़कों के समान काबिल और हर क्षेत्र में आगे रहती हैं। मगर फिर भी अब तक उन्हें इस दर्जे से महरूम रखा गया। मगर कुछ परिवारों की पहल ने समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया है। इसके चलते अब त्योहारों में भी जेंडर इक्वेलिटी नज़र आने लगी है।

सिदक के बाद सिफत का भी हुआ स्वागत : अरविंदर सिंह और मनिंदर कौर

मिलते हैं ऐसे परिवार से जहां बेटों के समान ही बेटियों का न केवल स्वागत किया बल्कि उनकी लोहड़ी भी मनाई गई। दिल्ली के रहने वाले एक परिवार में पहली बेटी के जन्म पर जितनी खुशी परिवार जनों के चेहरे पर दिखी। ठीक दूसरी बेटी के जन्म के बाद भी वो खुशी उसी तरह से बरकरार रही। अरविंदर सिंह और मनिंदर कौन समेत परिवार के सभी सदस्यों ने पहली बेटी के बाद दूसरी बेटी को भी उसी प्यार से अपनाया और लोहड़ी सेलिब्रेशन भी किया। इससे समाज में बेटों और बेटियों में फैली असमानता को दूर किया जा सकता है और बच्चियों में प्यार और स्नेह बना रहता है।

पहली बेटी के जन्म पर जितनी खुशी परिवार जनों के चेहरे पर दिखी। ठीक दूसरी बेटी के जन्म के बाद भी वो खुशी उसी तरह से बरकरार रही।

अनाहत के जन्म पर भी दिखी अरमान जितनी ही खुशी : कमलजीत कौर

दिल्ली की रहने वाली कमलजीत अपने बेटे अरमान के जन्म पर जितनी खुश थीं, उतनी ही खुशी उस वक्त भी देखने को मिली जब उनकी गोद में बेटी आई। इस नन्ही परी का नाम उन्होंने अनाहत रखा। खास बात ये है कि बेटे के जन्म के बाद माता– पिता ने जैसे उसके आगमन पर खुशी मनाई। ठीक उसी प्रकार से बेटी के जन्म पर भी उन्होनें लोहड़ी का त्योहार सेलिब्रेट करके बेटी और बेटों से सदियों से चली आ रही असमानता की दीवार को गिरा दिया। उन्होंने बेटे के सामन बेटी को भी बराबरी का दर्जा प्रदान किया।

बेटे के सामन बेटी को भी बराबरी का दर्जा प्रदान किया।

हरनाज को भी मिला सनवीर जितना प्यार: तजिंदर कौर और पवनदीप सिंह 

सोच का मयार बदलने के साथ समाज में अब बेटा और बेटी में भेदभाव कम होता नज़र आ रहा है। बेटों के समान अब पेरेंटस बेटियों की भी लोहड़ी मनाने से नहीं हिचकते हैं। जेंडर इक्वेलिटी के इस दौर में बेटियों की लोहड़ी भी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। छतरपुर के रहने वाले तजिंदर कौर और पवनदीप सिंह ने अपने बड़े बेटे सनवीर के बाद हमेशा एक बेटी की ही चाह रखी। इससे न केवल परिवार में संतुलन बना रहता है बल्कि बहन के रिश्ते को भी मज़बूती मिलती है। बेटी के जन्म से पूरे परिवार में खुशहाली का माहौल रहा और इसकी झलक बच्च्यिं की मुस्कुराहट में साफ झलकती है।  

अपने बड़े बेटे सनवीर के बाद हमेशा एक बेटी की ही चाह रखी।

बेटी के जन्म पर मनाई जाने वाली खुशी समाज की बदलती मानसिकता को दर्शाती है। इसी के मद्देनज़र अब बेटियों के जन्म पर भी मिठाइयां बांटी जा रही हैं। इससे जहां हर ओर सकारात्कता बढ़ रही है, वहीं बच्चियों को खुलकर जीने की स्वतंत्रता भी मिल रही है और क्राइम रेट भी गिरावट नज़र आती है। 

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लेखक के बारे में
ज्योति सोही

लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं।

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