योग और अध्यात्म एक सिक्के के दो पहलू हैं, जो माइंड, बॉडी और सोल को एक सूत्र में पिरोने का काम करते हैं। तन और मन को आनंद से भर देने वाला योग ध्यान पर निर्भर है। मात्र तीन वर्ष की आयु से योग की यात्रा पर निकलीं योग गुरू, जानी मानी नृत्यांगना एंव मोटिवेशनल स्पीकर(motivational speaker) आचार्य प्रतिष्ठा इस पंरपरा को निभाने का काम कर रही है।आइए जानते हैं, योग को अपने जीवन का आधार मानने वाली योग गुरू के जीवन के खास पहलू (journey of acharya Pratishtha)
पदमभूषण से सम्मानित प्रख्यात योगाचार्य भारत भूषण जी(Yogacahrya Bharat Bhushan ji) की पुत्री आचार्य प्रतिष्ठा ने योग को अपने जीवन का आधार बनाया और इस ओर बढ़ती चली गई। नेशनल स्कूल ऑफ कत्थक से नृत्य की तालीम हासिल कर गोल्ड मेडल जीतने वाली इस शख्सियत को साल 2007 में यंगेस्ट योगाचार्य के खिताब से नावाज़ा जा चुका है। इसके अलावा वे अब तक योग के उपर पांच किताबें भी लिख चुकी हैं।
आचार्य प्रतिष्ठा कहती हैं कि योग के लिए किसी मशीन की आवश्यकता नहीं है। प्रकृति से मिलाप की इस विधा को आप बैठकर और खड़े होकर किसी भी प्रकार से कर सकते हैं। योग से बड़ा कोई अध्यात्म नहीं है। योग अपने आप में जर्नी ऑफ सेल्फ रियलाइजेशन (Journey of self realization) है। हर व्यक्ति को इस जर्नी का हिस्सा ज़रूर बनना चाहिए। योग से आपका मन शांत रहता है और आप इस बात को जान पाएंगे कि मैंने क्या पाया है और क्या खोया है।
योग और नृत्य दोनों से ही मेरा गहरा नाता रहा है। योग की ये यात्रा मां के गर्भ से ही आरम्भ हो चुकी थी। दरअसल, बचपन से ही अपने आसपास मैंने योग साधना का माहौल देखा। इसके चलते छोटी उम्र में ही अपने पिता जी के साथ एक मंच पर योग करने का मुझे मौका मिला। माता-पिता से मिले संस्कारों के दम पर ये यात्रा आज भी जारी है।
परिवार में तो नहीं, पर समाज में अब भी कुछ चुनौतियां हैं। हमारा समाज अब भी जेंडर बायस्ड है। इस मेल डोमिनेंटिंग सोसायटी में हम एक ऐसी अवधारणा के साथ जी रहे हैं, कि महिलाओं के लिए कुछ भी कर पाना कठिन है। मगर एक बेटी होने के नाते अपने पिता के सपने और उनकी इस यात्रा को हम आगे लेकर बढ़े। हमने समाज के उस मिथ को तोड़ा, जिसमें केवल बेटा ही अपने पिता का नाम रोशन करता है। एक फीमेल ऑफिसर के तौर पर हमने खुद को साबित किया है। हमारे संस्कार और परमात्मा से मिले बल ने आगे बढ़ने में बहुत मदद की है।
योग हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। बचपन से ही योग के प्रति हमारी गहरी रूचि रही है। सबसे पहले तीन वर्ष की आयु में दूरदर्शन पर बच्चों के लिए योग का एक प्रोग्राम प्रसारित हुआ था। उस प्रोग्राम में हमें अपने पिताजी के साथ एक मंच पर परफॉर्म करने का मौका मिला। इसके लिए हम पिताजी के साथ सहारनपुर से दिल्ली आते थे। जहां 2007 में आईसीसी जोहान्सबर्ग में भारत के सांस्कृतिक एम्बेसडर के पद पर योग गुरु और कथक कलाकार के रूप में कार्यरत रही।
पहले पहल लोगों का मानना था कि योग बुढ़ापे में करने वाली चीज़ है। मगर समय के साथ बदलाव आने लगा है। हमने अपने पिताजी के साथ योग शिविर में 10 से 20 हजार लोगों को योग सिखाया है। कई बार अकेले भी योग शिविर में लोगों को योग सिखाने का मौका मिला है।
आचार्य प्रतिष्ठा बताती हैं कि हम लोग अक्सर योग और योगाभ्यास के मध्य उलझ कर रह जाते हैं। आप खावत, पीवत, साेवत, जागत, जो भी काम आप परफेक्शन से कर रहे है, वह सभी योग हैं। अपने काम को पूरी निष्ठा के साथ करना ही सच्चा योग कहलाता है।
अब बात करते हैं योगाभ्यास की। सुबह और शाम योग के लिए समय निकालें, वही योगाभ्यास है। इस बात का ख्याल रखें कि योग से तीन घंटे पहले आप कुछ न खाएं। योग को जल्दबाज़ी में करने से बचें। चाहे आप 10 मिनट ही योग के लिए निकालें, मगर पूरी तरह से योग क्रिया की ओर अपना मन केंद्रित करें।
इसके अलावा योगाभ्यास के समय सफेद, पीले और संतरी रंग के कपड़े पहनें। इससे शरीर में कार्टिसॉल और मेलाटॉनिन हार्मोंस बढ़ते हैं। इससे शरीर को मज़बूती मिलती है। दरअसल, हम जब तक जीवित हैं, तब तक कुछ न कुछ कर रहे हैं। जब आप काम को परफेक्शन से कर रहे हैं, तो आप योग कर सकते हैं। पहले आपको अच्छा योगी होना ज़रूरी है। ये हमें फिजिकल और मेंटल लेवल पर संदृढ़ करने का काम करता है।
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कस्टमाइज़ करेंहर विधा की अपनी सुंदरता है और जीवन में हर विधा का अपना रोल है। चाहे हम सात सुरों की बात करें या हम योग में सात चक्रों की बात करें। चाहे हम नौ रस की बात करें या आठ अंगों की बात करें, जो योग आनंद की ओर अग्रसर करता है। दरअसल, बदलते समय के साथ नाच को कसरत बना दिया गया है। मगर किसी विधा का मूल रूप भंग नहीं करना चाहिए। हांलाकि दोनों विधाएं शरीर, आत्मा और मन से बनती हैं। जो वेटलॉस, कमर दर्द और अन्य दुख दर्द को दूर करता है।
योग हर किसी के लिए फायदेमंद है। अगर ऐसा कहें कि हर समस्या का समाधान योग में मौजूद है, तो ये गलत नहीं होगा। योग के अलावा हमें आहार पर ध्यान देने की आवश्यकता है। हमें इस बात को समझना होगा कि अपनी बॉडी टाइप के हिसाब से डाइट कब और कैसी लेनी चाहिए। साथ ही आपका व्यवहार कैसा होना चाहिए। योग हमारे तन और मन दोनों का रोग दूर करता है ।
योग हमें बीमारियों से दूर रखने का एक सटीक उपाय है। रोगग्रस्त होकर जब योग की ओर बढ़ते हैं, तो योग क्रियाएं हमारे शरीर को फायदा पहुंचाती है और मन मस्तिष्क को भी शांत करतीं है। अगर आप डायबिटीज़ के शिकार हैं, तो अपनी डाइट को हेल्दी बनाएं। साथ ही मंडूकासन, मत्सेन्द्रासन, योग मुद्रा और पश्चिमोतानासन को डेली रूटीन में करें। मोटापे की समस्या लगातार लोगों में बढ़ रही है।
मोटापे की समस्या को दूर करने के लिए योग गतियों का अभ्यास करें। जिसका निर्माण पूज्य गुरूजी पदमभूषण से सम्मानित प्रख्यात योगाचार्य भारत भूषण जी ने किया था। दरअसल, योग गतियां हमें दुगर्ति से बचाती हैं। इसके अलावा सूर्य नमस्कार करना ज़रूरी है। योगाभ्यास के दौरान इसे 12 से ज्यादा बार रिपीट न करें। इसका अभ्यास शरीर की क्षमता के मुताबिक ही करना चाहिए। ध्यान रखें कि जब भी आप योग करें, तो उसे गुरू के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए। गलत अभ्यास से नुकसान होने का खतरा रहता हैं।
आचार्य प्रतिष्ठा कहती हैं कि आप जिन लोगों के सान्निध्य में रहते हैं, आपका आचरण वैसा ही होता चला जाता है। अगर हम प्रकति के सान्निध्य में रहते हैं, तो खुश रहते हैं। इसके लिए आप रोज़ाना 20 मिनट तक सूर्य की रोशनी में रहें और खुली हवा में अपना समय बिताएं। साथ ही एक दिन में 5 बार हंसें, दिल खोलकर हंसें। इसके अलावा आपको जब भी समय मिले 3 मिनट के लिए सांस पर ध्यान लगाएं।
दरअसल, ये भारत योग ग्रेटीट्ययूड मेडिटेशन है, जो लोगों को मानसिक तनाव से दूर रखती है। इसके अलावा लंबी गहारी सास लें और प्रभु को धन्यवाद कहें।
भारतीयों के डीएनए में योग है। अगर युवा योग नहीं करेंगे, तो वे कहीं न कहीं अपनी मौलिक जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहे हैं। जो अपने रूट्स को नहीं जानता। वह भविष्य का निर्माण कैसे कर पाएगा। जीवन का उद्देश्य आनंद की प्राप्ति है। युवाओं को अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए और अपनी संस्कति पर गौरवान्वित महसूस करना चाहिए।
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