सुष्मिता सेन बहुत खास हैं। अपने अभिनय में, अपनी निजी जिंदगी में और अपनी शालीनता में। कई मंचों पर आप उन्हें एक शानदार व्यक्ति के रूप में देखते-सुनते रहे हैं। वे उन भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो अपनी शर्तों पर जीती हैं। भारत के लिए पहला मिस यूनिवर्स का ख़िताब जीतकर उन्होंने अपनी मेहनत, बौद्धिकता और दृढ इच्छाशक्ति का परिचय दिया। एक अभिनेत्री के तौर पर भी उन्होंने हमेशा अलग तरह की भूमिकाएं निभाईं। अपने काम और निजी जीवन के कारण भी वे आधुनिक महिलाओं की रोल मॉडल रही हैं। स्थापित सामाजिक मानदंडों के खिलाफ 47 साल की उम्र में भी सुष्मिता सेन अकेली हैं। दो गोद ली हुई बेटियों की मां हैं। उनका करियर भी लगातार आगे बढ़ (actress Sushmita sen on Taali and personal life) रहा है।
वे मानती हैं कि स्वतंत्र महिला होने के कुछ साइड इफेक्ट भी हैं। सुष्मिता सेन कहती हैं, ”मेरे लिए मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत मेरी आजादी है। मैं एक स्वतंत्र व्यक्ति हूं। मैं जो भी करती हूं, दिल से करती हूं। मैं दूसरों की उम्मीद पूरा करने के लिए काम नहीं करती हूं।”
“मेरे अकेले होने का मतलब है कि मैं किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिली हूं, जिसके साथ मैं अपना शेष जीवन बिताना चाहती हूं। जिंदगी में मुझे कभी मोहब्बत की कमी महसूस नहीं हुई, यह सबसे अलग और खास बात है। भारतीय मानसिकता के अनुसार शादी के बाद बच्चे आते हैं। वह मेरे पास पहले से हैं – मैं अकेले अपनी दो बेटियाें की परवरिश कर रही हूं। मुझे अपने जीवन में किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होती।”
एक पब्लिक फिगर के रूप में सुष्मिता सेन हमेशा सकारात्मक रहीं हैं। 18 साल की छोटी उम्र में मिस यूनिवर्स का ताज जीतने वाली वे पहली भारतीय बनीं। सुष्मिता सेन ने अभिनय भी किया, लेकिन स्क्रीन से अलग उन्होंने अपने लिए सबसे बड़ी भूमिका चुनी – रेनी और अलीसा की मां बनकर।
उन्होंने उन दोनों को बारी-बारी से 2000 और 2010 में गोद लिया था। उनके इस महत्वपूर्ण काम की हमेशा प्रशंसा हुई। सुष्मिता सेन कहती हैं, “मुझे लगता है कि दुनिया में सब कुछ है। अगर आप चाहें, तो आप हर सुबह अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हैं। आप कड़ी मेहनत कर सकती हैं। चुनौतियों का मुकाबला कर निडर होकर अपना जीवन जी सकती हैं।” इस साल की शुरुआत में ही सुष्मिता को दिल का दौरा पड़ा था।
सुष्मिता अपने विचारों में बहुत मजबूत हैं और अपनी शर्तों पर ही जीवन जीती हैं। वे बताती हैं, ”मैंने जीवन अपनी शर्तों पर जीने का चुनाव नहीं किया। यह सब परिस्थिति के अनुसार हुआ। मुझे धीरे-धीरे अपने आसपास के लोगों के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण का पता चला। इसके बाद मैंने खुद से सवाल किया, ‘मैं क्या चाहती हूं?’ मैं सबकी बात सुनती हूं और वही करती हूं, जो मैं करना चाहती हूं। यही कारण है कि मैं अपनी शर्तों पर जीवन जीने में सक्षम हूं।
उनका हालिया ऑनस्क्रीन प्रोजेक्ट जियो सिनेमा की “ताली’ है, जो वास्तविक जीवन की ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता श्रीगौरी सावंत के जीवन पर एक वेब सिरीज है। हाशिये पर पड़े समुदाय का एक व्यक्ति ईंट-पत्थर और गुलदस्ते के साथ आया था। यह पूछे जाने पर कि वास्तविक जीवन में उन्हें कौन प्रेरित करता है – ताली या गाली, सुष्मिता ने जवाब दिया, ”ताली ईंधन के रूप में काम नहीं करती है। यह काम गाली करती है!”
उन्हें जब श्रीगौरी सावंत का किरदार निभाने का अवसर मिला, तो उन्हें खुद पर संदेह था कि वे यह कर पाएंगी या नहीं। वे कहती हैं, ‘जब मैंने इसके बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, तो लोगों ने ‘छक्का’ लिखना शुरू कर दिया। तभी मुझे एहसास हुआ कि मैं इस विशाल समुदाय की आवाज़ बनने जा रही हूं। गालियों ने गौरी का किरदार निभाने में मेरे लिए ईंधन का काम किया।”
वेब सीरीज़ दर्शकों को समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय के संघर्षों से परिचित कराने का एक रचनात्मक प्रयास है। उस संदेश को आगे ले जाने के लिए सुष्मिता सेन व्यक्तिगत रूप से इस बात की वकालत करती हैं कि सिजेंडर बच्चों को ट्रांसजेंडरों से डरना और दूरी महसूस करना सिखाया जाना बंद करना होगा। वे बड़े होने पर भी उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करने लग (actress Sushmita sen on Taali and personal life) जाते हैं।
वे हेल्थ शॉट्स को बताती हैं, “जीवन के बुनियादी सिद्धांत बचपन में ही निर्धारित हो जाते हैं। फिर हम आदतन लोगों के साथ भेदभाव करने की गलतियां करते हैं। इसे ही हम सच मानने लग जाते हैं। समाज में सभी लोगों की विविधता, समावेश और स्वीकार्यता का पाठ स्कूल में पढ़ाया जाना चाहिए।”
सुष्मिता सेन अंत में कहती हैं “बच्चे स्कूल में, दोस्तों के साथ बहुत समय बिताते हैं। इसलिए हमारे स्कूलों में सभी समुदायों, उनके प्रति विश्वास विकसित करने के तरीकों के बारे में जानना अनिवार्य होना (actress Sushmita sen on Taali and personal life) चाहिए। तभी बच्चे जान पाएंगे कि कुछ लोग अलग क्यों हैं। फिर वे अपने-आप दोस्तों और सहकर्मी के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं करेंगे। ” काश सुष्मिता सेन की यह आशा भरी बात यथार्थ रूप ले सके।
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