मेरे पीठ दर्द की शिकायत को सभी ने हल्के में लिया, फि‍र 16 साल की उम्र में मुझे करवानी पड़ी सर्जरी

हाई स्कूल की छोटी सी चोट को नजरंदाज करने के कारण 16 साल की उम्र में मेरी सर्जरी हुई, यह है मेरी पूरी कहानी।
दर्द को हल्‍के में लेना, हमें बहुत भारी पड़ा। चित्र: शटरस्‍टॉक

नमस्‍कार। मेरा नाम चेतना पटनायक है। मैं आज आपको अपने एक ऐस दर्द की कहानी बताने जा रहीं हूं, जिसेे लंबे समय तक बच्‍चोें के बहाने कहकर नजरंदाज किया जाता रहा। अंतत: इस दर्द ने हम सभी को एक कठिन सबक सिखाया।

“दर्द नहीं है, बच्चों के बहाने होते हैं। सारा दर्द साइकोलॉजिकल है और कुछ नहीं।” मेरी मां से डॉक्टर ने यही कहा था जब मैं अपनी पीठ के दर्द की शिकायत लेकर पहुंची थी। शुरू में किसी ने मेरी बात को गम्भीरता से नहीं लिया, जब लिया तब तक देर हो चुकी थी।

क्या थी समस्या की जड़?

हाई स्कूल के साइंस प्रोजेक्ट के लिए मैंने एक मिनी फ़्रिज बनाया था। उस भारी फ्रिज को लेकर सीढ़ियां चढ़कर मैं क्लास में पहुंची और जैसे ही फ्रिज रखकर उठी तो पीठ से चट्ट की आवाज़ आई। उसके बाद दो दिन तक मैं बिस्तर से उठ नहीं पाई।

मुझे पेनकिलर दे दिए जाते, और दर्द में आराम हो जाता। पेनकिलर्स का असर ख़त्म होते ही दर्द फ़िर परेशान करने लगता। मां गर्म पानी से सिकाई, गर्म तेल से मालिश जैसे सभी घरेलू नुस्खे आज़माती रहीं। साथ ही मुझे यह कहती रहीं कि दर्द से लड़ो, इतना दर्द है नहीं जितना तुम सोच-सोच कर बढ़ा रही हो।

स्‍कूल की एक हल्‍की सी चोट ने मुझे गंभीर परेशानी दे दी थी। चित्र : शटरस्टॉक

हमें स्थिति की गम्भीरता को भांप लेना चाहिए था

दर्द जा नहीं रहा था और कोई मानने को तैयार नहीं था कि मुझे ज़्यादा तकलीफ है। थक-हार कर मुझे इस दर्द के साथ जीना शुरू करना पड़ा। मैं दर्द के आगे झुकना नहीं चाहती थी। मैं फ़िर से स्कूल, ट्यूशन जाने लगी और अपने नॉर्मल रूटीन पर लौटने की कोशिश करने लगी।

एक दिन स्कूल जाते वक्त मेरा एक्सीडेंट हो गया। दरअसल मैं साइकल से स्कूल जाया करती थी। रास्ते में एक पिल्ला मेरी साइकल के सामने आ गया और उसे बचाने के चक्कर में मेरी साइकल एक पेड़ से भिड़ गई। मुझे काफी चोट आई थी, इसलिए स्कूल जाने के बजाय मैं घर चली आयी। हाथ-पैर में चोट थी, खून बह रहा था, लेकिन मेरा ध्यान पीठ के दर्द पर था जो कि अब दोगुना हो गया था।

बार-बार कहने पर फैमिली डॉक्टर से सलाह ली गयी और उनका मानना था कि इस दर्द की वजह मेरा मोटापा है।

मैं टीनेज से ही मोटी होने लगी थी, और मेरी फ़िटनेस फ्रीक मां इस कारण से मेरे पीछे पड़ी रहती थीं। घर के दौड़ भाग वाले सारे काम मुझसे ही करवाए जाते थे। इस दर्द के बाद मेरी एक्सरसाइज और बढ़ा दी गयी। आराम करने के बजाय मैं 15 किलोमीटर साइकल चलाती थी, 100 से भी ज्यादा सूर्यनमस्कार करती थी और टहलने जाती थी।

अब दर्द मेरी सहनशक्ति को तोड़ चुका था

मैं लगातार दर्द की शिकायत करती थी, और आखिरकार जब मुझे डॉक्टर के पास ले जाया गया तो डॉक्टर ने मेरे दर्द को साइकोलॉजिकल करार दिया। मां को भी ऐसा ही लगा कि मेरे एग्जाम नज़दीक हैं और स्ट्रेस के कारण मुझे यह दर्द हो रहा है। वहीं दूसरी ओर मेरी हालत बिगड़ती जा रही थी और कोई मेरी बात का विश्वास करने को राज़ी नहीं था।

मेरे एग्जाम को तीन दिन बचे थे। जब सुबह मां ने मुझे स्कूल जाने के लिए उठाया तो मुझे एहसास हुआ कि मैं हिल नहीं पा रही हूं। मेरे पैर उठ नहीं रहे थे, यहां तक कि उंगलियां भी नहीं हिल रही थीं। मेरे पूरे शरीर में करंट सा दौड़ रहा था और भंयकर दर्द हो रहा था।

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जिंदगी में वापस लौटने के लिए मैंने योग पर भरोसा किया। चित्र: शटरस्‍टॉक

मुझे अस्पताल ले जाने से पहले भी दो बार पूछा गया कि सच में इतना दर्द है या मैं बहाना बना रही हूं। मैं दर्द के मारे कुछ बोल भी नहीं पा रही थी, सिर्फ़ आंसू बह रहे थे।

हॉस्पिटल पहुंचते ही मुझे MRI के लिए भेज दिया गया। हमें लगभग एक मिनट में ही रिपॉर्ट दे दी गयीं, जिसमें आमतौर पर कई घण्टे लगते हैं। इससे ही मुझे अंदेशा हो गया कि समस्या छोटी नहीं है।

मेरी रिपोर्ट

“लोअर बैक में डैमेज है। L3-L4 और L4-L5 डिस्क में 95% दबाव है, L5-L6 डिस्क में हल्का दबाव है। तुरंत सर्जरी नहीं कराई तो पेशेंट की लोअर बॉडी पैरालाइज़ हो जाएगी।” डॉक्टर के ये शब्द मेरे कानों में अभी भी गूंजते हैं।

कुछ दिन और 20 डॉक्टर्स की सलाह के बाद हम यह समझ चुके थे कि सर्जरी ही हमारा एकमात्र विकल्प है। लेकिन मैं सिर्फ 16 साल की थी और सभी डॉक्टरों की यह राय थी कि सर्जरी के बाद मैं डांस नहीं कर सकती, लम्बे सफर नहीं कर सकती ,यहां तक कि झुक भी नहीं सकती।

ऐसे में एक रिश्तेदार ने दिल्ली के एक न्यूरोसर्जन का सुझाव दिया जो हमारे शहर आये हुए थे। हम डॉक्टर शंकर आचार्य से मिलने भी गए। लेकिन उनके पहले से इतने बिजी शेड्यूल को देखते हुए यह कहना मुश्किल था कि उनसे मुलाकात हो पाएगी या नहीं। जब मुझे डॉक्टर से मिलने भेजा गया, उस एक पल में मेरी ज़िंदगी बदल गयी।

हर डॉक्टर की तरह उन्होंने मुझे बताया कि मेरी स्थिति गम्भीर है और रेयर भी। लेकिन उन्होंने आसान शब्दों में मुझे समझाया कि मुझे दर्द क्यों हो रहा है और क्यों मुझे ऑपरेशन की ज़रूरत है। सबसे बड़ी बात जो उन्होंने कही, “इस सर्जरी के बाद तुम पहले जैसी हो जाओगी, इन सब नकारात्मक बातों पर ध्यान मत दो।”

सूर्य नमस्‍कार संपूर्ण व्‍यायाम माना गया है। चित्र: शटरस्‍टॉक

मेरी सर्जरी और मेरा संघर्ष

मैं प्लेन से नहीं जा सकती थी, इसलिए हम 24 घण्टे का सफर ट्रेन से कर के दिल्ली पहुंचे। दो दिन दवा, टेस्ट और IV के बाद मुझे सर्जरी के लिए ले जाया गया। दवा का असर था या मेरा डर, मैं ऑपरेशन शुरू होने से पहले ही बेहोश हो गयी थी।

सर्जरी के बाद डॉक्टर आचार्य ने मुझसे कहा,” तुम तो बहुत बहादुर हो। इसी बहादुरी से इस बीमारी से लड़ना है, हिम्मत नहीं हारना।” मुझे लगा कि अब मेरा दर्द ख़त्म, लेकिन मुझे क्या पता था कि यह तो दर्द की शुरूआत है। मुझे बेस्वाद खाना दिया जाता था, मैं चल फिर नहीं पाती थी इसलिए मेरी बहन मेरा हर काम करती थी। वह मेरे डायपर तक बदलती थी। मुझे सबके ऊपर बोझ जैसा महसूस होने लगा, मैं अपनी सारी जिंदगी इस तरह नहीं जीना चाहती थी।

लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। एक महीने में मैं चलने लगी, तीन महीने बाद मैंने योग शुरू किया और साल भर में मैं स्विमिंग सीखने लगी थी।

आज मेरी सर्जरी को 6 साल हो चुके हैं और मैं सब काम कर सकती हूं। इसका श्रेय मेरी बहन और मेरे कोच को ही जाता है। मैं वर्कआउट करती हूं, और योग तो मेरा साथी बन चुका है। इस घटना के बाद मैंने अपने शरीर का सम्मान करना सीखा है। मेरे इस एक्सपीरिएंस ने मुझे यह सिखाया कि अपने स्वास्थ्य को इग्नोर करना हमारे लिए कितना भारी पड़ सकता है। लेकिन मैंने यह भी सीखा कि हिम्मत और जज़्बे से हर मुश्किल आसान हो जाती है।

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ये बेमिसाल और प्रेरक कहानियां हमारी रीडर्स की हैं, जिन्‍हें वे स्‍वयं अपने जैसी अन्‍य रीडर्स के साथ शेयर कर रहीं हैं। अपनी हिम्‍मत के साथ यूं  ही आगे बढ़तीं रहें  और दूसरों के लिए मिसाल बनें। शुभकामनाएं! ...और पढ़ें

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