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गरीबी और रिश्तेदारों के ताने भी नहीं रोक पाए हॉकी कप्तान रानी रामपाल का सफर

भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल की यात्रा प्रेरक शिक्षाओं से भरी है। आइए जानते हैं उनकी सफलता के राज।
Published On: 21 Mar 2022, 05:01 pm IST
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ye hai rani rampal kii kahani
भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल की यात्रा प्रेरक शिक्षाओं से भरी है। Instagram/ Rani Rampal

भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल की कहानी प्रेरणादायी है। गरीबी से जूझने से लेकर ओलंपिक पोडियम तक पहुंचने और लगभग स्वर्ण पदक हासिल करने तक, उन्होनें बार-बार दिखाया है कि वह कई चुनौतियों के बावजूद पीछे नहीं हटेगी।

उन्हें हाल ही में चोट लग गई थी, जिसके कारण वह FIH प्रो लीग में भाग नहीं ले पाई थीं। मगर हमेशा की तरह, उनका अदम्य साहस एक मिसाल बन गया है। अपने हालिया इंस्टाग्राम पोस्ट में, रामपाल को रिकवर होते हुये देखा जा सकता है। आप उन्हें जिम में व्यायाम करते हुए देख सकते हैं!

उसने अपनी लगातार सफलता के पीछे कुछ कारण भी साझा किए हैं। क्या आप पता लगाने के लिए तैयार हैं?

रानी रामपाल ने बताया अपनी सफलता का राज़

1. दृढ़ता

रानी को पता था कि वह अपने परिवार को गरीबी से निकालने के लिए एक रास्ता चाहती है। उन्होनें कड़ी मेहनत की और 2008 में 14 साल की उम्र में अपनी शुरुआत की, जिससे वह राष्ट्रीय टीम के लिए खेलने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बन गई।

पिछले मीडिया साक्षात्कार में, उन्होनें कहा था कि वे अपने जीवन से भागना चाहती हैं – चाहे वह बिजली की कमी, मच्छरों के बीच रात गुज़ारना हो या दिन में दो बार भोजन करने के लिए संघर्ष करना, या बारिश होने पर उनके घर में पानी भर जाना।

आज, रामपाल भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान हैं, और टोक्यो ओलंपिक 2020 में उनके हालिया प्रदर्शन ने उन्हें दुनिया भर से प्रशंसा दिलाई है। हालांकि, उन्होंने कांस्य पदक जीता, लेकिन उनकी कड़ी मेहनत ने उन्हें ख्याति दिलाई। रानी को पद्मश्री से भी नवाजा गया है।

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ये है रानी रामपाल की कहानी। चित्र : Instagram/ Rani Rampal

2. बलिदान और संघर्ष

बहुत कम लोग जानते हैं कि रानी की यात्रा बाधाओं से भरी थी। वह एक बार टूटी हुई हॉकी स्टिक के साथ खेलती थी, और उसे खेल खेलने के लिए भी डांटा जाता था। लेकिन यह प्रेरणादायी खिलाड़ी बेफिक्र रही और आगे की यात्रा जारी रखी। रानी को रिश्तेदारों से भी टिप्पणियां सुननी पड़ीं, जो नहीं चाहते थे कि वह स्कर्ट पहने। मगर निडर होकर, उन्होनें अपने माता-पिता से उन्हें एक मौका देने के लिए कहा और खुद को शाहाबाद हॉकी अकादमी में नामांकित किया।

रानी ने घर पर लैंगिक पूर्वाग्रह से जूझते हुए धीरे-धीरे लेकिन लगातार प्रयास से अपने घर वालों को मना लिया। अपनी यात्रा के दौरान, उन्हें “लड़कियां घर का काम ही करती हैं” और “हम तुम्हे स्कर्ट पहनने नहीं देंगे” जैसे बयान सुनने पड़े। ”

उनके माता-पिता के पास उसे प्रशिक्षण किट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, लेकिन यह उनके कोच थे जिन्होंने उनकी मदद की। रानी को सुबह 5 बजे ट्रेनिंग पर पहुंचना था, लेकिन उनके पास अलार्म घड़ी नहीं थी। इसलिए उनकी मां सुबह तक जागती थीं, ताकि रानी समय पर पहुंच सके।

उनके स्कूल ने लेखन प्रतियोगिता में प्रथम आने वाले किसी भी छात्र को अलार्म घड़ी प्रदान की। रानी ने कठिन अभ्यास किया और प्रथम पुरस्कार जीता, और इस तरह उसे अपनी अलार्म घड़ी मिली।

उनका इंस्टाग्राम पोस्ट यहां देखें!

 

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3. दृढ़ संकल्प

अकादमी में, प्रत्येक खिलाड़ी के लिए 500 मिलीलीटर दूध लाना गैर-परक्राम्य था। लेकिन चूंकि उसका परिवार आर्थिक रूप से स्थिर नहीं था, इसलिए वे केवल 200 मिली दूध ही खरीद सकते थे। वह बिना किसी को बताए दूध में पानी मिलाकर पी जाती थी, सिर्फ इसलिए कि वह खेलना चाहती थी।

रानी ने 2010 में विश्व कप में पदार्पण किया, और प्रतियोगिता में भारत के सात में से पांच गोल किए। वह उस भारतीय टीम का भी हिस्सा थीं, जिसने 2016 के रियो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। यह तब था जब भारत ने इतिहास रचा था, जब 36 वर्षों में पहली बार भारतीय महिलाओं ने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था।

उनके सपने सच हुए, और रानी ने भारत में सर्वोच्च खेल सम्मान, खेल रत्न अपने नाम किया।

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